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रेडियो की महत्ता बरकरार
2013-09-10 14:41:38

वेइतुंगः आपका पत्र मिला प्रोग्राम सुनने वाले सभी श्रोताओं को वेइतुंग का नमस्कार।

सभी श्रोताओं को अनिल पांडेय का भी नमस्कार।

उम्मीद है कि आपको हमारा यह प्रोग्राम ज़रूर पसंद आ रहा होगा। जी हां, आपका पत्र मिला यानी आप सभी श्रोताओं को अपनी बात कहने का एक मंच है। इसलिए आप सभी के ई-मेल और पत्रों का हमें बेसब्री से इंतजार रहता है। लीजिए इसी के साथ शुरू करते हैं आज का कार्यक्रम, आज भी हमें कई श्रोताओं ने ख़त और ई-मेल भेजे हैं।

दोस्तों, इन दिनों सीआरआई द्वारा प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। इसमें तमाम श्रोता बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। लीजिए हम शामिल कर रहे हैं, उनके पत्र।

वेइतुंगः दिल्ली से जयंत चक्रवर्ती लिखते हैं कि मुझे चीन से प्यार है नामक प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हुए खुशी हो रही है। जैसा कि हम जानते हैं कि चीन का पांच हज़ार वर्षों से भी पुराना इतिहास है, जो कि अपनी संस्कृति, परंपरा आदि के लिए जाना जाता है। इस प्रतियोगिता के माध्यम से भी हमें चीन के प्रसिद्ध स्थल शीआन, ग्वांगतोंग, कैंटन, ह्वांगशान आदि के बारे में बहुत जानकारी हासिल हो रही है। ऐसे में मैं आज के आधुनिक चीन और ऐतिहासिक विरासतों के बारे और अधिक जानने के लिए उत्सुक हूं।

अनिलः इसी क्रम में पेश करते हैं अगली श्रोता का पत्र, जिनका नाम है, रजनी सिंगला, जो कि रामपुराफुल पंजाब से है। लिखती हैं कि

मैं पहली बार आपकी प्रतियोगता में भाग ले रही हूं, मुझे आपके सभी कार्यक्रम बहुत पसंद हैं और "मुझे चीन से प्यार है " के सभी लेख भी बहुत अच्छे लगे। और चीन की प्राचीन संस्कृति, इतिहास और विशेषता वाले स्वादिष्ट चीनी व्यंजनों से मुझे बहुत प्यार है। कुदरत के अनमोल खजाने के हर मोती चीन के इन पर्यटन स्थलों की शान हैं--जैसे की क्वांगतुंग, शीयान, ह्वांगशान, आदि स्थलों के पर्यटन का सफ़र किसी स्वप्नलोक की सैर से कम नहीं।

धन्यवाद, रजनी।

जबकि अगला पत्र भी पंजाब से ही आया है, भेजने वाली हैं, सोनिका गुप्ता। वे कहती हैं कि मैं सीआरआई का धन्यवाद अदा करना चाहती हूं कि क्योंकि हम प्रतियोगिता के माध्यम से न केवल जानकारी हासिल करते हैं, बल्कि ईनाम भी पाते हैं। प्रतियोगिता के जरिए चीन के सांस्कृतिक इतिहास और विरासत की ढेर सारी जानकारी मिली।

धन्यवाद।

वेइतुंगः रायपुर के हमारे श्रोता अशोक बजाज ने रेडियो श्रोता दिवस पर एक संगोष्टी का आयोजन किया। अपने ई मेल में लिखते हैं कि छत्तीसगढ़ रेडियो श्रोता संघ रायपुर के तत्वाधान में गत् 20 अगस्त को "संचार क्रांति के युग में रेडियो की प्रासंगिकता में श्रोताओं की भूमिका" विषय पर संगोष्ठी आयोजित हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश के वरिष्ठ रेडियो श्रोता एवं स्टेट वेयर हाउसिंग के अध्यक्ष अशोक बजाज ने की। इसमें वक्ता के रूप में जाने माने पत्रकार व संचालक हिंदी ग्रन्थ एकादमी रमेश नैयर, फिल्म निर्माता एवं निर्देशक मनु नायक, उपसंचालक संस्कृति व पुरातत्व विभाग राहुल सिंह और आकाशवाणी रायपुर के कार्यक्रम अधिशाषी समीर शुक्ला आदि ने भाषण दिए। सभा स्थल पर मनोहर डेंगवाणी द्वारा संग्रहित पुराने रेडियो की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। वर्ष 1947 के पूर्व के रेडियो सेटों को चालू हालत में देखकर सभी लोग हतप्रभ हो गए।

अनिलः इस अवसर पर अशोक बजाज ने कहा कि संचार क्रांति के इस युग में रेडियो की महत्ता को बरकरार रखने में श्रोताओं की मुख्य भूमिका है। रेडियो श्रोताओं की सक्रियता की वजह से ही रेडियो के कार्यक्रमों की गुणवत्ता कायम है। अन्य संचार माध्यमों की तरह रेडियो के कार्यक्रमों में फूहड़ता और अश्लीलता नहीं होती।

वेइतुंगः कार्यक्रम में हज कमेटी के चेयरमैन डा. सलीम राज, आकाशवाणी के एनाउंसर श्याम वर्मा, दीपक हटवार, सालोमन के अलावा ललित शर्मा, सुरेन्द्र हंसपाल, प्रकाश बजाज, विनोद वंडलकर, मोहन देवांगन, रतन जैन, सुरेश सरवैय्या एवं कमल लखानी के अलावा कई लोग मौजूद थे।

यहां बता दें कि प्रति वर्ष 20 अगस्त को रेडियो श्रोता दिवस के रूप में मनाने की परंपरा छत्तीसगढ़ के रेडियो श्रोताओं ने की है , अब भारत के कई हिस्सों में यह दिवस मनाने का सिलसिला शुरू हो गया है।

अनिलः बिहार के डाक्टर हेमंत कुमार ने अपने ई मेल में कहा कि भारत साधुओँ और महंतो का देश है,यहां के लोग इन पर अटूट विश्वास रखते है। लेकिन, हाल के दिनोँ मेँ कुछ साधुओ व महंतोँ के कारण पूरे साधु समाज को शर्मसार कर दिया है। कुछ इस तरह का मामला फिर प्रकाश मेँ आया है। इस बार महान संत आसाराम बापू पर दुष्कर्म के आरोप ने सभी को सकते में डाल दिया है। यह आरोप कोई और नहीँ, बल्कि बापू के ही आश्रम मेँ पढ़ने वाली छात्रा ने लगाया है। जिसने पूरे देश मेँ खलबली मचा दी है। हालांकि यह मामला झूठा भी हो सकता है या सच भी, लेकिन अगर यह जघन्य अपराध सच निकला, तो फिर इस दुनिया मेँ किसी पर भी विश्वास करना मानवीय भूल समझी जाएगी। खासकर संत का चोला पहनकर गंदा खेल खेलने वाले बाबाओँ की संख्या भारत मेँ ज्यादा है। जरुरी है संत के वेश मेँ छुपे भेड़ियोँ को खोज निकाला जाय, वरना आने वाला समय काफी दुर्भाग्यपूर्ण होगा।

वेइतुंगः अगले पत्र में हेमंत ने जन्माष्टमी के त्योहार पर सभी बधाई दी है, साथ ही लिखा है कि इस मौके पर कृष्ण को पूजा जाता हैँ, उनके जीवन की झांकियां पेश की जाती हैँ, लेकिन जीवन मेँ कृष्ण के संदेश को उतारा नहीँ जाता। कृष्ण का संदेश है कि जीवन उत्सव है, काम नहीँ, कर्तव्य का बोझ नहीँ। उनकी एक रासलीला है, नैतिक बंधन नहीँ। बचपन से लेकर अंत तक कृष्ण ने अपना जीवन रागरंग, नाच गान, शरारतें करते हुए बिताया। विश्व मेँ और किस भगवान के होठोँ पर बांसुरी है? कृष्ण ने बांसुरी को प्रतिष्ठा दी, रासलीला को सम्मान दिया।

अनिलः हेमंत में आगे लिखा है कि कृष्ण ने गंभीरता को हटा दिया और सहजता से जीना सिखाया, अपने आचरण से दिखाया कि प्रेम जिँदगी का रस है, खूब छककर पियो। इसलिए सहज जीवन जियो, प्रकृति ने जो भी वृत्तियां दी है उनका स्वीकार करके उनका आनंद लो, लेकिन भीतर लिप्त मत हो। हवाओँ मेँ स्वतंत्रता की तरंग है। नृत्य और संगीत, रागरंग जीवन शैली बन गई है। ऐसे मेँ कृष्ण का संदेश सार्थक मालूम होता है, अब दुखी मानसिकता नहीँ चलेगी। मनुष्य को छोड़कर सारा जगत देखता है कि जीवन एक उत्सव है। कृष्ण की पूजा न करेँ, उन्हेँ जीना शुरू करेँ। कृष्ण वृत्ति फैल जाए, तो दुनिया के बहुत से उपद्रव बंद हो जाऐँगे। दुनिया शांत और आनंदमय होगी।

वेइतुंगः हमारे मानिटर सुरेश अग्रवाल ने अपने ई मेल में कहा कि कार्यक्रम "आपका पत्र मिला" के अन्तर्गत आज मॉडल टाउन, दिल्ली की 86 वर्षीया प्रभा प्रसाद से अनिल पांडे द्वारा सुनवाया गया साक्षात्कार एक अहम् घटना रही। वर्ष 1951 से 54 तक चीन में अध्यापिका रहीं प्रभाजी अपने आप में एक जीता-जागता इतिहास हैं और उन्होंने चीन में रह कर वह दौर देखा है, जब अध्यक्ष माओ त्से तुंग एवं प्रधानमंत्री च्याउ इन लाइ का स्वर्णिम शासनकाल था। अक्टूबर दिवस के उपलक्ष्य में चेयरमैन माओ से मिलने का उनका अनुभव निश्चित तौर पर एक अविस्मरणीय घटना है.तब और अब के चीन पर उनके अनुभव स्पष्ट थे और उनकी बातचीत में काफी विद्वता झलक रही थी। बढ़ती उम्र का मानों उन पर कोई प्रभाव नहीं था और स्मरणशक्ति काफी तेज़ थी. अब तक तीन क़िताबें लिख चुकीं प्रभाजी की चौथी पुस्तक प्रकाशनार्थ प्रेस में है और लिखने का ज़ज्बा उनमें अब भी कम नहीं हुआ है। ऐसी महान शख्सियत के लिए स्वतः ही मुख से निकल जाता है कि -भगवान उन्हें स्वस्थ बनाये रखें। ऐसी अनूठी प्रतिभा से मिलवा कर आपने प्रसारण का सदुपयोग किया है, जिसके लिए आपका ह्रदय से आभार और साधुवाद।

अनिलः एक अन्य ई मेल में सुरेश ने कहा कि कार्यक्रम "चीन का तिब्बत" के तहत तिब्बती लिपि के इतिहास और उसकी विकासयात्रा पर दी गई जानकारी सुन अच्छा लगा कि इसके विकास में संस्कृत भाषा का भी योगदान है। ल्हासा स्थित पोताला महल के समक्ष खड़े फापांग खा पत्थर पर अंकित कोई तेरह सौ वर्ष पुरानी लिपि इस बात का संकेत है कि तिब्बती लिपि उससे भी पुरानी है। तिब्बती भाषा लिपि से जुड़े राजकुमार सुनचांग काम्पू तथा राजकुमारी वनछंग की कहानी भी काफी दिलचस्प है और उससे भी दिलचस्प है उनके उस मंत्री की कहानी। जो कि तिब्बती लिपि के लिए भाषा सीखने भारत गए और जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में भारत में सात साल बिताने के बाद ल्हासा की वापसी की। कार्यक्रम सुन तिब्बत के मशहूर थूपो राजवंश की कीर्ति का भी आभास मिला। कार्यक्रम के अंत में "तिब्बती लोकगीतों का संग्रह अभियान शुरू" शीर्षक रिपोर्ट के तहत यह जानकर अच्छा लगा कि चीन सरकार तिब्बत में सांस्कृतिक संरक्षण कार्यक्रम के तहत केंद्रीकृत तौर पर तिब्बती लोकगीतों का प्रसारण करेगी। यह एक ऐसा अभियान है जिसमे तिब्बती कलाकारों को अपनी आत्मक्षमता प्रदर्शित करने का मौक़ा मिलेगा।

वेइतुंगः झारखंड के एस बी शर्मा ने अपने ई मेल में कहा कि हाल में अखिल जी द्वारा पेश सामयिक चर्चा में 2013 में चीन में मानव-विकास संबंधी रिपोर्ट में चीन में शहरीकरण के चलते शहरों पर बढ़ते दबाव की चर्चा विशेष रूप से की गई है। वर्ष 1978 से 2012 तक चीन में शहरीकरण 17.9 प्रतिशत की दर से बढकर 52.6 प्रतिशत की दर तक हो गई है। यह रिपोर्ट यह प्रदर्शित करती है कि किस तरह चीन में लोगों का झुकाव शहरों की तरफ ज्यादा हो गया है, या यूं कहें तो लोग गांव से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। जिससे शहरों पर दबाव होना स्वाभाविक है, शहर में जब लोग आ कर बसते हैं तो उनके लिए भोजन बस्त्र और आवास के अलावा कई और चीजों की जरुरत होती है। जिसे पूरा करना बहुत कठिन होता है जैसे पीने का पानी, जीने के लिए हवा ये सब मुश्किलें एक शहर पर आती हैं। नतीजा साफ देखने को मिलता है, बीजिंग जैसे शहर में पीने के लिए रीसायकल पानी मिलता क्योंकि नदी या तालाब का पानी उतना है ही नहीं कि शहर की आवश्यकता को पूरा करे। पर्यावरण प्रदूषण भी एक आम समस्या है जिसे अकेले कोई सरकार पूरा नहीं कर सकती है अतः शहरों के बेहतर प्रबंधन के लिए सरकारों, उद्यमों और शहरवासियों को मिलकर कोशिश करने की जरूरत है। तभी शहरों पर बढ़ते दबाव को कम किया जा सकता है।

अनिलः एक अन्य ई मेल में एस बी शर्मा ने कहा कि मैंने एक रिपोर्ट सुनी कि चीनी सीखना क्यों जरुरी है और चीन सरकार चीनी सीखने वाले को क्या क्या सुविधा प्रदान कर रही है। अखिल जी के अनुसार चीन में लगभग 300 विश्वविद्यालयों में चीनी पढायी जाती है। इन विश्वविद्यालयों में पढने वाले छात्रों को चीन के लोगों से खासकर आम जनता से मिलने की इजाजत है। ताकि वे लोग चीनी संस्कृति को जान सकें और चीनी भाषा को समझ सकें । दूसरा चीनी भाषा को अंग्रेजी में भी पढ़ाया जाता है ताकि विदेशी छात्रो को सहूलियत हो। तीसरा शोध की पढ़ाई चीनी और अंग्रेजी दोनों भाषा में करायी जाती है। इसका मतलब यह है कि चीन सरकार भी चीनी भाषा सीखने वालों को जबरदस्त प्रोत्साहन दे रही है ताकि लोगों को चीन आने और चीनी सीखने में दिक्कत न हो। चीनी पढ़ने के दस कारण जानकर हमें अच्छा लगा। सही कहा कि वर्तमान में छात्रों को चीनी भाषा सीखकर जल्द से जल्द अच्छा करियर बनाना चाहिए जो सस्ता और सुगम है।

वेइतुंगः दोस्तो, अब बढ़ते हैं अगले पत्र की ओर। जो कि भेजा है पंजाब से श्रीपाल गर्ग ने। लिखते हैं कि मैं आपका बहुत पुराना श्रोता हूं,

और मैं हमेशा ही कहता हूँ की CRI सभी रेडियो स्टेशनों से बहुत आगे हैं और इसकी मिसाल आपने " चीन में मेरे अनुभव " ज्ञान प्रितियोगता " शुरू करके फिर से दे दी है।

हमारा क्लब एवं परिवार के सदस्यों की तरफ से आप सभी का धन्यवाद। मैं इस उम्मीद के साथ इस प्रतियोगिता में भाग ले रहा हूं कि मुझे भी ईनाम जीतने का मौका मिलेगा। इस प्रितियोगता के सभी निबन्ध अच्छे लगे पर उनमें से कुम्बुम मठ, कुम्बुम मठ में सुरक्षित भित्ति चित्र जो विभिन्न भवनों की दीवारों पर चित्रित है। छिंगहाई झील - वहां उपस्थित प्रवासी पक्षियों के साथ साइकलिंग प्रतियोगिता मन को मोह लेती है। फिर च्याय्युक्वान दर्रा लम्बी दीवार ,इसको बनाना और दर्रा को सुरक्षित रखना भी सराहनीय है। सुन्दर निंगशा का रेगिस्तान व झील तो देखते ही बनती है।

अनिलः इसी प्रतियोगिता के क्रम में हमें दिल्ली से अगला पत्र मिला है, मास्टर जयदीप का। उन्होंने एक कविता भेजी है।

शीर्षक है।

I LOVE CRI :

मामी पूछी राजू से, कहा लगा रखा है कान,

राजू कहा सुना उनको, वो तो सुन रहा था CRI का ज्ञान

छोड़ रखा था उसने खिलौना, होमवर्क तथा खान-पान,

क्योंकि उस दिन ही था, CRI प्रतियोगिता का परिणाम

उस दिन कर ली थी सारी पढ़ाई, उठ गया था सुबह वो जल्दी,

एक अच्छे बच्चे की तरह, छोड़ दी सारी शैतानी

दिल में उसकी थी बड़ी आशा , अनेक सपने और एक ख़्वाब

बैठा था वो रेडियो लेके, सोचना था प्रतियोगिता का जबाब

आखिरकर वो समय आया, जिसका था उसको इन्तजार,

धड़कनें हुई तेज,

दौड़ के गया मम्मी के पास,

बोला आज चमत्कार हुआ है

इस साल प्रतियोगिता का विजेता,

राजू घोसित हुआ है

......

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