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भारत-चीन की संस्कृति है पुरानी
2013-04-22 09:04:21

आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को वेइतुंग और अनिल पांडे का नमस्कार।

दोस्तो, अब देर किस बात की है, करते हैं आज के प्रोग्राम का आगाज़।

लीजिए, प्रोग्राम में सबसे पहले श्रोताओं के पत्र पढ़ेंगे, उसके बाद होगी किसी श्रोताओं की पसंद पर पेश करेंगे एक गीत और उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश।

दोस्तो, सबसे पहले हमारे पास आया है, पश्चिम बंगाल के श्रोता रविशंकर बसु का पत्र। उन्होंने नव वर्ष पर बधाई दी है। वे लिखते हैं, बीते दर्द, आये हर्ष, मुबारक हो नववर्ष-1420 । बांग्ला नव वर्ष का पहला दिन. यानी पहला बैशाख गत् 15 अप्रैल को था। वैसे इन दिनों हिंदुओं, तमिलों आदि का भी नया साल चल रहा है।

नव वर्ष सभी जगहों पर धूमधाम से मनाया गया। वहीं बांग्लादेश में 14 अप्रैल को पहला बैशाख धूमधाम से मनाया गया। बसु ने नए साल के मौके पर सभी लोगों को बधाई दी है।

हमें बांग्लादेश के श्रोता अफज़ल अली ख़ान और पश्चिम बंगाल के श्रोता बिधान चंद्र सान्याल ने भी बधाई संदेश भेजा है।

नव वर्ष की बधाई के बाद अगले पत्र की बारी है। राजाजी पुरम ,लखनऊ की मीना शुक्ला ने खुन मिंग में आयोजित होने वाले चीन सार्क मेले पर एक कविता भेजी है।

कविता का शीर्षक है, आप सभी का स्वागत।

दोनों हाथ जोडकर बहुत ही प्रेमभाव से

स्वागत है स्वागत है, आप सभी का स्वागत है ।

युन्नान प्रांत की मनमोहक राजधानी खुनमिंग में आयोजित

प्रथम चीन दक्षिण एशिया व्यापार मेले में आप सभी का स्वागत है ।

यहां पर उपलब्ध होंगे ,सुनहरे व्यापार के अनेकों अवसर ,

एक से बढकर एक उन्नत व उपयोगी तकनीक का ज्ञान ।

उचित कीमत-उत्तम गुणवत्ता का संदेश देगा यह मेला ,

सारी दुनिया में बनाएगा अपनी एक नई विशिष्ट पहचान ।

इस व्यापार मेले से खुलेंगे ,मित्रता व सहयोग के नये द्वार ,

सुखमय होगा हर एक नागरिक का जीवन ,

साथ साथ मिलकर चीन दक्षिण एशिया बढेंगे प्रगति के पथ पर ,

और खूब बढेगा चीन दक्षिण एशिया देशों में प्रेम ,सहयोग ,शांति व पर्यटन ।

अतिथि देवो भवः की भावना के साथ

अभिनंदन-अभिनंदन है आप सभी का अभिनंदन है।

खूबसूरत युन्नान प्रांत के खुनमिंग में आयोजित,

चीन दक्षिण एशिया व्यापार मेले में ,आप सभी का अभिनंदन है।

खुनमिंग संबंधी कविता के बाद, लीजिए एक और कविता।

ढोली सकरा ,बिहार के दीपक कुमार दास ने हाल ही में हमारा कार्यक्रम सुनकर चीनी परंपरागत त्योहार छिंग मिंग के बारे में एक कविता लिखी है।

लीजिए सुनिए,

समाधि में ।

बिखरी पडी हैं परछाइयां और रोशनियां भी

समाधि पर फूल खिले हैं ,

छिंग मिंग उत्सव की परछाइयां ।

पत्थरों में लडखडा गया है पल ,

टूटी डालियों से सजा है कब्रिस्तान

जल बह रहा है ,

फूल और मोमबत्तियां

छिंग मिंग उत्सव की परछाइयां।

कब्रों पर प्रार्थनाओं का सिलसिला ,

समाधि के चारों ओर पेड-पौधे

नीले-लाल पक्षी हैं ,

नीला आकाश है ।

पूर्वजों की समाधि को रोशन करना है ,

छिंग मिंग उत्सव की परछाइयां।

दीपक जी, छिंग-मिंग त्योहार पर कविता भेजने के लिए आपका धन्यवाद।

कविताओं के बाद लीजिए पेश है, जमशेदपुर झारखंड से एस.बी.शर्मा का ख़त।

उन्होंने लिखा है कि, चीन की झलक प्रोग्राम में ग्रेट वाल ऑफ़ चाइना के बारे में दी गई जानकारी काफी रोचक लगी। जिसमें कई अनछुए पहलुओं को शामिल किया गया। चीन के विभिन्न विश्व धरोहरों के विषय में इस तरह की जानकारी आगे भी प्रसारित किया करें। जिससे हमें चीन की विभिन्न चीजों और स्थानों की जानकारी मिलेगी, जो कि यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल हुए हैं।

एक दूसरे पत्र में शर्मा ने हाल ही में प्रसारित टॉप फाइव प्रोग्राम की चर्चा की । उन्होंने कहा कि हेमा जी और दिनेश द्वारा प्रस्तुत "टॉप फ़ाइव" में चाइनीज़ हिल स्टेशनों पर दी गई जानकारी बहुत अच्छी लगी, और दिनेश ने दर्शनीय स्थलों के दर्शन करवाए और साथ में हेमा जी ने पाच सुंदर चीनी गीतों से मनोरंजन कराया। "श्रोताओं की पसंद" कार्यक्रम में ग्राम मंडोला, राजस्थान के श्रोता नरेन्द्र से बातचीत भी रोचक लगी।

वहीं दिल्ली के श्रोता राम कुमार नीरज ने भी एक लंबा पत्र लिखा है। वे लिखते हैं कि 21 मार्च को प्रसारित श्रोता क्लब के अंतर्गत चीन और भारत की संस्कृति अंतर विषय पर एक गंभीर चर्चा सुनी। निश्चित रूप से भारत और चीन की संस्कृति दुनिया की एक पुरातन संस्कृतियों में से एक है, इस प्रोग्राम को सुनते हुए मैं भी इतिहास के पन्नों में गोते लगा आया। तब मैंने पाया कि चीनी यात्री फाह्यान के अनुसार ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी तक मध्य एशिया का भारतीयकरण हो चुका था. वहां की 'लीबनार झील' के पश्चिम की ओर बसी समस्त जातियों ने भारतीय धर्म और भाषा ग्रहण कर ली थी. वहां पाये गए अवशेषों से साबित होता है कि वहां अब से लगभग दो सहस्र वर्ष पूर्व कई ऐसे नगर थे, जिनमें भारतीय निवास करते थे. वहांकिये गए उत्खनन में कई स्थानों पर महात्मा बुद्ध, गणेश, कुबेर एवं अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां और बौद्ध स्तूप, विहार, चित्र, हस्तलिखित ग्रन्थ, भारतीय सिक्के और भारतीय लिपि में लिखे छोटे-छोटे अभिलेखों का पता चला। इनसे स्पष्ट होता है कि वहां बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म का व्यापक प्रसार था, संस्कृत भाषा का प्रयोग किया जाता था और 'गान्धार शैली' एवं भारतीय तक्षण-कला का प्रभाव था. 'अजन्ता कला' के अवशेष भी वहां प्राप्त हुए हैं।

यदि भारत और चीन के ऐतिहासिक-व्यापारिक संबंधों की बात करें तो भारत का दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापार स्वयं में महत्त्वपूर्ण तो था ही, इसके साथ-साथ वह भारत और चीन के व्यापार के लिए केन्द्र का कार्य भी करता था। आमतौर पर चीनी जहाज़ मोलस्का द्वीपों के आगे नहीं आते थे, उधर भारत और चीन के बीच का सड़क मार्ग उस काल में तुर्क, अरब और चीनियों के बीच संघर्ष के कारण सुरक्षित नहीं था। इसके स्थान पर भारत और चीन के बीच का समुद्री मार्ग अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा था. चीन के विदेश व्यापार के लिए वहां का प्रमुख बंदरगाह कैंटन, या जैसा कि अरब यात्री पुकारते थे, क़ाफु था। भारत से बौद्ध विद्वान भी समुद्र मार्ग से चीन जाते थे. चीनी इतिहासकारों ने लिखा है कि दसवीं शताब्दी के अंत और ग्यारहवीं शताब्दी के आरम्भ में चीनी राजदरबार में जितने भारतीय भिक्षु थे, उतने चीन के इतिहास में पहले कभी नहीं रहे। कुछ और पहले के काल के चीनी वृत्तान्त के अनुसार कैंटन नदी भारत, फ़ारस और अरब से आने वाले जहाजों से भरी रहती थी. इसके अलवा कैंटन में तीन हिन्दू मन्दिर भी थे, जिनमें भारतीय ब्राह्मण रहते थे, चीनी समुद्र में भारतीयों की उपस्थिति के बारे में हमें जापानी सूत्रों से भी पता चलता है, इनके अनुसार जापान में कपास को लाने का श्रेय दो भारतीयों को है. जो अपनी समुद्री यात्रा के दौरान लहरों के ज़ोर से ग़लती से जापान पहुंच गए थे। भारतीय शासकों, विशेषकर बंगाल के पाल, सेन तथा दक्षिण के पल्लव और चोल वंश के शासकों ने चीनी सम्राटों के दरबारों में अपने राजदूत भेजकर इस व्यापार को और बढ़ाने की कोशिश की। चीन के साथ भारत के व्यापार में बाधा डालने वाले मलाया तथा अन्य पड़ोसी देशों के विरुद्ध चोल शासक राजेन्द्र प्रथम ने अपनी नौसेना भेजी. चीन के साथ व्यापार करने वाले देशों को इतना लाभ होता था कि तेरहवीं शताब्दी में चीनी सरकार ने वहाँ से सोने और चाँदी के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने की कोशिश की। धीरे-धीरे भारत का व्यापार अरबों और चीनियों के मुक़ाबले कम होता गया क्योंकि इन व्यापारियों के जहाज़ भारतीय जहाजों से बड़े और अधिक तेज़ थे, कहा जाता है कि चीनी जहाज़ कई मंज़िले होते थे और उनमें चार सौ सैनिकों के अलावा छह सौ यात्री सवार हो सकते थे। चीनी जहाजों के विकास में कुतुबनुमा की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही. यह आविष्कार चीन से दसवीं शताब्दी में पश्चिम पहुंचा. अब तक भारतीय विज्ञान और तकनीक पीछे पड़ते जा रहे थे।

एक अच्छी परिचर्चा का आप सबको शुक्रिया.कार्यक्रमों का स्वरूप यूं ही मनोरंजक और ज्ञानवर्धक होता रहे,इसके लिए हम तहे दिल से कामना करते हैं।

इसके बाद अगला पत्र हमें आया है, आजमगढ यूपी के शमसुद्दीन साकी अदीबी ने अपने पत्र में कहा कि सीआरआई हिंदी कार्यक्रम सुनना हमारा जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है। हम आपके कार्यक्रम बहुत ही पसंद करते हैं। आशा है कि आगे की ज्ञान प्रतियोगिता में हमें भी याद रखा जाएगा ।आजकल रेडियो वेब पर प्रसारण बहुत साफ सुनाई पड़ रहा है, सभी तकनीकी कर्मचारियों को धन्यवाद । शमसुद्दीन जी, आपका भी बहुत-बहुत धन्यवाद।

वहीं शिवहर, बिहार के रामजी तिवारी का भी एक पत्र आया है। उन्होंने कहा कि मैं आपका एक नया श्रोता हैं । मुझे आपके सभी कार्यक्रम बहुत अच्छे लगते हैं ।खासकर चीन का भ्रमण ,न्यूशिंग स्पेशल ,आपका पत्र मिला ,टॉप फाइव। यह मेरा पहला पत्र है ,अगर आप इसे अपने कार्यक्रम में शामिल कर हमारा उत्साहवर्धन करेंगे ,तो मैं आपको नियमित रूप से पत्र लिखूंगा। मै काफी प्रयास के बाद एक श्रोता से संपर्क बनाकर उनसे लिफाफे और श्रोता वाटिका मांगी और तब बडी उम्मीद के साथ पहला पत्र प्रेषित कर रहा हूं। आपसे अनुरोध है कि कि उपर्युक्त पतों को अपने सूची में शामिल कर हमें श्रोता वाटिका और लिफाफे जरूर भेजें। मैं और मेरी पत्नी सीआरआई के भविष्य की कामना करते हैं। आशा है कि आप हमारी इच्छी जरूर पूरी करेंगे । पत्र के साथ रामजी ने अपनी छोटी पौत्री सन्ना बाबू का फोटो भी भेजा है। पत्र और फोटो के लिए धन्यवाद ।

हमने आपके पता हमारी सूची में शामिल कर लिया है। आशा है कि आप हमारे रेडियो कार्यक्रम नियमित रूप से सुनेंगे ।हम आ के नये खत के इंतजार में हैं ।

वहीं अमेठी, उत्तर प्रदेश के अनिल कुमार द्विवेदी ने हाल ही में तिब्बत मेँ भूस्खलन मेँ 83 मजदूरोँ के मारे जाने की खबर का जिक्र किया है। बचाव एवं राहत कार्य मेँ तीसरे स्तर की राहत दी जा रही है। उन्होंने इससे जुड़ा सवाल भी पूछा है,

सवाल - आपात राहत कार्य के लिए चीन में कितने स्तर के राहत कार्य किये जाते हैँ।

जवाब- चीन सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा के राहत कार्य के नियमों के अनुसार आपात प्राकृतिक आपदा राहत कार्य के चार स्तर हैं, जिनमें प्रथम स्तर सबसे ऊपर है। ये स्तर प्राकृतिक आपदा की गंभीरता पर निर्भर करते हैं।।उदाहरण के लिए चौथा स्तर वाला राहत कार्य ऐसी स्थिति में चलाया जाता है, जब आपदा में 30 से अधिक और 50 से कम लोग मारे गये हों, या एक लाख से अधिक और तीन लाख से कम आबादी का स्थानांतरण करने की जरूरत हो। या दस हजार से अधिक और एक लाख से कम मकान गिरे हों। इस बार तिब्बत में हुए भूस्खलन में 83 मजदूर मारे गये ,तो तीसरे स्तर का राहत कार्य किया गया। अगर किसी स्थान पर तीसरे स्तर या उससे अधिक ऊंचे स्तर की आपात प्रतिक्रिया की जाती है, तो केंद्र सरकार वहां कार्य दल भेजती है।

दोस्तो, इसी के साथ आज का प्रोग्राम यही समाप्त होता है, हमें आपके पत्रों और ई-मेल का इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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