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एनपीसी और सीपीपीसीसी में क्या अंतर है?
2013-03-07 16:20:00

आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को वेइतुंग और अनिल का नमस्कार। पहले श्रोताओं के पत्र और सवाल के जवाब।

           

चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा (एनपीसी) और चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की राष्ट्रीय समिति (सीपीपीसीसी) की सालाना सभाएं पेइचिंग में हो रही हैं। कुछ श्रोताओं ने ई-मेल भेजकर इस पर अपनी राय व प्रतिक्रिया दी। धन्यवाद ।कुछ श्रोताओं ने पूछा कि एनपीसी और सीपीपीसीसी में क्या अंतर है। एनपीसी चीन की सर्वोच्च अधिकार संस्था हैं, जो पूरे देश भर के दो हजार से अधिक प्रतिनिधियों से गठित है। जन प्रतिनिधि का चयन चुनाव से किया जाता है। यह चुनाव पांच साल में एक बार आयोजित किया जाता है। जन प्रतिनिधि सभा चीन की बुनायदी राजनीतिक व्यवस्था है। आमतौर पर राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा चीन की मुख्य व्यवस्थापिका सभा को कहा जाता है। उसकी भूमिका भारत की लोकसभा की तरह है। सीपीपीसीसी चीन की सर्वोच्च सलाहकार संस्था है। उस के सदस्यों की संख्या भी दो हजार से अधिक है। उसके सदस्यों का चयन चुनाव के बगैर विचार विमर्श द्वारा होता है। उसकी भूमिका राज्यसभा की तरह है। इस साल एनपीसी और सीपीपीसीसी की सभाओं में चीनी राष्ट्राध्यक्ष और प्रधान मंत्री का चुनाव होगा और नई सरकार की भावी नीति तय की जाएगी। इसलिए इस का खास महत्व है।

बिहार के शिवहर जिला के पिपराही के पूज्य महात्मा गांधी रेडियो लिसंनर क्लब के अध्यक्ष मुकुंद तिवारी ने हमें एक लंबा पत्र भेजकर व्यापक विषयों पर चर्चा की है। धन्यवाद आपका। मुकुंद तिवारी जी ने अपने गांव, जिला व राज्य का ठोस परिचय दिया और अन्य श्रोताओं के साथ साझा करने की इच्छा जतायी हैं। उन्होंने कहा कि हमारा गांव शिवहर जिले का सबसे बडा़ गांव है। हमारे गांव में हर तरह की सुविधाएं मौजुद है। यहां अस्पताल, स्कूल, कालेज, डाकघर, बैंक इत्यादि विभिन्न सरकारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। हमारे गांव के विभिन्न क्षेत्रों में कच्ची व पक्की सडकें हैं। यहां आवागमन की सुविधाएं भी काफी अच्छी है। हमारे गांव के विभिन्न चौक, चौराहों पर पिपल के पेड है, जो वर्षो पुराने है। यहां के बुजुर्ग लोगों का मानना है कि पिपल के पेड़ों की संख्या अधिक होने की वजह से ही इस गांव का नाम पिपराही पडा़। गर्मी के दिनों में राहगीरों को ठहरने की काफी अच्छी सुविधा है। हमारे गांव में एक 15 किलोमीटर लंबा बांध भी है जो विभिन्न गांवों को जोडता है। यह बांध मेरे घर के करीब ही है। मेरे गांव में एक छोटी और लंबी नदी है, जिसे यहां के लोग छोटी बागमती कहते हैं। इस नदी में सालों भर प्रचुर मात्रा में पानी रहता है। यहाँ पहले गांववाले नाव से नदी पार करते थे लेकिन काफी वर्षो के प्रयास के बाद माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार द्वारा इस नदी पर पुल बनावाया गया। वर्ष 2012 में इस पुल का उद्घाटन किया गया। छठपर्व इस नदी के किनारे ही मनाया जाता है और हजारों लोग उपस्थित होते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दौरान यहां बहुत बडा़ मेला लगता है। तकरीबन दस हजार लोग इस नदी में स्नान करते हैं। और मेले का लुत्फ उठाते हैं। इस तरह हमारा गांव प्राकृतिक रूप से भी काफी सुंदर है। शिवहर जिला की चर्चा करते हुए तिवारी जी ने कहा कि इस गांव में भगवान शिव का एक भव्य मंदिर है, जो इस क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है और इसी कारण इसका नाम शिवहर पडा़। यहां आसपास के जिलों सीतामढी, पूर्वी चम्पारण, मधुबनी और मुजफ्फरपुर से लोग दर्शन करने आते हैं। इसलिए यह पावन स्थान काफी मशहूर है।

तिवारी जी के पत्र से हमें महसूस हुआ कि तिवारी जी को अपने गांव से गहरा स्नेह और गर्व है। हम भी उनके इस वर्णन से काफी प्रभावित हुए। आशा है कि हमारे अन्य श्रोता जो किसी भी रुचिकर विषय पर चर्चा करना चाहते हैं, तो हमें तिवारी जी की तरह पत्र व ई मेल भेजेंगे ताकि हम अन्य श्रोताओं के साथ साझा कर सकें। इसके अलावा तिवारी जी ने चीन के बारे में 30 से अधिक सवाल पूछे जोकि हम भावी कार्यक्रम में उनका जवाब देंगे।

अब मेरे हाथ में बस्ती, उत्तर प्रदेश के श्रोता कृषण कुमार का पत्र हैं। उन्होंने चीन के मशहूर लेखक मोयान के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा कि चीन के लेखक मोयान जी को वर्ष 2012 नोबेल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किए गये। मोयान ने लोक साहित्य, इतिहास और सामयिक विषयों को मिला जुलाकर एक अलग तरह का साहित्य रचा है। उन्होंने लोक कथाओं, इतिहास और सामयिक मुद्दों को मिलाकर साहित्य के एक अनूठे संसार की रचना की। मोयान के बारे में कृषण कुमार ने जो बात की, वह एकदम सही है। मोयान की रचनाओं और साहित्य शैली पर हम ने कई श्रोताओं के पत्र प्राप्त किये थे और विभिन्न कार्यक्रमों में चर्चा की थी। अनिल जी! मोयान ने अपने पेन से बहुत आकर्षक कहानियां लिखीं, पर मुझे लगता है कि उनकी सफलता की कहानी वास्तव में एक अद्वितीय कहानी है। इस संदर्भ में मैं श्रोताओं के साथ कुछ शेयर करना चाहता हूँ। मोयान का जन्म पूर्वी चीन के शान तुंग प्रांत के एक गांव में हुआ। उन के माता-पिता कृषक थे। उनका साहित्य से कोई रिश्ता नहीं था। इसके अलावा उनके घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। पर्याप्त खाना भी उपलब्ध नहीं था। रोज भूखा रहना उनके लिए एक आम बात थी। घर में बिजली न होने कारण रात को दीया की रोशनी में पढ़ते थे। उन्हें प्राइमरी स्कूल में पांच साल पढकर स्कूल छोडना पडा़ और घर मे हाथ बँटाने के लिए खेती करने लग गये। पर मोयान पुस्तक पढ़ने के दीवाने थे और उन्होंने पुस्तक पढना कभी नहीं छोडा। उनके बचपन का जीवन एकांत था। पर मोयान ने बाद में याद करते हुए कहा कि ऐसे एकांत जीवन से उनकी कल्पना करने की क्षमता काफी हद तक विस्तृत हुई। एक चीनी कहावत है कि अगर कुछ खोया जाता है, तो कुछ पाया भी जाता है। उन्होंने कहा कि जो भूख, दुख, और एकांत महसूस किया बाद में उनकी रचना के लिए बहुत मददगार साबित हुआ। 21 वर्ष की आयु मे मोयान का सेना में भर्ती हुई। यह उनके जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया। बाद में वे विश्वविद्यालय में भी दाखिल हुए। उन्होंने बहुत मेहनत से पढाई की और देर रात तक कहानी लिखने में संलग्न रहते थे। जब कभी रात में भूख लगती थी, तब वे गर्म पानी के साथ चीनी व प्याज खा लिया करते थे। क्योंकि उस समय उनके पास पैसे पर्याप्त नहीं हुआ करते थे। वर्ष 1986 में उन्होंने रेद सोर्घम (Red Sorghum) नामक उपन्यास लिखा, जिससे उनका बडा नाम हुआ। दो साल बाद मशहूर चीनी फिल्म निर्देशक चांग ईमो ने रेड सोर्घम पर आधारित एक फिल्म बनायी। रेड सोर्घम फिल्म न सिर्फ चीन में बल्कि विश्व भर मे मशहूर हुई। तब से मोयान का नाम विश्व के अन्य कोनो में भी पहुंचा। अब तक उनके 40 से अधिक उपन्यासों का अंग्रेजी, फ्रैंच, जापानी, जर्मन आदि अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया है। उनके व्यक्तिगत जीवन से देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि मोयान की सफलता का श्रेय सबसे पहले उनकी मेहनत और इच्छा शक्ति को जाता है। मेहनत और इच्छा शक्ति के बगैर सिर्फ बुद्धि व प्रतिभा के जरिये वे इतनी बडी उपलब्धियां प्राप्त नहीं कर सकते थे।

आजमगढ, यू पी के दिलशाद हुसेन ने एक पत्र में तिब्बत की चर्चा की। उन्होंने कहा कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश छिंगहाई तिब्बती पठार के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। जो तिब्बती जाति का मुख्य निवासस्थान है। तिब्बती जाति चीन की 55 अल्पसंख्यक जातियों में से एक है। तिब्बती लोगों की भाषा तिब्बती है। अधिकांश तिब्बती लोग तिब्बती बौद्ध धर्म मे विश्वास रखते हैं। तिब्बती जाति का पुराना इतिहास, रंग-बिरंगी संस्कृति और भिन्न भिन्न रीति रिवाज है। तिब्बती लोगों का मुख्य त्योहार तिब्बती नववर्ष, श्रे तुन यानी दही त्योहार इत्यादि है। पुराने समय में भूगोल, इतिहास और यातायात आदि कारणों से तिब्बत की आर्थिक बुनियाद कमजोर थी। लेकिन हाल के वर्षो में काफी सुधार आया है।

यूपी की ही पुरानी श्रोता कल्का प्रसाद कीर्टीप्रिय ने चीनी भाषा में हमें चार पत्र भेजे। साफ साफ चीनी अक्षरों मे लिखा पत्र देखकर हम काफी हैरान थे कि कीर्टिप्रिय जी ने कैसे इतने अच्छे तरीके से चीनी अक्षरों मे पत्र लिखा। इससे पता चलता है कि कीर्टि प्रिय जी को चीनी भाषा में बडी रुचि है। कीर्टिप्रिय जी, आप हमें पत्र या ई-मेल भेजकर हमें जरूर बताइए कि आपने अपने आप से चीनी भाषा सीखी है या कहीं ओर से सीखी, क्योंकि चीनी भाषा बोलना तो सरल है पर लिखना सबसे कठिन।

भागलुपर, बिहार के श्रोता डाक्टर हेमंत कुमार ने माइकाल से हमें एक छोटी कविता भेजी, जिस का शीर्षक है दिल की आवाज़ ---

"लोग रूप देखते हैं, हम दिल—

लोग सपना देखते हैं, हम हकीकत–

लोगों में और हममें इतना फर्क है---

लोग दुनिया में दोस्त देखते हैं और हम दोस्त में दुनिया।।"

अब मेरे हाथ में जो पत्र है उसे भेजा है शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश से हरिवंश योगी ने। वे लिखते हैं कि सीआरआई के सभी प्रोग्राम अच्छे लगते हैं और सीआरआई के माध्यम से हमें चीन के बारे में सही जानकारी मिलती है। वैसे तो चीन से अधिकतर लोग अनभिज्ञ हैं, जो भी जानते हैं, वे चीन को मांसाहारी, विस्तारवादी और कुटिल देश मानते हैं। यानी वे चीन के प्रति अच्छी धारणा नहीं रखते हैं।

इसके बाद अगला पत्र हमें आया है समस्तीपुर, बिहार से। इसे भेजने वाले श्रोता हैं इंटरनेशनल रेडियो लिस्नर्स क्लब के अध्यक्ष पी.सी गुप्ता। कहते हैं कि हम लोगों ने कई बार श्रोता वाटिका पत्रिका के लिए कविताएं भेजी थी। लेकिन यह पता नहीं चल सका कि हमारी रचनाओं को पत्रिका में स्थान दिया गया या नहीं। हम उम्मीद करते हैं कि आप अन्य श्रोताओं की तरह हमारी कविताओं को भी पत्रिका में शामिल करेंगे। संभव हो सके तो हमारे क्लब को रजिस्टर्ड करने की कृपा कीजिएगा। धन्यवाद।

अब प्रोग्राम में वक्त हो गया है अगला ख़त शामिल करने का। जो आया है, उषा रेडियो श्रोता संघ की ओर से, भेजने वाले श्रोता हैं, बांका, बिहार से, जय कृष्ण कुमार। वे लिखते हैं कि मैं सीआरआई हिंदी सेवा का नियमित श्रोता हूं, मैं पत्र और ई-मेल के माध्यम से आप लोगों से जुड़ा रहता हूं, साथ ही लगातार दो बार आयोजित क्विज प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया। लेकिन आज तक आपने हमें अपना श्रोता नहीं माना, फिर भी मुझे आपके सभी कार्यक्रम अच्छे लगते हैं। खासतौर पर मैं आपकी पसंद और समाचार रोचक लगते हैं, मैं आपके प्रोग्राम ध्यान से सुनता हूं। कृपया अन्य श्रोताओं की तरह मुझे भी नियमित रूप से पठनीय सामग्री भेजा करें, ताकि हमें आपसे पत्राचार एवं वैचारिक आदान-प्रदान करने में सुविधा हो।

इसके बाद जय कृष्ण ने अपने बारे में भी व्यक्तिगत जानकारी शेयर की है। लिखते हैं कि मैं एक छात्र हूं और कुछ महीने पहले मैंने बीएससी फाइनल ईयर की परीक्षा दी है, मेरा ऑनर्स विषय गणित है। मुझे बचपन से ही गणित में बहुत अधिक रूचि रही है। अभी मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूं और आपके प्रोग्राम मेरे लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं। क्योंकि आप वैश्विक समाचार के साथ-साथ अन्य रोचक जानकारियां देते हैं। मैं शौकिया तौर पर कुछ कविताएं भी लिख लेता हूं, साथ ही कुछ कहानियां भी लिखी हैं, जो कि सामाजिक जागरूकता के साथ-साथ युवाओं पर आधारित हैं। उनका प्रसारण स्थानीय रेडियो स्टेशनों पर होता रहता है। मैं कुछ कविताएं आपके प्रोग्राम और श्रोता वाटिका के लिए भी भेज रहा हूं। अगर आपको पसंद आए, तो शामिल कीजिएगा।।

देखिए जय कृष्ण जी हम आपको भी अपना श्रोता मानते हैं, इसमें कोई शक नहीं है। आपने सीआरआई के बारे में लिखा और बताया कि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आप जल्द ही परीक्षा पास कर लेंगे।

हम आपकी एक कविता आज के प्रोग्राम में शामिल कर रहे हैं, जो कि आतंकवाद विषय पर है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आतंकवाद आज पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती बन चुका है, भारत भी इससे अछूता नहीं है। हाल ही में हैदराबाद में आतंकियों ने धमाके किए, जबकि 2008 का मुंबई आतंकी हमला अब तक हम सभी के जहन में ताज़ा है। ऐसे में आपकी यह कविता सटीक लगती है।

कविता के मुख्य अंश इस तरह हैं। शीर्षक है, आतंकवाद

ये कैसी राह है, जो मौत की हमराह है

क्यों छोड़ मानवता बन गए तुम आतंकवादी,

क्या मिलता है, तुम्हें बहाकर खून,

निर्दोष, लाचार इंसानों का,

क्या मिलता है तुम्हें छीनकर जान मासूम बच्चों की

क्यों बन गए तुम जालिम

छोड़ गुण इंसानों का,

आज यहां तो कल वहां,

क्यों कहर बरपाते हो,

हमें मारते-मारते तुम खुद भी मारे जाते हो,

क्यों कुछ पैसों की खातिर

मानव-बम बन जाते हो

दूसरों की आंखों में आंसू भरने,

खुद को चीथड़ों में बदल लेते हो,

आखिर क्या कीमत है, उन पैसों की,

जिसके लिए तुम अपनी जान गंवाते हो,

सचमुच तुम्हें कोई कष्ट है या

हमारी खुशियों से जल-भुन जाते हो,

वैसे कविता लंबी है, लेकिन समय की कमी के चलते इतना ही शामिल कर पा रहे हैं। धन्यवाद जय कृष्ण जी, आतंकवाद के ज्वलंत मुद्दे पर कविता लिखने के लिए।

काश आपकी तरह सभी आतंकी भी सोचने लगें और पूरी दुनिया में अमन-चैन कायम हो जाय।

हम ने छत्तीसगढ के बिलासुपर के श्रोता परस राम श्रीवास, बिहार के टाप रेडियो श्रोता संघ के अध्यक्ष प्रियंका केशरी, कलेर बिहार की श्रोता निकहत प्रवीन, ओडिसा के श्रोता सेक अफजल हुसेन के पत्र मिले। धन्यवाद।

(नोट- यह प्रारूप टेक्स्ट है, जो रेडियो कार्यक्रम से कुछ अलग है)

(प्रोग्राम होस्टः वेइतुंग व अनिल पांडे) (टेक्स्ट संपादन- अखिल पाराशर)

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