आपका पत्र मिला प्रोग्राम सुनने वाले सभी श्रोताओं को वेइतुंग और अनिल पांडेय का नमस्कार।
दोस्तो, इसी के साथ शुरू करते हैं आज का प्रोग्राम।
जैसा कि आप जानते होंगे कि आज अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस है, जो कि मई दिवस के रूप में भी जाना जाता है। इस मौके पर हम दुनिया भर के मज़दूरों व कामगारों को सलाम करते हैं। चीन में मई दिवस पर सार्वजनिक अवकाश है । और यह समय पर्यटन यानी सैर-सपाटे के लिए बहुत अच्छा कहा जा सकता है। क्योंकि आजकल मौसम भी बेहतर हो गया है, विशेषकर उत्तर चीन में ठंड का असर कम हो चुका है।
अनिल जी, क्या भारत में यह दिवस मनाया जाता है ?
जी हां, भारत ही नहीं, यह दुनिया भर में श्रमिकों के लिए एक बड़ा अवसर होता है, क्योंकि इसी दिन से उनके कामकाज के 8 घंटे निर्धारित किए गए। अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि, यह मज़दूरों द्वारा किए संघर्ष की स्मृति में मनाया जाता है। वैसे श्रमिकों की छुट्टी (श्रम दिवस) का विचार 1856 में ऑस्ट्रेलिया में शुरू हुआ, जो कि धीरे-धीरे दुनिया भर में फैल गया। और 1886 में अमेरिका के शिकागो में हुई तीन दिवसीय आम हड़ताल के बाद यह एक प्रतीक बन गया। यहां बता दें कि इस हड़ताल में दो लाख 16 हज़ार मज़दूर, कारीगर, व्यापारी और आप्रवासी आदि शामिल हुए थे। पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने से हुई चार हड़ताली मज़दूरों की मौत, जो कि बलिदान के रूप में भी जाना जाता है। इस तरह दुनिया भर के मज़दूरों को छुट्टी और काम के घंटे तय हुए।
दोस्तो, मई दिवस पर अगर आप कुछ कहना चाहते हैं या अपने विचार साझा करने के इच्छुक हैं, तो पैन उठाईए या सीधे हमें ई-मेल कीजिए। धन्यवाद।
मई दिवस की जानकारी के बाद वक्त हो गया है, श्रोताओं द्वारा भेजे गए पत्र और ई-मेल पढ़ने का। इसी क्रम में सबसे पहले पेश है, रामपुरा फुल पंजाब के बलबीर सिंह का पत्र। वे लिखते हैं कि साल 2012 भारत चीन संबंधों के लिहाज से अच्छा रहा। इसके साथ ही वर्ष 2013 भी भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार के लिए बेहतर रहने की उम्मीद है। क्योंकि व्यापार में घाटा होने की भारत की चिंताओं को चीन ने दूर करने का वादा किया है। गौरतलब है कि 2012 के पहले दस महीनों में भारत को 23 अरब डालर का घाटा हुआ। वैसे भारत चीन के बाज़ार में तकनीक, दवाइयां और कृषि उत्पाद बड़े पैमाने पर उतारना चाहता है। उम्मीद है कि सीमा विवाद को सुलझाने के लिए चीन की नई सरकार सार्थक कोशिश करेगी। वर्ष 2013 में भारत चीन के बीच हर क्षेत्र में ताल-मेल और बढ़ेगा।
यहां बता दें कि, दोनों देशों के लोग भी एक दूसरे में विशेष रूचि रखते हैं, क्योंकि दोनों सबसे प्राचीन सभ्यता वाले देश हैं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान चाहते हैं।
बलबीर ने जो बात कही है, वह एकदम सही है। इधर के कुछ सालों में चीन-भारत संबंधों का तेज विकास हुआ है, खासकर व्यापारिक क्षेत्र में। गत वर्ष द्विपक्षीय व्यापार 60 अरब डॉलर से अधिक था। यह भी महत्वपूर्ण बात है कि चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। दोनों देशों ने वर्ष 2015 तक व्यापार 1 खरब डॉलर पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस साल मार्च में ली ख छांग के चीनी प्रधानमंत्री बनने के बाद मनमोहन सिंह ने उन्हें बधाई देने के लिए फोन किया, जो कि पहले विदेशी नेता थे। दोनों ने फोन पर आधे घंटे से अधिक समय वार्ता की। इस मार्च के अंत में दक्षिण अफ्रीका में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी चिन फिंग ने मनमोहन से मुलाकात की। इस सबसे जाहिर है कि चीन और भारत द्विपक्षीय संबंधों को बडा महत्व देते हैं। ऐसे में चीन-भारत संबंधों का और तेज़ विकास होगा।
इसके बाद अब बारी है, अगले ख़त की। जो कि भेजा है, रवींद्र कुमार शुक्ला ने। उन्होंने चीन-भारत दोस्ती पर एक कविता लिखी है।
नफरत से हम सबको दूर करती है मित्रता ,
सबके जीवन में खुशियों भरती है मित्रता।
सफलता के नित नए पथ खोलती है मित्रता ,
हर मुश्किल को आसान कर देती है मित्रता ।
दो देशों के लोगों के दिलों को जोड़ती है मित्रता ,
दो देशों की परस्पर दुश्मनी को तोड़ती है मित्रता ।
दो देशों के बीच हर दीवार गिरा देती है मित्रता ,
सारी दुनिया की प्रगति व खुशहाली का राज है मित्रता ,
भाई-भाई बन कर सब रहें यह सिखाती है मित्रता ,
जाति धर्म की सब दीवारें गिरा देती है मित्रता ।
मनुष्य के निरंतर विकास की चाभी है मित्रता ,
इस पृथ्वी पर प्रेम, शांति व एकता के फूल खिलाती है मित्रता ।
रवींद्र जी कविता भेजने के लिए आपका धन्यवाद।
रवींद्र की कविता के बाद पेश है, पश्चिम बंगाल के श्रोता रवि शंकर बसु का पत्र। उन्होंने सीआरआई की वेबसाइट पर चीन की लंबी दीवार की फोटो देखकर अपने अनुभव बांटना चाहा है। वे लिखते हैं कि मैंने 27 नंवबर, 2012 की सुबह सीआरआई हिंदी विभाग के कर्मचारी रमेश जी के साथ विश्वविख्यात लंबी दीवार का दौरा किया और धरती पर मानव द्वारा बनाये गए इस महान निर्माण को देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैं जब प्राइमरी स्कूल का छात्र था तब से लंबी दीवार को देखने की इच्छा थी। इस महान दीवार (ग्रेट वॉल) का निर्माण चीन के प्रथम सम्राट छीन शी हुआंग के शासनकाल (220-206 ई.पू.) में किया गया था, और मिंग राजवंश के काल में इसका पुनर्निर्माण किया गया। इस दीवार की लंबाई लगभग 6700 किमी. है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार छिंग राजवंश से मिंग राजवंश तक कुल 20 से ज्यादा राजवंशों ने इसका निर्माण किया। लंबी दीवार की ऊंचाई व चौड़ाई अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है। दीवार के ऊपर आम तौर पर चार घोड़े एक साथ चल सकते थे, इसलिये इसकी चौड़ाई लगभग चार या पांच मीटर है। ताकि युद्ध के समय अनाज व हथियार आदि सामान आसानी से भेजा जा सके। मेरे लिए यह बड़ी ख़ुशी की बात है, मैं लम्बी दीवार पर चढ़ सका। यह अनुभव हमेशा मेरे जहन में ताज़ा रहेगा।
दोस्तो, लीजिए फिर से वक्त हो गया एक और कविता का। जो कि भेजी है, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र से अमोल मुरलीधर निमसड़कर ने। मुझे लगता है अमोल शायद सीआरआई के नए श्रोता हैं। अमोल जी, यह बड़ी अच्छी बात है कि आप जैसे श्रोता भी हमसे जुड़ रहे हैं।
उनकी कविता का शीर्षक है,
जब तब की उम्मीद
जब उम्मीद की उम्र हो जाती है,
तब ख्वाहिश भी बूढ़ी नजर आती है।
जब ज्ञान की जवानी ने बिस्तर छोड़ा,
तब तजुर्बे भी नींद से जागने लगे।
जब बेगुनाह को सजा और गुनाहगार को मलिदा मिला,
तब सम्मान भी गिरवी हो गया निसारों का।
जब पहचान ने साथ छोड़ा परछाई का,
तब एहसास भी गुलाम हुआ तन्हाई का।
जब मेहनत रूठ गई सपनों से,
तब हकीकत हंसने लगा बेवफाई पर।
जब सहारा जुदा होने के डर से रोने लगा,
तब सफलता बदनाम हुई खुशी के खुराक पर।
जब राहत ने अपनी हिस्सेदारी मांगी-मजबूरी से,
तब भागीदारी भी नीलाम हुई सभ्यता से।
अमोल जी, यह कविता भेजने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।
दोस्तो, इसी के साथ आज के प्रोग्राम में पत्र पढ़ने का सिलसिला संपन्न होता है, अगले हफ्ते आपसे फिर होगी मुलाक़ात। हमें उम्मीद है कि आप अपने बहुमूल्य सुझाव यूं ही भेजते रहेंगे। अगर वेबसाइट पर जारी टेक्स्ट में कोई त्रुटि हो तो, हमें ज़रूर अवगत कराईएगा। धन्यवाद।