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कब शुरू हुआ चॉपस्टिक का यूज़
2013-08-07 10:17:54

आपका पत्र मिला प्रोग्राम सुनने वाले सभी श्रोताओं को वेइतुंग का नमस्कार।

सभी श्रोताओं को अनिल पांडे का भी नमस्कार।

दोस्तो ,क्या आप चीन से जुडे रोचक अनुभव और कहानी दूसरों के साथ शेयर करना चाहते हैं। क्या आप पेइचिंग आकर लंबी दीवार और पुराना संग्रहालय (फोर्बिडन सिटी) देखना चाहते हैं। क्या आप पेइचिंग डक का स्वाद चखने के अलावा आम चीनियों के जीवन का अहसास करना चाहते हैं।

अगर हां तो आपके लिए एक अच्छा मौका है। हमारी ईनामी लेखन प्रतियोगिता में भाग लेने पर आपका यह सपना पूरा हो सकता है। और आपको गिफ्ट के अलावा चीन का दौरा करने का मौका भी मिल सकता है।

ध्यान रहे यह ईनामी लेखन प्रतियोगिता सिर्फ दक्षिण एशिया के श्रोताओं के लिए आयोजित की जा रही है। आलेख का विषय चीन से जुड़ी कहानी या अनुभव या विचार हो सकता है। जो कि कम से कम 800 शब्द होना चाहिए। इसके साथ संबंधित फोटो भी भेजें। अगर आप अपनी आवाज में चीन से जुड़ी कहानी या अनुभव सुनाना चाहते हैं ,तो हमें फोटो के साथ ऑडियो व वीडियो क्लिप भी भेज सकते हैं।

यह गतिविधि 30 सितंबर 2013 को समाप्त होगी । इसमें कुल पांच विशेष पुरस्कार विजेता होंगे ,जो मुफ्त पेइचिंग की एक सप्ताह की यात्रा करेंगे ।इसके अलावा 10 प्रथम ईनाम ,20 दूसरा पुरस्कार और 30 तीसरा पुरस्कार भी जीत सकते हैं। इस ईनामी लेखन प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी श्रोताओं का स्वागत है।

हमारा ई मेल है : hindi@cri.com.cn

वेइतुंगः दोस्तो, इसके बाद लीजिए पेश है, श्रोताओं के पत्र। लीजिए, सबसे पहले पेश है, मॉनिटर सुरेश अग्रवाल का पत्र। वे लिखते हैं कि कार्यक्रम "चीन का तिब्बत" के अन्तर्गत गत 14 जुजाई को बीजिंग में आयोजित तिब्बती जाति की प्रसिद्ध थांगखा चित्रकला प्रदर्शनी पर दी गई जानकारी बहुत ज्ञानवर्धक लगी। रंगीन रेशमी कपड़े पर उकेरी जाने वाली उक्त चित्रकला का जन्म सातवीं शताब्दी में छिंगहाई प्रान्त में हुआ.थांगखा के बारे में यह तथ्य भी रोचक लगा कि पहले यह मात्र पारिवारिक रहस्य था और अब इसका प्रशिक्षण सभी को दिया जाता है। और विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी इसे स्थान दिया गया है.इसे गैरभौतिक सांस्कृतिक विरासत का दर्ज़ा भी हासिल है। भगवान बुद्ध की कथाओं पर आधारित इस अनूठी चित्रकला थांगखा पर विस्तार से जानकारी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद्।

कार्यक्रम के अन्त में विगत दिनों तिब्बत के दौरे पर गए नवभारत टाइम्स के राजनयिक सम्पादक रंजीत कुमार से तिब्बत के बदलते स्वरुप पर आज पुनः बातचीत सुनने का मौक़ा मिला। वास्तव में,तिब्बत पर जितनी भी जानकारी हासिल हो, सुनते-सुनते मन नहीं अघाता। बातचीत में एक अहम् तथ्य सामने यह आया कि तिब्बती संस्कृति को नष्ट किये जाने के आरोपों का रंजीत कुमार द्वारा खण्डन किया गया.पूरी बातचीत सुनवाने हेतु धन्यवाद्।

अनिलः साप्ताहिक "चीन की झलक" के अन्तर्गत चीन पढ़ने गये भारतीय छात्र विकास सिंह, जिनका चीनी नाम वे हन बतलाया गया, की कहानी सुन तबीयत खुश हो गई.महसूस हुआ कि विगत शताब्दी में डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस, कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ ठाकुर और जवाहरलाल नेहरु तक भारतीय नेताओं द्वारा की गई चीन यात्रा और उसी अनुपात में चीनी मनीषियों का भारत आगमन दोनों देशों के सम्बन्ध आगे बढ़ाने में कितना अहम् रहा है। आज भले ही सफ़र आसान हो गया है, उस समय भारत चीन के बीच कोई छह हज़ार किलोमीटर लम्बा फासला कितना दुरूह रहा होगा, सहज ही कल्पना की जा सकती है। यह जानकर ख़ुशी हुई कि वर्ष 2012 में छात्रवृत्ति तथा अन्य साधनों से कुल 10,237 भारतीय छात्र चीन पढ़ने गये। बिलकुल सही है कि भाषा और संस्कृति के बीच गहरा सम्बन्ध होता है और आप तब तक किसी देश के इतिहास को नहीं जान सकते, जब तक कि आप उसकी भाषा नहीं जानते। मुझे वे हन की धाराप्रवाह चीनी सुन गर्व की अनुभूति हुई। मेरी तमाम शुभकामनाएं उनके उज्जवल भविष्य के लिए हैं।

वेइतुंगः इसके साथ ही कार्यक्रम में चीन में चाय पीने की आदतों पर अखिल जी द्वारा पेश विशेष रिपोर्ट काफी महत्वपूर्ण लगी. चीन में चाय पीने के कोई चार हज़ार वर्ष पुराने इतिहास और मेहमानों को चाय पिलाने के ख़ास रिवाज़ पर दी गई जानकारी काफी दिलचस्प थी। यह तथ्य भी काफी ज्ञानवर्धक था कि चीन में चाय की खोज़ ईसा पूर्व 2737 में हुई थी और कालान्तर में थांग तथा छिंग राजवंशों सहित विभिन्न चीनी राजवंशों द्वारा इसके चलन में उल्लेखनीय योगदान किया गया। कार्यक्रम में चीन में तरह-तरह की चाय और पीने के अलावा खाने की भी चाय होती है, पर रोचक जानकारी हासिल हुई. सचमुच चीन अनूठा है।

अनिलः पश्चिम बंगाल, फरीदुपर से हमें सिराजुल इस्लाम ने शायरी भेजी है ।

मेरी आंखों में प्यास रहने दे

जिंदगी बद हवास रहने दे

छोडदे मुझ को मेरी हालत पर

मत तरस खा उदास रहने दे

वह कभी लौटकर ना आएगा

उस के जाने की आस रहने दे

प्यार करना हमें न आएगा

यह हुनर अपने पास रहने दे

जिंदगी के शराब खाने में

मेरा खाली गिलास रहने दे

दोस्ती प्यार आशिकी जावेद

कुछ न आएगा रास रहने दे

शायरी बहुत अच्छी है ,लगता है कि सिराजुल ने प्यार में डूब कर यह शायरी लिखी है।

इसके साथ ही हमें बाबू लिस्नर्स क्लब की ओर से भेजा गया पत्र भी मिला है। हालांकि इसमें किसी जगह या व्यक्ति का नाम नहीं लिखा है। हालांकि कहते हैं कि मैं आपका नियमित श्रोता हूं, मुझे आपके प्रोग्राम अच्छे लगते हैं, पत्र लिखने के लिए धन्यवाद, कृपया अगली बार ख़त भेजें तो अपना नाम व पता साफ-साफ ज़रूर लिखकर भेजें।

वेइतुंगः वही अब अगला पत्र पढ़ते हैं। पत्र में लिखा है कि मैं सीआरआई हिंदी विभाग की नियमित श्रोता हूँ ।"मुझे चीन से प्यार है" टैलेंट शो और ज्ञान प्रतियोगिता " आयोजन करने के लिए चाइना रेडियो इंटरनेशनल को हार्दिक धन्यवाद। रेडियो पर आपके समाचार बहुत अच्छे व रोचक लगते हैं। आपके सभी कार्यक्रम विशेष रूप से चीन का भ्रमण ,टॉप फाइव, आपका पत्र मिला और आपकी पसंद आदि प्रोग्राम मुझे अच्छे लगते हैं। आपके रेडियो प्रोग्राम के माध्यम से चीन के बारे में व्यापक जानकारी हासिल होती है। उन्होंने लिखा है कि वे एक गृहणी हैं, लेकिन नाम और पता नहीं लिखा है। हालांकि उन्होंने एक कविता भेजी है।

कविता:-

मुझे चीन से प्यार है

मुझे मुस्कान भरी

चीन से प्यार है।

चीन का सुन्दर

दृश्य ताजगी दिल में,

पांच दृश्य का है।

ह्वांगशान सुन्दर दृश्य में

शीआन का ठंडा नुडल्स

हर दिल को भाता है।

शांगहाई का उच्चन कम्बे का

किरण की लालिमा,

सुन्दर नदी के किनारा

गर्मी में मौसम सुहाना

गुलाब, चमेली से हुआ

सुशोभित सूर्य-वेला।

मुस्कान भरी ताजगी

दिल में जगाता है।

चीन का यात्रा हमें

घर बैठे मुफ्त में

सी आर आई कराता।

चीन की सम्पता दात कराता

मुझे मुस्कान भरी

चीन से सच्चा प्यार है।

अनिलः दोस्तो, इसी के साथ फिर से वक्त हो गया है, अगले ख़त का। जो भेजा है, बिहार से मुकुंद कुमार तिवारी ने। वे लिखते हैं श्रोता मंच कार्यक्रम के उद्धोषक अनिल और वेइ तुंग भाई को मेरा प्यार भरा नमस्कार। अपार हर्ष के साथ लिख रहा हूं कि इस साल सीआरआई ने जो बदलाव किया है ,वो काफी प्रशंसनीय है । सचमुच में श्रोता मंच हम श्रोताओं के दिल से जुडा है ।पत्र के लिए शुक्रिया ।आशा है कि अधिक से अधिक श्रोता हमारे कार्यक्रम के प्रति टिप्पणी करेंगे और अपने दिल की बात कहेंगे ।

वेइतुंगः वहीं अगला पत्र भी बिहार से ही आया है। कामाख्या महतो कहते हैं कि मैं सीआरआई का एक नया श्रोता हूं ।मैं चीन के बारे में अधिक से अधिक जानने को लालायित हूं ।मेरा नाम व पता सूची में भी जोड़ दें ।मैं 50 लोगों के साथ मिलकर एक श्रोता क्लब भी बनाना चाहता हूं ।पत्र के लिए धन्यवाद । पत्र व ई मेल के ज़रिए हमें क्लब के बारे में अधिक जानकारी दे सकते हैं।

अनिलः साथ ही अब हुगली, पश्चिम बंगाल से मनीषा चक्रवर्ती का ख़त। उन्होंने अपने पत्र में कहा कि मैं डिग्री कालेज में अंग्रेजी ऑनर्स में प्रथम वर्ष की छात्रा हूं। मैं आप लोगों कार्यक्रम भारतीय समय रात साढे 9 बजे प्रतिदिन सुनती हूं ।मैं अपनी कालेज की दोस्तों को सीआरआई हिंदी कार्यक्रम सुनने के लिए प्रेरित करती हूं ।आप लोगों की वेबसाइट हर शनिवार एवं रविवार को देखती हूं ।मेरी तरफ से आप लोगों के लिए कुछ सुझाव हैं ।पहला ,नये श्रोताओं को और करीब लाने के लिए चीन के कालेज एवं शिक्षा प्रतिष्ठानों के बारे में ज्यादा से ज्यादा खबरें प्रसारित करें। वहीं चीन सरकार की स्कालरशिप किस तरह मिलती हैं ।इस बारे में कालेज कैंपस नाम से एक कार्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव भी है। दूसरा ,सोमवार को चीन का भ्रमण कार्यक्रम घर में बैठकर चीन घूमने का एक बहुत ही बढिया कार्यक्रम है ।इस कार्यक्रम के अंत में एक साप्ताहिक क्विज रखने से प्रोग्राम श्रोताओं के बीच और भी लोकप्रिय होगा ।तीसरा ,चीन में 43 प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक स्थल है जो यूनेस्को वर्ल्ड हैरिटेज की सूची में शामिल हैं। एक एक जगह के बारे में रिपोर्ट बनाकर पेश करें। धन्यवाद । मनीषा जी आपके महत्वपूर्ण सुझावों के लिए धन्यवाद।

वेइतुंगः वहीं जमशेदपुर, झारखंड से एस.बी.शर्मा ने भी हमें पत्र भेजा है, कहते हैं मैंने शुक्रवार को पंकज जी द्वारा प्रस्तुत साउथ एशिया फोकस कार्यक्रम सुना जो अमेरिकी उप राष्ट्रपति जो बिडेन के भारत आगमन और उसका औचित्य पर आधारित था। पंकज ने इस सन्दर्भ में भारतीय बिशेषज्ञों से बातचीत भी की कि आखिर भारत में ऐसा क्या है कि अमेरिकी महकमा दिल्ली का दौर कर रहा है काफी दुनिया को रोजगार देने का दावा करने वाला अमेरिका अब अपने नागरिकों को रोजगार देने के लिए भारत से सौदा कर रहा है। जिसमें रक्षा के साजो सामान आदि का ऑर्डर आदि शामिल है। ताकि भारत से प्राप्त आर्डर से अमेरिका की अर्थ ब्यवस्था पटरी पर रहे और उनके देश में रोजगार भी बढे। इतना ही नहीं बिडेन ने मुंबई में भारतीय व्यापार जगत को संबोधित करते हुए भारत से विदेशी निवेशकों के लिये बाज़ार खोलने, बौद्धिक संपदा अधिकार के संरक्षण को आगे बढाने, और अमरीका-भारत के बीच आर्थिक और व्यापारिक वृद्धि होने का लक्ष्य पूरा करने की बात कही। इतना ही नहीं उन्होंने भारत से यह अपील भी की कि वह और अधिक क्षेत्रों में अमेरिकी कंपनियों की सीमा कम करे, ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार की बाधाओं को कम किया जा सके। और भारत की निर्भरता अमेरिका पर बढे और इसका फायदा अमेरिका को मिले बार्ट को इन परिस्थितियों में काफी सजगता से काम लेना होगा ताकि भारतीय आर्डर का गलत इस्तेमाल अमेरिका न करे और हम अमेरिका पर निर्भर न हों बल्कि भारत को अपने आप में आत्म निर्भर होने वाले कदम उठाने चाहिए।

अनिलः वहीं चॉपस्टिक पर दी गई जानकारी काफी रोचक लगी। यह निजी चॉपस्टिक संग्रहालय पूर्वी चीन के शांगहाई शहर के त्वो लुन रोड के सांस्कृतिक हस्ती सड़क पर स्थित है । चॉपस्टिक के इतिहास और विकास से संबंधित कई रोचक विषय इसमें शामिल किये गए हैं। इस म्यूजियम में बांस , लकड़ी , धातु , जेट व हड्डियों से तैयार दो हजार जोड़ी चॉपस्टिकों का संग्रह हैं , जिनमें हजारों वर्ष पहले थांग राजवंश से कोरिया , जापान और थाइलैंड के विविधतापूर्ण चॉपस्टिक भी शामिल हैं। आज के चॉपस्टिक का इतिहास आज से तीन हजार सौ साल पुराना है। जब हाथी के दांत से चॉपस्टिक बनता था जिसे सबसे पहले तत्कालीन श्यांग राजवंश के अंतिम सम्राट ने इस्तेमाल किया था । पुराने ज़माने में चॉपस्टिक नव दम्पति को दहेज़ या गिफ्ट में दिया जाता था और ऐसा सोचा जाता था कि नव दंपति हमेशा के लिये जोड़ी के रुप में सुखी रहेगा। चॉपस्टिक का दूसरा अर्थ है कि नव दंपति जल्दी से बच्चे को जन्म देगा ।

अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद।

इसके बाद हमें जो पत्र आया है, वह बांग्लादेश से। भेजने वाले हैं, एम एन सेंतु, जो कि पेशे से एक शिक्षक हैं। लिखते हैं कि हमें "मुझे चीन से प्यार है" प्रतियोगिता के बारे में जानकर अच्छा लगा। इससे चीनी संस्कृति के बारे में अधिक जानने का मौका मिलेगा।

धन्यवाद।

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