वेइतुंगः आपका पत्र मिला प्रोग्राम सुनने वाले सभी श्रोताओं को वेइतुंग का नमस्कार।
अनिलः सभी दोस्तों को अनिल पांडेय का भी नमस्कार ।
दोस्तो, चीन में इन दिनों राष्ट्रीय दिवस की खुशियां मनाई जा रही हैं। इस अवसर पर पूरे देश में सात दिन की छुट्टियां होती हैं । लोग बाहर घूम सकते हैं,घरवालों व दोस्तों के साथ मिल सकते हैं या अपनी मर्जी से कुछ भी कर सकते हैं ।
आपको बता दें कि यह व्यवस्था वर्ष 2000 में लागू हुई । इससे लोगों को आराम करने का अधिक समय मिलता है और पर्यटन आदि को बढ़ावा मिलता है।
मेरे पास एक आंकड़ा है कि पिछले साल इस दौरान कुल 74 करोड लोग सड़क मार्ग, रेलवे व हवाई रास्ते से बाहर गये । खास बात है यह है कि सात दिन की छुट्टियों में देश के सभी हाइवे टोल फ्री होते हैं। सो बहुत लोग अपने वाहनों से दूर-दूर तक घूमने निकल जाते हैं। सात दिनों की छुट्टियां लोगों के एक बेहतरीन अवसर होती हैं। इसलिए इस अवधि को गोल्डन वीक यानी स्वर्णिम सप्ताह भी कहा जाता है।
गोल्डन वीक पर जानकारी के बाद लीजिए पेश हैं, श्रोताओं के ई-मेल और पत्र।
अब कुछ श्रोताओं के पत्र व ई मेल ।
मुबारकपुर, आजमगढ यूपी के श्रोता दिलशाद हुसैन कहते हैं कि
दुनिया कहां से कहां पहुंच गई । हम हैं कि सुन ईन दीदी के जमाने से आज तक सीआरआई से चिपके पड़े हैं । चीन और भारत के बीच व्यापारिक आदान-प्रदान का इतिहास बहुत पुराना है और दोनों देशों के बीच व्यापार के कई रास्ते हैं ,जिनमें तिब्बत की यातुंग कांउटी में स्थित नाथुला दर्रा बहुत महत्वपूर्ण है । जून 2007 में नाथुला दर्रा एक बार फिर खोल दिया गया । इससे पहले वह लगातार 44वर्षों तक बंद रहा था ।
तिब्बत छिंगहाई तिब्बत पठार के दक्षिण पश्चिम में स्थित है ,जो तिब्बती जाति के लोगों का मुख्य निवास स्थान है।
पत्र भेजने के लिए धन्यवाद ।
अनिल जी , हमारे कई श्रोताओं को तिब्बत में बड़ी रुचि है। मुझे लगता है इसका एक मुख्य कारण चीन का तिब्बत भारत से सटा है और दोनों के बीच महान हिमालय पर्वत श्रृंखला है ।इसी कारण उन्हें ऊंचे-ऊंचे पहाड़ के दूसरी ओर के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है।
दोस्तो, लीजिए इसके बाद पेश है, अगला पत्र।
काल्का प्रसाद कीर्ति प्रिय लिखते हैं कि 10 नवंबर को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू के प्रोफेसर चमन लाल जी से अनिल की वार्ता सुनी जो बहुत अच्छी लगी । चमन लाल ने खुलकर कहा कि वे माओ त्से तुंग के प्रशंसक हैं ।लू शुन के साहित्य को बहुत पसंद किया जाता है । मैं भी लू शुन के साहित्य को पढना चाहता हूं। इस बारे में मैंने दूतावास को पत्र लिखा है ।शुभकामनाओं के साथ धन्यवाद ।
वहीं दक्षिण दिनाजपुर , पश्चिम बंगाल के विधान चन्द्र सान्याल कहते हैं कि
तिब्बत की विभिन्न जातियों का बुनियादी स्तर सुधारने के लिए चीन सरकार
व्यापक अभियान चला रही है। कहा जाता है कि ये वर्ष 1951 मेँ
शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद मेँ अब तक का सबसे बड़ा अभियान है । तिब्बत मेँ 60 हजार सरकारी कर्मचारी तमाम सुविधाओं को बेहतर करने की कोशिश में लगे हैं। खुशी कि बात है की सरकारी कर्मचारी गांवोँ मेँ जाकर गांवबासियोँ के
साथ रहते हैं।
अब मेरे पास जो पत्र है, वह बद्री प्रसाद वर्मा अनजान का एक पुराना पत्र है। फिर भी हम इसे पेश कर रहे हैं।
इस ख़त की शुरुआत में बद्री जी ने एक छोटी कविता लिखी है।
उन्होंने कहा कि इंसान होकर इंसानों से प्यार करें ।
न कभी नफरत न कभी रार करें ।
दर्द होता है बहुत सोच कर,
दोस्ती के बीच न दीवार खड़ी करें ।
फिर बद्री जी ने आगे कहा कि एक बात समझ से परे लग रही है कि सीआरआई के सारे श्रोता बस तारीफ के पत्र भेजते हैं या श्रोता आलोचना या शिकायत भी करते हैं। अगर हां तो ऐसे पत्रों को क्यों नहीं पढ़ा जाता है । मेरी आदत है कि अच्छाई की तारीफ करना और बुराई की निंदा। मैं झूठी तारीफ करके वाहवाही नहीं लूटना चाहता हूं । सच्चाई ही हमारा विषय होता है । झूठे का मुंह काला हो जाता है ।
बद्री जी ,इस साल हमारे कार्यक्रम की थीम है श्रोताओं का मंच ,दिल की बात। पत्र में चाहे तारीफ हो या आलोचना, हम सबका स्वागत करते हैं। हम आप सभी की बातें दिल से सुनना चाहते हैं।
वहीं झारखंड से एस बी शर्मा ने अपने पत्र में कहा कि अनिल जी ने चीन की यात्रा पर गए भारतीय प्रोफेसर डॉ. चमनलाल जी से भेट वार्ता सुनवाई। जो काफी उत्साहित करने वाली थी। उनके साथ आपने चीनी साहित्य की चर्चा की। अगर चीनी पुस्तकों और साहित्य का हिंदी में अनुवाद हुआ तो तमाम भारतीय लोगों को चीन के बारे में और जानकारी मिल सकेगी। बशर्ते उन पुस्तकों की आम भारतीय तक पहुंच हो। इसके लिए चीन और भारत दोनों को मिलकर काम करना होगा। इसमें सीआरआई हिंदी विभाग की भूमिका भी अहम हो सकती है।
पिछले दिनों पुराने श्रोता बद्री प्रसाद वर्मा जी से बातचीत सुनवाई, उनका मत भी कुछ इसी तरह का था। जैसा कि उन्होंने बताया रेडियो बीजिंग से श्रोताओं को पहले चीन के बारे में हिंदी में लिखा चीनी साहित्य भेजा जाता था, जिससे भारतीयों को चीन के विषय में जानकारी हासिल होती थी। लेकिन आजकल यह काम बंद है।
इन दिनों चीनी साहित्य के नाम पर केवल एक श्रोता वाटिका भेजी जाती है, जो कि नाकाफी है। जैसा कि मैने सुना है कि सीआरआई श्रोता वाटिका के बदले नई पत्रिका प्रकाशित करने जा रहा है। उम्मीद है कि
यह कुछ हद तक चीनी साहित्य की आवश्यकता को पूरा करेगी।
हाल के कुछ सप्ताह में अखिल जी रिपोर्ट सुनाने के बाद एक सवाल पूछते हैं, कहते हैं कि सही उत्तर देने वाले को चीन के विषय में और अधिक जानकारी भेजी जाएगी। शायद यह एक सार्थक कदम साबित होगा। अखिल जी से मेरा आग्रह है कि आप सवाल थोड़ा धीरे-धीरे पूछें या फिर दोहराए ताकि सवाल नोट किया जा सके। आपके जल्दी बोलने से मुझे समझ में नहीं आ पाता है, और यह कही और उपलब्ध भी नहीं है, कृपया इस पर ध्यान दें।
भागलपुर बिहार के हेमंत कुमार ने वस्तुओं की बढ़ रही कीमतों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि एक बार फिर पेट्रोल,डीजल के दाम बढ़ा दिए गए हैँ। सब्जी से लेकर अनाज तक के दाम चढ़े हुए हैँ. रुपया हर दिन कमजोर हो रहा है। आखिर एक आम आदमी दो वक्त की रोटी भी जुटाए तो कैसे?
केन्द्र सरकार ने सिर्फ आम आदमी के साथ होने का दावा ही किया, परोक्ष रूप से तो वह पूंजीपतियोँ के साथ कदमताल करती रही. जब सारे देश मेँ रूपये के गिरते मूल्य को लेकर हाहाकार मचने लगा तो प्रधानमंत्री ने बयान दिया. उनके बयान के बाद सेँसेक्स गिरा ही। महंगाई हो या रुपए का अवमूल्यन, इनसे सबसे अधिक प्रभावित एक आम आदमी ही होता है. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस, भाजपा और तमाम छोटी-छोटी बड़ी पार्टियोँ ने जनता को सपने बेचने शुरु कर दिए हैँ. लेकिन, महंगाई से तत्काल राहत पर सबके-सब चुप्पी साधे हुए हैँ. इस मामले मेँ उनका अर्थशास्त्र फेल हो रहा है।
वहीं हमारे मॉनिटर सुरेश अग्रवाल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आज के ताज़ा समाचार की पहली सुर्खी और "सामयिक चर्चा" के तहत 16 सितम्बर से दिल्ली में शुरू भारत-चीन मीडिया फ़ोरम पर रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण लगी। निश्चित तौर पर इससे दोनों देशों के बीच समझ और बढ़ेगी और संबंधों में सुधार होगा। फ़ोरम में चीनी प्रवक्ता और भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद की आशा और फ़ोरम में उपस्थित चीनी-भारतीय प्रतिनिधियों के विचार भी काफी उत्साहवर्धक लगे। वास्तव में, यह सब चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की भारत-यात्रा का परिणाम है कि जिससे दोनों देशों की मीडिया के बीच इस तरह का सेतु कायम हुआ है। लगता है भारत-चीन दोनों देशों के संबंध तेज़ी से विकसित हो रहे हैं और इनके बीच किसी तरह की ग़लतफ़हमी की कोई जगह नहीं है।
वहीं साप्ताहिक "न्यूशिंग स्पेशल" के अन्तर्गत क्वांगचो में रहने वाली चेन्नई की श्रीदेवीजी से भेंटवार्ता सुन मैं तो एक बारगी दंग रह गया। दक्षिण भारत के कट्टर ब्राह्मण परिवार में जन्मीं और संस्कारित श्रीदेवी का एक चीनी पुरुष को अपना जीवन साथी चुनना बहुत ही दुस्साहसी कदम कहा जायेगा। धन्य हैं उनके माता-पिता और विशाल है उनका ह्रदय। जिन्होंने इस रिश्ते को अपनी मंज़ूरी दी। श्रीदेवी आज भी शाकाहारी हैं, उनके घर में मंदिर है और उनके सास-ससुर भी उन्हें बहुत चाहते हैं, यह जानकर मन गदगद हो उठा। यह अनूठी भेंटवार्ता सुनवाने हेतु धन्यवाद्। यहां मैं एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि -श्रीदेवी अच्छी तरह हिन्दी जानते हुए भी अंग्रेज़ी में बोलीं, यदि वह हिन्दी में बोलतीं, तो उनकी दिलचस्प बात और अधिक लोगों तक पहुंचती, क्योंकि सीआरआई हिन्दी के अधिकतर श्रोता केवल हिन्दी का ज्ञान रखते हैं।
दोस्तो ,मेरी चीनी कहानी आलेख प्रतियोगिता शुरू होने से हमें कई आलेख मिले । यहां हम सभी को धन्यवाद देते हैं। उनमें से कुछ आलेख बहुत दिलचस्प और ज्ञानवर्धक हैं। आज छुट्टियों के माहौल में हम जमशेदपुर, झारखंड की सागरिका शर्मा का आलेख सुनाएंगे ,जिसका शीर्षक है "ड्रैगन कथा "।
ड्रैगन- नाम सुनकर किसी महाकाय, भयानक, हिंसक जानवर का विचार मानव मन में अपने आप आ जाता है और मन भयभीत हो जाता हैI कल्पना में भी यदि वैसे भयानक जानवर से सामना हो जाय जो जीते-जीते जान निकल जाएगी। पर यह ड्रैगन पश्चिमी देशों का ड्रैगन है जो लोगों को डराने का काम करता है। जो सचमुच भयावह है, गुलामी, भुखमरी, असमानता, दादागिरी, बिना बुलाये दुनिया का चौकीदार, हिंसा, डर और शोषण इसकी पहचान है। पश्चिम में ड्रैगन पश्चिमी समाज की भाति क्रूर और डरावनी है लोगों को निगलना और उनका भक्षण करना ही इसका काम है। मेरे विचार से यह ड्रैगन राक्षस ही होगा, जिसकी काली छाया पश्चिमी समाज पर आज भी बरकरार है I
मेरी यह कथा उस ड्रैगन की नहीं हैI मेरी कथा तो मानवता प्यार शक्ति और संपन्नता के प्रतीक चीनी ड्रैगन की है I
आइये इस ड्रैगन के विषय में जानें और आपकी जानकारी सुनें ताकि चीनी ड्रैगन को हम बिस्तार से जान सकेंI चीन की प्राथीन प्रथा के अनुसार ड्रैगन बारह जानवरों का एक समूह है, को भारत के समान साल के बारह महीनों का प्रतिनिधित्व करता हैI इसमें चूहा, बाघ, बैल, बकरा, बंदर, घोडा,खरगोश, सांप, मुर्गा, कुता, सूअर और ड्रैगन शामिल हैI ड्रैगन का स्थान बहुत ऊंचा होता है इसलिए वह जानवरों में अतुल्य होता है। इसमें सभी की शक्तियां मौजूद होती हैं।
जैसा कि मैंने सुना है चीन का ड्रैगन एक काल्पनिक मनगढ़ंत पर देव तुल्य जानवर हैI इसमें दैवीय शक्तियां है यह कही भी कभी भी आ-जा सकता है किसी के घर जा सकता है और उसे अपना आशीष दे सकता हैI इसमें दैवी शक्तियां है I चीन का यह ड्रैगन हवा बारिश और मौसम को नियंत्रित कर सकता हैI चीनी ड्रैगन परियों की तरह हमेशा बदाल मेघ और कोहरे में विचरण करते रहता है और जो एक दैव रूपी जानवर के रूप में आता है और लोगों की मनोकामनाओं को पूरा करता हैI चीनी लोगों के मन में ड्रैगन के प्रति ख़ास आदर का भाव होता है I लोगों की ड्रैगन के प्रति बहुत आस्था होती है I चीनी लोग इस ड्रैगन से शुभ आशीर्वाद प्राप्ति की कामना करते हैI मान्यता के अनुसार लोग अपने दुःख तकलीफ और दरिद्रता दूर करने की कामना इससे रखते हैं।
सदियों से चीनी सम्राट अपने आपको ड्रैगन का पुत्र मानते है और चीनी जनता अपने आपको ड्रैगन की संतान मानती है ड्रैगन का स्थान चीन में परमपिता परमेश्वर के समान है चीनी ड्रैगन का कोई खास स्वरुप नहीं होता हैI यह लोगों की कल्पना पर निर्भर करता है कि उनका ड्रैगन कैसा हैI यह उनकी कल्पना पर निर्भर करता है I आम तौर पर यह देखा गया है की ड्रैगन के सिर पर हिरन का सींग लगाए गए है शरीर पर मछली के शल्क सजे हैं और पंजे बाज की तरह बने हुए है I
चीन में लाल रंग का खासा महत्व है I लाल रंग में बना ड्रैगन का तो कहना ही क्या। लाल रंग चीन की संस्कृति समृधि और शौर्य को दर्शाता है I वही ड्रैगन शक्ति और सामर्थ्य को दर्शाता है I दोनों एक साथ यानि जब ड्रैगन लाल रंग में हों तो यह पूरे चीन के शांति सम्पन्नता और शौर्य का प्रतीक होता है।
चीनी के बाजारों पार्को और सार्वजनिक जगहों पर मेटल से बने बड़े-बड़े ड्रैगन दिखाई देते हैंI जितना बड़ा ड्रैगन उतना शक्तिशाली समाज ब्यक्ति और राष्ट्र यही चीन का यथार्थ हैI यहां चीन में ड्रैगन डांस तो धूम मचाये रहता है I आजकल देश विदेश में ड्रैगन डांस की धूम रहती हैI नए साल त्योहारों पर खासकर वसंत त्यौहार पर तो ड्रैगन डांस आकर्षण का केंद्र होता है I लोग मिलकर ड्रैगन तैयार कर खुद ड्रैगन बन जाते है और खूब नाचते हैं। और तरह-तरह की कलाबाजियां भी ड्रैगन से की जाती हैं। चीन में कई कई मीटर लम्बे ड्रैगन बनाए जाते हैं I
चीनी ड्रैगन एक जाना पहचाना चीन का प्रतीक चिन्ह बन गया है I विदेशों में चीन को ड्रैगन के नाम से भी जाना जाता हैI ब्यापार में भी ड्रैगन की खासी धाक है I ड्रैगन के नाम से बनी चीजें बहुत लोकप्रिय होती हैं I यह एक आम ट्रेंड नेम है जो पूरे चीन में कहीं भी देखा जा सकता है I
कहा जाता है की पतंग की उत्पति चीन से हुई है, जो आज दुनिया भर में लोकप्रिय खेल बन गया है I पतंगबाजी चीन में आज भी खूब होती हैI शायद चीन में पतंग उत्सव भी मनाया जाता है, भारत में भी चीन ही की तरह पतंग बनाने और उडाना आम है I बच्चे-बूढ़े सब पतंग उड़ाते हैंI चीन में कई तरह की पतंगें बनतीं हैं पर ड्रैगन पतंग तो अनोखी होती है। लंबे-लंबे ड्रैगन पतंगें आसमान में गजब की निराली छटा बिखेरती हैं।