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इंडिया से बाहर भी है एक इंडिया
2013-11-13 15:58:42

 

 

 

वेइतुंगः श्रोता दोस्तों को वेइ तुंग का नमस्कार।

अनिलः सभी श्रोताओं को अनिल पांडेय का भी नमस्कार।

दोस्तो, इसी के साथ शुरू करते हैं, आज का प्रोग्राम, सबसे पहले हम पेश करेंगे, श्रोताओं के ई-मेल और पत्र।

वेइतुंगः कार्यक्रम का पहला खत हमें आया है, दिल्ली से अमीर अहमद का। लिखते हैं कि जैसे ही आप लोगों की तरफ से सार्वजनिक सूचना दी गयी कि अखिल भारतीय श्रोता संघ ने इस वर्ष बेस्ट क्लब चुनाव में अपना स्थान बनाया है। विशेष पुरस्कार के लिए अखिल भारतीय सीआरआई श्रोता महासंघ के प्रतिनिधि के नाते राम कुमार चीन की यात्रा पर पहुंचे हैं, पूरे भारत से श्रोताओं ने बधाई देना शुरू कर दिया। मैं आप सभी लोगों का शुक्रिया अदा करता हूं कि हमारे श्रोता क्लब को सीआरआई की ओर से बेस्ट क्लब 2013 चुना गया।

अनिलः वहीं झारखंड से एस. बी.शर्मा लिखते हैं कि पिछले दिनों अनिल जी और चंद्रिमा जी ने सप्ताहिक खेल जगत कार्यक्रम प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम के जरिये हमें विश्व भर की खेल जगत की तमाम हलचले सुनने को मिल जाती हैं। पिछले प्रोग्राम में आपने सोची में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक के विषय में काफी अहम जानकारी दी। इसमें बताया गया कि ओलंपिक मशाल ग्रीस से प्रज्जवलित होकर छह अक्तूबर को मास्को पहुंच गई है। जहां इसका भव्य स्वागत किया गया। रूस के हज़ारों नागरिक ओलंपिक मशाल के स्वागत के लिए सडकों पर उतर आये। हालाकि बीच में मशाल बुझ गयी पर उनका उत्साह कम नहीं हुआ। गाड़ियों के हॉर्न और सीटी बजाकर लोगों ने अपने जोश और उत्साह का परिचय दिया। इस ओलंपिक की मशाल अंतरिक्ष में भी भेजी जानी है। जहां अंतरिक्ष यात्री इसे लेकर अंतरिक्ष में घूमेंगे। हमें लगता है की किसी भी ओलंपिक मशाल का यह अपने तरह का अनुपम और भव्य स्वागत है। मुझे याद है 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भी इसी तरह का जूनून चीन में भी देखने को मिला था। और यह समारोह सफलता से पूरा हुआ था। आपका यह कार्यक्रम बहुत ज्ञानवर्धक है। भारत में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले श्रोताओं और छात्रों के लिए यहां तमाम जानकारी एक ही जगह पर मिल जाती है।

वेइतुंगः वहीं एक अन्य ई-मेल में एस बी शर्मा ने कहा कि सीआरआई की भाषा अब आम भाषा बन गई है। छोटे छोटे शब्दों के छोटे छोटे वाक्य अब अधिक साथियों के समझ में आ रहे हैं। इसी तरह काम करते रहें, धन्यवाद।

जबकि भागलपुर, बिहार से हेमंत कुमार लिखते हैं कि प्रत्येक साल मिलने वाले नोबेल पुरस्कारोँ मेँ सबसे ज्यादा चर्चा और विवाद नोबेल शांति पुरस्कार को लेकर होते हैँ। OPCW को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना इस बात पर ध्यान खीँचता है कि युद्ध रोकने के मानवीय प्रयास अभी सफलता से काफी दूर हैँ बल्कि युद्ध को कम अमानवीय और कम खतरनाक बनाना भी बहुत कठीन काम है। लोकतांत्रिक मूल्योँ की तरक्की के साथ ही साथ युद्धोँ को ज्यादा खतरनाक बनाने की तकनीक भी विकसित होती गई हैँ। परमाणु हथियार, रासायनिक और जैविक हथियारोँ की समस्या से अब भी दुनिया जूझ रही है। लेकिन अब तकनीकेँ इतनी सुलभ आसान हो गई है कि ऐसे हथियार बनाना सिर्फ सरकारोँ के नहीं, 'नान स्टेट' संगठनोँ के पास होने की आशंका भी बढ़ गई है। नोबेल शांति पुरस्कार हमेँ फिर से याद दिलाते हैँ कि विश्व शांति अब भी बहुत दूर की मंजिल है।

इसके बाद छत्तीसगढ़, भिलाई से आनंद मोहन लिखते हैं कि अनिल पांडे जी

नमस्कार। मैं चाइना रेडियो के कार्यक्रम वहुत दिन से सुन रहा हूं। आप श्रोताओं से जो सवाल पूछते हैं वह ठीक नहीं हैं, राजनीतिक सवाल पूछना उचित नहीं है।

नीतीश सरकार के कामकाज के बारे में आपने कुमार जय वर्धन से सवाल पूछा इससे श्रोताओं को तकलीफ हो सकती है। कार्यक्रम एवं श्रोता के परिवार, रूचि, अनुभव आदि पर सवाल करना ठीक है।

क्या आप चीनी नागरिक से चीन सरकार के कामकाज के बारे में सवाल पूछ सकते हैं।

आनंद मोहन जी आप सीआरआई के प्रोग्राम इतने ध्यान से सुनते हैं, इसके लिए सबसे पहले आपको धन्यवाद। जहां तक आपने श्रोताओं से बातचीत में राजनीतिक सवाल पूछने की कही, तो मैं आपको बता दूं कि शायद आपने अन्य श्रोताओं से बातचीत या उनके अनुभव नहीं सुने होंगे। हम राजनीति के अलावा भी कई सवाल पूछते हैं। उसमें अनुभव से लेकर अन्य बातें शामिल होती हैं, फिर भी आपको अगर दुख पहुंचा तो हमें खेद है। जहां तक चीन सरकार के कामकाज के बारे में सवाल पूछने की बात है तो हम चीन के सरकारी रेडियो में काम करते हैं। यह तय करना रेडियो कार्यक्रम तैयार करने वालों के हाथ में होता है। हर रेडियो या टीवी या अखबार की अपनी पॉलिसी होती है, हम उसमें बदलाव नहीं कर सकते।

उम्मीद है कि आप हमारे जवाब से संतुष्ट होंगे। धन्यवाद।

अब अगले पत्र की ओर बढ़ते हैं। जो भेजा है, उड़ीसा से हमारे मॉनिटर सुरेश अग्रवाल ने। उन्होंने लिखा है कि अक्टूबर का पहला पखवाड़ा यहां ख़ुशी और ग़म का मिलाजुला सन्देश लेकर आया। जहां पांच से तेरह अक्टूबर तक शारदीय नवरात्र ने लोगों को अपार खुशियां दीं। वहीं बारह अक्टूबर को ओड़िशा के तटीय क्षेत्रों में प्रलयंकारी तूफ़ान "पायलिन" तबाही का सबब बनकर आया। यद्यपि, पूर्व-चेतावनी और एहतियाती उपायों के चलते इस बार 1999 में आये महाचक्रवाती तूफ़ान जैसी क्षति नहीं पहुँची। फिर भी घर-मकान, मवेशी और खड़ी फसल आदि का भारी नुकसान हुआ है। इस भयंकर आपदा के बावज़ूद सीआरआई हिन्दी सुनने के हमारे इरादे पर कोई असर नहीं पड़ा और हमने पूर्ववत प्रसारण सुना और उस पर अपनी त्वरित टिप्पणी से आपको अवगत कराने का क्रम भी ज़ारी रखा।

मुझे हैरत इस बात की है कि भारत की छोटी-से छोटी घटना को तरज़ीह देने वाले सीआरआई हिन्दी ने आज इतने बड़े तूफ़ान का समाचार देना ज़रूरी नहीं समझा। क्या इसे आप एक चूक नहीं मानेंगे?

वेइतुंगः अब पेश है, ढोली सकरा बिहार के दीपक कुमार दास का ई मेल। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया फोकस के अंतर्गत हुआशान द्वारा प्रस्तुत भारतीय रूपये के अवमूल्यन पर समीक्षा सुनी। सटीक लगी। आज भारत में बडा मसला यह है कि निर्यात वैश्विक वृद्धि से प्रेरित है और इस मामले में अभी भारत निचले पायदान पर खड़ा है। चालू खाते का घाटा चिंता का विषय बना हुआ है और रुपये की गिरावट ने इस चिंता में इजाफा ही किया है ।सीरिया में तनाव के चलते तेल की कीमतों ने भी दबाव बढाया है ।इस साल घाटे को 70 अरब डालर तक लाने का लक्ष्य हाल में रखा गया था ।इन परिस्थितियों में इसको पाना एक बडी चुनौती है ।रूपये की अस्थिरता को बरकरार रखने के लिए पिछले दिनों भारत सरकार ने कई उपायों की घोषणा की है ।ये सशंकित बाजार को शांत करने के उद्देश्य से प्रेरित थे ।वास्तव में भारत को दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखते हुए सुधारों पर जोर देना चाहिए ।इससे घरेलू उद्योग में प्रतिस्पर्धा के माहौल में बढोतरी होगी। जो आयात एवं निर्यात के बीच सामंजस्य स्थापित करने में मददगार होगा ।वास्तव में हुआन शान की प्रस्तुति बेहतरीन लगी।

दास ने क्लब गतिविधि के बारे में भी बताया है। कहते हैं कि इस अगस्त के अंत में नई दिल्ली में आल इंडिया सीआरआई लिस्नर्स नेटवर्क और अपोलो रेडियो क्लब की ओर से श्रोता मिलन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें बिहार ,उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधियों के साथ 65 श्रोताओं ने भाग लिया । इस कार्यक्रम में सीआरआई के कार्यक्रम और फ्रीक्वेंसी पर समीक्षा की गयी । साथ ही सीआरआई के प्रचार एवं प्रसार पर योजना बनायी गयी । इसमें अमीर अहमद ,दीपक कुमार दास ,प्रियरंजन घोषाल ,विधान चंद्र सान्याल आदि ने सहयोग किया था।

अनिलः इसके बाद पेश है यूपी, आजमगढ़ के श्रोता मोहम्मद असलम का ख़त।

वे लिखते हैं कि आज आपको मै यह बताना पसन्द करुंगा कि आपकी वेबसाइट पर बहुत तेज़ गति से समाचार अपडेट किए जा रहे हैं। पर भारत से जुड़े समाचार कम होते हैं, आपसे गुज़ारिश है कि भारत की अर्थव्यस्था पर भी समाचार जारी करें। धन्यवाद।

दोस्तो, अब बारी है अगले ख़त की, जो हमें आया है, आजमगढ़, यूपी से। इसे भेजने वाले हैं सादिक आजमी। वे लिखते हैं कि 28 अक्टूबर को हेमा जी द्वारा मन्ना डे को लेकर पेश की गई रिपोर्ट वाकई बहुत अच्छी लगी। सबसे पहले हम मन्ना डे जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। भले ही वे इस दुनिया से चले गए हों, पर हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे।

उनकी गाइकी का जो अंदाज़ था, उसका मै यही कहूंगा कि उनकी नकल कोई नहीं कर पाया है और न कर पाएगा। उन्होंने जो ख्याति प्राप्त की उसकी तुलना इसी बात से की जा सकती है कि उन्होंने सभी भाषाओं में कुल चार हज़ार गाने गाए और अधिकतर लोकप्रिय हुए। उनके करियर पर बारीकी से रोशनी डालने के लिए धन्यवाद। जिन बातों का उल्लेख किया, वह बहुत कम लोग जानते थे।

अनिलः अगला पत्र हमें भेजा है, बक्सर बिहार से आबिद हसन ने। उन्होंने बड़ी ही रोचक जानकारी मॉरीशस और भारतीयों के बारे में लिखी है। लिखते हैं कि

आपको मेरी बात पर ज़रूर आश्चर्ये हो रहा होगा की भला भारत से बाहर एक और भारत कैसे हो सकता है? जी हां, यदि आप कभी मारीशस की धरती पर कदम रखें तो आप भी तुरंत कह उठेंगे- वाह, क्या बात है! इंडिया से बाहर भी इंडिया। यूं तो हमारे भारत से हमारे पूर्वज विश्व के कई देशों मे गये लेकिन जो पूर्वज मारीशस में गए, उनकी पारिस्थितियां बहुत कठिन थीं। भुखमरी, बीमारी ओर जातिवाद से कुचले मजबूर ओर अभावग्रस्त लोगों को बहकाया गया था कि चलो मारीशस। वहां जिस भी पत्थर को पलटोगे उसके नीचे सोना मिलेगा। पत्थर के नीचे छिपा सोना हमारे वो भोले पूर्वज सोच भी नही सके कि वो ठगे जा रहे हैं। भला ऐसा कहीं संभव है की पत्थर के नीचे सोना छिपा हुआ हो। अब इसे मेहनत का फल कहें या किस्मत का खेल... जिस सपने को दिखाकर ठगकर उन्हे यहां लाया गया, उन्होने उसी सपने को साकार कर दिखाया।

सबसे पहले तो उन्होने आज़ादी की जंग छेड़कर मारीशस को अपने नाम किया ओर इसका कर्णधार बनाया अपने एक सपूत को जिसे दुनिया ने शिव सागर रामगुलाम के नाम से जाना। शिव सागर राम गुलाम आज़ादी से पहले के अभाव, अत्याचार ओर अपमान को जिंदगी जीते हुए ऐसा किया। यदि मुश्किल और दुखद पारिस्थितियों से निकलना है तो एक मात्र हथियार है शिक्षा। और आज़ादी के बाद निःशुल्क शिक्षा के रूप मे उन्होंने अपने लोगों को ताकतवर बनाया। आज खून-पसीने से सीचें इस देश मे ना सिर्फ़ प्रगति, विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य के शेत्र जो आस्था ओर विश्वास देखते हैं वो उन पूर्वजों का ही सपना है जो साकार हुआ।

कहां नहीं दिखता वो भारत... हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार, कई कार्यरत धार्मिक संस्थाएं ,समस्त भारतीय पर्वों को राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाना, भव्य मंदिर,गगन चुंबी मस्जिदें। जो भारतीय सभ्यता कभी भारत अपनी की पहचान थी आज मारीशस मे देखने को मिल जायगी। भोजपुरी भाषा का प्रचलन, भारतीय लोक गीत, फिल्मी गीत, भारतीय फिल्मों ओर टीवी चैनलों का प्रसारण, शिवरात्रि का भव्य आयोजन- जो आस्था चैनल द्वारा विश्व भर मे देखा जा सकता है। भारत के साथ गहरे मैत्री संबंध, सड़कों और गलियो का नाम गाँधी, नेहरू, दयानंद सरस्वती, टैगोर, इंदिरा गाँधी के नाम पर होना, भारत की समस्त भाषाओं की पुस्तकों की उपलब्धता। नई दिल्ली,मुंबई, चेन्नई और आने वाले समय मे बंगलूरु के लिए हवाई सेवा भी है। और उस पर यूनाइटेड नेशन के मंच से प्रधानमंत्री डा.नवीन चंद्र रामगुलाम का सीटीबीटी के मुद्दे पर भारत को अपनी आवाज़ की बुलंदी देना क्या ये साबित नही करता कि विश्व के मानचित्र मे दो भारत हैं । एक महान देश भारत ओर दूसरा लघु भारत मारीशस। मैं इस लेख के मध्यम से सभी पाठकों से अनुरोध करूंगा कि दुनिया के जिस भी कोने मे आप हैं ,एक बार मॉरीशस की यात्रा ज़रूर कीजिए। गंगा सरोवर मे शिव भगवान के दर्शन करें। आप्रवासी घाट पर पहली बार उतरने वाले पूर्वजों को श्रद्धा सुमन चढ़ाएं। नीले आकाश तले फैले नीले समुद्र के आगोश में समाएं या जंगल भ्रमण का सुख उठाएं। जो भी करें दावा है हमारा कि आपको बहुत भायगा ये देश। क्योंकि यह जुड़ा है आपकी जड़ों से।

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