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पर्यावरण संरक्षण के बिना विकास नहीं
2013-09-04 16:00:55

वेइतुंगः आपका पत्र मिला प्रोग्राम सुनने वाले सभी श्रोताओं को वेइतुंग का नमस्कार।

अनिलः सभी दोस्तों को अनिल पांडे का भी नमस्कार। उम्मीद है कि आपको हमारा यह प्रोग्राम ज़रूर पसंद आ रहा होगा। जी हां, आपका पत्र मिला यानी आप सभी श्रोताओं को अपनी बात कहने का एक मंच है। इसलिए आप सभी के ई-मेल और पत्रों का हमें बेसब्री से इंतजार रहता है। लीजिए इसी के साथ शुरू करते हैं आज का कार्यक्रम, आज भी हमें कई श्रोताओं ने ख़त और ई-मेल भेजे हैं।

अनिलः इसी क्रम में सबसे पहले पेश है, कुरुक्षेत्र, हरियाणा के मितुल कंसल का पत्र। वे लिखते हैं कि

पिछले दिनों आपका पत्र मिला प्रोग्राम सुना ।यह कार्यक्रम काफी रोचक था, अनिल जी की प्रस्तुति का अंदाज बहुत अच्छा था। मेरे विचार में सीआरआई न केवल समाचार सुनाने का काम करता है, बल्कि भारत एवं चीन दोनों देशों के परस्पर संबंधों को और अधिक घनिष्ठ बनाने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही सक्रिय श्रोताओं और प्रतियोगिता जीतने वालों को चीन की यात्रा करने का अवसर दिया जाता है ।

वेइतुंगः मितुल आगे लिखते हैं कि सीआरआई हर वर्ष ज्ञान प्रतियोगिताओं का आयोजन करता है ,जिससे मेरे ज्ञान में इजाफा होता जा रहा है। मैं वर्ष 2009 से आपका नियमित श्रोता हूं ।मैं हमेशा सीआरआई द्वारा आयोजित प्रतियोगिता और सर्वे में भाग लेता रहा हूं । कई बार प्रथम व द्वितीय पुरस्कार जीते हैं। मेरी आपसे गुजारिश है कि आप वेबसाइट को नियमित रूप से अपडेट किया करें ताकि सीआरआई से प्रेम करने वालों को मायूसी न हो ।यह वेबसाइट भारत तथा चीन के लोगों को आपस में एक दूसरे से जोड़ती है ।सीआरआई के माध्यम से चीन के राजनीतिक ,सामाजिक ,आर्थिक एवं सांस्कृतिक ढांचे को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। धन्यवाद।

अनिल जी, अगला ई-मेल हमें किसने भेजा है ?

अनिलः वेइतुंग जी, अगला ई-मेल उड़ीसा से हमारे मॉनिटर सुरेश अग्रवाल की ओर से आया है। सुरेश कहते हैं कि आपका पत्र मिला प्रोग्राम में प्रसारणों पर श्रोताओं से मिली तमाम प्रतिक्रियाओं के अलावा भागलपुर, बिहार के हेमन्त कुमार के प्रश्न पर चीन में परिवार नियोजन

कार्यक्रम पर दी गई जानकारी काफी सूचनाप्रद लगी। वहीं इस पूरे अंक

में सबसे महत्वपूर्ण प्रस्तुति श्रोताओं से बातचीत क्रम में अनिल जी द्वारा सियोल

(दक्षिण कोरिया) में रहने वाले झांसी के श्रोता भाई चन्द्र दर्शन जी से ली

गई भेंटवार्ता लगी। वास्तव में, सीआरआई के मंच से वर्षों बाद इतनी

अहम बातचीत सुनने को मिली। 1989 से कोरिया में रह रहे

चन्द्रजी के व्यक्तिगत जीवन-संघर्ष के अलावा उन्होंने भारत-कोरिया

संबंधों पर जो जानकारी प्रदान की, वह काफी अहम लगी। सियोल में

कोई बीस हज़ार भारतीय और ढाई सौ भारतीय रेस्तरां मौज़ूद हैं और वहां भारत

का नाम काफी सम्मान से लिया जाता है, आदि जानकारी एक भारतीय होने के नाते मुझे बहुत अच्छी लगी। बातचीत से पता चला कि चन्द्रज़ी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और चीन भी जाते रहते हैं, अतः आपसे आग्रह है कि इस बार वह जब भी चीन पधारें,उनसे भेंट अवश्य कराएं। धन्यवाद्। जी हां, सुरेश जी, अगर वे चीन आए, तो ज़रूर हम उन्हें ज़रूर आप लोगों से रूबरू करांएंगे। धन्यवाद।

वेइतुंगः एक अन्य ई-मेल में सुरेश लिखते हैं कि आज के समाचारों में मुझे तिब्बत में श्वेतन त्यौहार के दौरान रिकॉर्ड संख्या में वहां पर्यटकों के पहुंचने और पर्यटन से हुई आय में वृद्धि के समाचार ने काफी प्रभावित किया। क्योंकि तिब्बत की बदलती तस्वीर मुझे काफी समय से अपनी ओर आकृष्ट कर रही है."सामयिक चर्चा" के तहत आज विगत कुछ दिनों से भारत-पाकिस्तान के बीच नियंत्रण-रेखा पर पाकिस्तान द्वारा की जा रही गोलीबारी पर की गई चर्चा अधूरी लगी, हमें मामले के हर पहलू पर विस्तृत चर्चा की अपेक्षा थी। कार्यक्रम "मैत्री की आवाज़" के तहत 6 अगस्त को अलवर, राजस्थान के युवा पत्रकार विजय से भाई पंकज श्रीवास्तव द्वारा की गई बातचीत का इतना ज़ल्दी दोहराना उचित नहीं जान पड़ा. सम्भव है कि नए श्रोता इसे पसन्द करें, परन्तु हम जैसे नियमित श्रोता यही चाहेंगे कि किसी भी अंक के पुनर्प्रसारण में कुछ तो अन्तराल होना ही चाहिये। धन्यवाद्।

अनिलः इसी के साथ फिर से वक्त हो गया है, अगले ख़त का। जो आया है, भागलपुर बिहार से, इसे भेजने वाले हैं, डॉ. हेमंत कुमार। विश्व मानवता दिवस के बारे में लिखा है। सबसे पहले हम हेमंत से रिक्वेस्ट करना चाहते हैं कि जब भी पत्र लिखें तो कृपया हिंदी में लिखें, आप रोमन में लिखते हैं या अंग्रेजी में, इससे यहां पढ़ने में ज्यादा समय लगता है। मुझे लगता है कि आपके पास ज़रूर हिंदी फांट होगा, अगर नहीं हो तो इसे डाउनलोड करें धन्यवाद।

हेमंत आगे लिखते हैं कि विश्व मानवता दिवस दुनिया में खतरे का सामना कर रहे और मुश्किल हालात में जी रहे लोगों को पहचानने और उन्हें मदद देने के लिए है। इस दिवस को 2003 में बगदाद स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय पर हुई बमबारी के रूप में भी याद किया जाता है। उम्मीद है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय अपनी जान गंवाने वाले उन दर्जनों एड वर्करों को याद करेगा।

उन्होंने अंग्रेजी में एक कविता भी लिखी है, जिसे हम अनुवाद कर हिंदी में पेश कर रहे हैं।

कविता इस तरह है

भाग्य आपके हाथ में नहीं होता

लेकिन कर्म आपके हाथों में होता है

आपका कर्म या कार्य आपका भाग्य बना सकता है

इसलिए हमेशा खुद पर यकीन करो

और अपना दिन शुरू करो।

कविता भेजने के लिए धन्यवाद। वाकई सही कहा कि भाग्य तो हम अपने कर्मों से बना सकते हैं। ज़रूरत बस इस बात की है, कर्म किया जाय।

इसके साथ ही असम के जोरहट के पृथ्वीराज पुरकायस्थ, असम, सोनीपुर के जियु राज बासुमातरे, पश्चिम बंगाल के रतन कुमार पॉल और मुजफ्फरगढ़, पाकिस्तान के मोहम्मद यासिर हाशमी आदि ने भी हमें पत्र भेजे हैं।

आप सभी का धन्यवाद।

अनिलः अगला पत्र, ढोली सकरा ,बिहार से दीपक कुमार दास ने भेजा है। वे कहते हैं कि 20 अगस्त को चीन का तिब्बत कार्यक्रम के अंतर्गत नेपाली पत्रकार सुबोध गौतम से भेंटवार्ता में तिब्बत के विकास पर चर्चा सुनी ।सार्थक लगी।आप सभी को पता है कि 62 वर्षों में चीन के केंद्रीय सरकार ने तिब्बत से एक पैसे का लाभ नहीं कमाया है ,परंतु तिब्बत के विकास के लिए अधिक से अधिक वित्तीय सहायता देती रही है। तिब्बत में अब तक चीन सरकार तीन खरब 70 लाख युआन का योगदान दे चुकी है, साथ ही प्रत्यक्ष निवेश में एक खरब 80 अरब युआन खर्च किए हैं, जो एक रिकार्ड है ।साथ ही तिब्बत में पूंजी निवेश का आकर्षण अधिक बढ़ा है । ऊर्जा ,खाद्य प्रोसेशिंग ,जातीय शिल्प उद्योग और तिब्बती औषधि एवं चिकित्सा में विशेष उद्योग का बडा विकास हुआ है और उनके उत्पाद देश-विदेश के बाजार में भी लोकप्रिय हो रहे हैं। कई तिब्बती कंपनियों ने देशी-विदेशी शेयर बाजारो में भी अपना स्थान बनाया है ।आज तिब्बत में आर्थिक विकास और सामाजिक उदारता से युवाओं के लिए जीवन के तरीके चुनने के अनेक विकल्प उत्पन्न हुए हैं।

श्याओ थांग जी की प्रस्तुति अच्छी लगी।

वेइतुंगः

दास जी ने एक अन्य पत्र में अपने क्लब की एक हालिया गतिविधि के बारे में जानकारी दी है ।उन्होंने कहा कि 19 अगस्त को अपोलो रेडियो क्लब के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे पौधारोपण किया गया ,जिसमें सागवान ,आम और लीची के पौधे लगाये गए। साथ ही आम लोगों को पौधारोपण के लिए प्रोत्साहित किया गया । और सीआरआई हिंदी सेवा का प्रचार-प्रसार किया गया । इस दौरान क्लब के अध्यक्ष ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के बिना हम स्थायी विकास भी नहीं कर सकते हैं ।वन प्रेरणा और अच्छे स्वास्थ्य के स्रोत हैं और स्वच्छ पर्यावरण प्रकृति का अनुशासित उपहार हैं ।वायु प्रदूषण से श्वास संबंधी रोग बढ़े हैं तो ध्वनि प्रदूषण से बहरापन ।आज हमारी जमीन तप रही है ,हवा गर्म होती जा रही है और मौसम अपना स्वरूप बदलता जा रहा है ।हम सभी अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाएं तो हमारा जीवन बच सकता है। दीपक जी से सही बात कही, वाकई में हमें अपने पर्यावरण को बचाने के लिए आगे आने आना होगा। धन्यवाद।

अनिलः दोस्तों, हाल ही में भारत समेत दुनिया के कई देशों में रक्षाबंधन का पर्व मनाया गया। भाई-बहिन के रिश्ते को मजबूत बनाने वाले इस त्योहार के मौके पर हमारे श्रोताओं ने भी पत्र भेजे हैं। इनमें बिहार से डॉ. हेमंत कुमार और पश्च्मि बंगाल की मनीषा चक्रवर्ती आदि शामिल हैं।

हेमंत ने रक्षाबंधन यानी राखी के त्योहार पर जानकारी दी है, लिखते हैं कि हिंदुओं का यह त्योहार भारत, मॉरीशस, नेपाल समेत कई देशों में मनाया जाता है। खासकर जहां भी हिंदू रहते हैं। भारत में इसे राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में भी लोग इसे मनाते हैं। हालांकि हिंदुओं के साथ-साथ जैन व सिख लोग भी इसे मनाते हैं। वैसे रक्षा बंधन का ऐतिहासिक महत्व भी है, पुराने समय में राजपूत रानियां, पड़ोस के शासकों को भाई के तौर पर राखी का धागा भेजा करती थी, यह पवित्र धागा, बहिन द्वारा अपने भाई की कलाई पर बांधा जाता है। यह त्योहार सावन महीने में पूर्णिमा के दिन पड़ता है।

वेइतुंगः वहीं मनीषा चक्रवर्ती ने अपने ई मेल में सभी को रक्षाबंधन की बधाई दी है। लिखा है कि भाई-बहन के बीच मोहब्बत और घनिष्ठ रिश्ते को दर्शाता रक्षाबंधन - यह बंधन एकता, भाईचारा, प्रेम और सहभागिता को भी प्रकट करता है।। राखी का त्योहार आज भारत के कोने-कोने में प्रेम के प्रतीक के रूप में मशहूर है। और इसी शुभ अबसर पर मैं सीआरआई हिन्दी विभाग के सभी भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हूं और आप सभी लोगों के लंबी आयु की कामना करती हूं। मनीषा जी आपने इतने प्रेम से राखी का धागा हमें भेजा है, भला इसे कैसे नहीं पहनते। धन्यवाद।

अनिलः रक्षाबंधन पर पत्रों के बाद आगे बढ़ते हैं, अगला ई-मेल भेजा है मो. असलम ने, लिखते हैं कि मैं आपकी वेबसाइट से लगातार जुड़ा हुआ हूं, विस्तार से ई-मेल नहीं भेज पा रहा हूं, इसकी वजह इंटरनेट कनेक्शन और मेरी अपनी व्यस्तता भी है। फिर भी मैं आने वाले समय में भी आपके साथ जुड़ा रहूंगा।

धन्यवाद।

वेइतुंगः असलम के ई-मेल के बाद लीजिए पेश है, जमशेदपुर, झारखंड के एस.बी.शर्मा का मेल। लिखते हैं कि पिछले दिनों मैं आपके रेडियो के साथ रोजमर्रा की चीनी भाषा सीख रहा था, उसी दौरान वेइतुंग जी ने चीनी संस्कृति पर प्रकाश डाला, उन्होंने बताया कि कलाबाजी चीनी संस्कृति का अभिन्न अंग है पहले लोग चीन के गलियों और सड़कों पर कलाबाजी करते नजर आते थे, अब वह संस्कृति का अहम पार्ट बन गया है जो लोगों के जीवन में रस बस गया है लोग इसमें निपुणता हासिल कर चुके हैं। साथ ही कलाबाजी में और निखार आ गया है। इस समय चीन में लगभग दस हजार कलाबाजी टोलियां है जो देश और विदेश में कलाबजियां दिखाती हैं। अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद।

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