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क्यों कुश्ती को बाहर किया गया
2013-02-22 09:25:37
आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को वेइ तुंग व अनिल पांडे का नमस्कार।

आज के इस प्रोग्राम में हम, श्रोताओं के पत्रों व ई-मेल के अलावा श्रोता के साथ हुई फोन वार्ता और उनकी पसंद पर एक गीत भी पेश करेंगे।

लीजिए, अब प्रोग्राम की शुरूआत करते हैं। दोस्तो, वसंत त्योहार के दौरान हमें कई श्रोताओं के पत्र मिले हैं। पहले हम उन सभी का शुक्रिया अदा करते हैं।

पुराने श्रोता मितुल कंसल ने अपने पत्र में कहा कि वसंत को त्योहारों का राजा कहा जाता है। वसंत दिल की एक तरंग है जो मस्ती और ताजगी का अहसास देती है। इस मौसम में शाम तो सुहानी होती ही है, दिन भी मस्ती के रंग में रंगे होते हैं। अनिल जी, क्या इस वक्त आपके दिल में कोई तरंग या नयी उम्मीद पैदा हुई।

जी हां, बिल्कुल, नया साल नयी उम्मीदें लेकर आता है, और वसंत त्योहार भी इससे कोई अलग नहीं है।

इसके बाद हम शामिल कर रहे हैं, बिहार के श्रोता जसीम अहमद का पत्र।

उन्होंने हमें एक लंबा पत्र भेजकर कहा कि आप लोग कहते हैं कि सीआरआई हिंदी प्रसारण से प्रतिदिन चार सभाएं प्रसारित होती हैं। पहली सभा भारतीय समयानुसार सुबह साढे 8 बजे से साढे 9 बजे तक। जिसे आप लोग पहली सभा कहते हैं, उसमें दरअसल रात को प्रसारित कार्यक्रम की पुनरावृति होती है। मेरे ख्याल से शाम साढे छह से साढे सात बजे तक प्रसारित होने वाले कार्यक्रम को पहली सभा कहा जा सकता है। क्योंकि, ताजा एवं नयी जानकारी इसमें ही दी जाती है। मेरा सुझाव है कि प्रतिदिन सुबह की सभा में ताज़ा प्रोग्राम प्रसारित किया जाना चाहिए। और फिर उसे रिपीट किया सकता है। मगर आप लोग उल्टी गंगा बहा रहे हैं।

जसीम अहमद जी, हम एक दिन में एक घंटे का कार्यक्रम पेश करते हैं। यानी एक घंटे का प्रोग्राम ताज़ा है और बाकी तीन घंटे के प्रोग्राम रिपीट होते हैं। इसकी वजह विभिन्न श्रोताओं को प्रोग्राम सुनने के लिए कई विकल्प प्रदान करना है।

वैसे वर्तमान में हमारी दो घंटे या इससे अधिक लंबा कार्यक्रम प्रसारित करने की योजना नहीं है, क्योंकि हमारा बजट सीमित है। शुरू से ही हम शाम के प्रसारण को पहला प्रसारण मानते हैं। पहले हमने सोचा था कि हर घंटे के कार्यक्रम के समाचार अपडेट किया जाए, लेकिन इसके लिए बहुत कोशिश करने की ज़रूरत होती है। और हमारा बजट सीमित है।

जसीम जी, पता नहीं आप हमारे जवाब से संतुष्ट हैं या नहीं।

उन्होंने अपने पत्र में आगे कहा कि आप लोगों को मेरी बात बुरी लग सकती है, इसलिए मैं कार्यक्रम पर कम टीका टिप्पणी करता हूं। सच कहूं तो कार्यक्रम में अभी काफी सुधार की जरूरत है। आप लोग मेरी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं, इसलिए मैं अपनी बात खुलकर नहीं रख पाता हूं।

जसीम अहमद जी, हम हर किसी श्रोता के सुझाव व टिप्पणी का स्वागत करते हैं। हमारा नया नारा है, श्रोताओं का मंच, दिल की बात।

दोस्तो, प्रोग्राम को आगे बढ़ाते हुए पेश है अगला पत्र। जिसे भेजा है, नारनौल हरियाणा के श्रोता, उमेश कुमार शर्मा ने। यह पत्र पिछले साल के सितंबर महीने का है। उन्होंने खेल जगत कार्यक्रम के अंतर्गत चीनी राष्ट्रीय खेल समारोह की चर्चा की है। लिखते हैं यह खेल समारोह पर रिपोर्ट रोचक लगी। क्योंकि इसमें किसान भाईयों की चर्चा की गई, इसलिए हमें पता चला कि चीन में खेलों में किसानों को भी महत्व दिया जाता है। इसके अलावा खेल जगत के अन्य समाचार भी जानकारी वर्धक थे। इसके बाद उमेश ने दक्षिण एशिया फ़ोकस के बारे में लिखा है, कहते हैं कि इस प्रोग्राम में हाल ही में भारत की मनमोहन सरकार द्वारा लिए गए फैसलों पर वरिष्ठ पत्रकार त्रिवेणी प्रसाद पांडे के विचार जाने। मैं उनसे इत्तेफाक रखता हूं कि कांग्रेस सरकार के कई घोटाले सामने आ चुके हैं। लेकिन उन्होंने ध्यान हटाने के लिए जनता पर अनावश्यक बोझ डाल दिया। जो कि बिल्कुल भी उचित नहीं है। वॉलमार्ट जैसी कंपनी जिससे स्वंय अमेरिका परेशान है, उसे भारत में लाने के लिए यूपीए सरकार ने मूर्खतापूर्ण कदम उठाया। यह पूरी तरह से अमेरिका के दबाव में उठाया गया क़दम लगता है। ऐसे में भारत सरकार को चाहिए था कि वह विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के बजाय देसी बाज़ार व लोगों के हितों को तवज्जो देती।

वहीं एक साल में सिर्फ छह गैस सिलेंडर देना भी आम जनता पर अनावश्यक बोझ है।

उमेश जी आपने बिल्कुल सही बात कही है। हालांकि रिटेल में विदेशी निवेश को अनुमति देने का फैसला लागू हो चुका है। इसके बावजूद इसका परिणाम आने वाले समय में ज़रूर दिखेगा। क्योंकि इसका सीधा असर घरेलू किराना स्टोर्स पर दिखेगा। उमेश जी कार्यक्रम को ध्यान से सुनने के लिए आपका धन्यवाद।

इसके बाद उमेश लिखते हैं कि गीत की कहानी प्रोग्राम भी सुना। इसमें प्रस्तुत प्रेमगीत अच्छा लगा। वहीं टॉप फाइव में भारत के गणेश उत्सव पर गीत, मूंग त्योहार पर चीनी गीत और शरद त्योहार पर गीत सुने, जो कि काफी अच्छे लगे।

अब अगला पत्र हमें आया है, मऊनाथ भंजन, यूपी से। इसे भेजने वाले श्रोता हैं, फैज अहमद फैज। वे लिखते हैं कि, हम सीआरआई के कार्यक्रमों को बड़े ध्यान से सुनते हैं। मुझे आपकी पसंद, श्रोताओं का मंच व चीन का भ्रमण बहुत पसंद है। इसके अलावा श्रोता वाटिका पढ़ना भी अच्छा लगता है। जब आपका पत्र मिला प्रोग्राम में अपने शहर के किसी नए श्रोता का नाम सुनता हूं, तो लगता है कि मेरी मेहनत काम आ रही है ।

फैज अहमद जी, सीआरआई के प्रचार-प्रसार के लिए आपका धन्यवाद।

अब लीजिए पेश है अगला पत्र। नई दिल्ली के रानी रेडियो लिस्नर्स क्लब की राधा रानी खंडेलवाल ने अपने पत्र में कहा कि सीआरआई के प्रोग्राम सुनकर मज़ा आता है। विशेषकर, चीनी भाषा सीखें कार्यक्रम। सीआरआई से निवेदन है कि आप श्रोताओं के साथ दिल्ली में एक मिलन कार्यक्रम आयोजित करें। सभी श्रोताओं की यही इच्छा है। राधा जी, हम भी भारत में मिलन समारोह आयोजित कर श्रोताओं व नेटीजनों के साथ रूबरू होना चाहते हैं। लेकिन बजट और अन्य वजहों से यह अब तक संभव नहीं हो सका है। फिर भी हमने बड़े अधिकारियों से इस बारे में आवेदन किया है। उम्मीद है कि एक दिन हम दिल्ली में ज़रूर मिलेंगे।

            

वहीं अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने हाल ही में कुश्ती को ओलंपिक से बाहर करने का फैसला किया। इस बारे में कुछ श्रोताओं ने हमें ई-मेल भेजकर प्रतिक्रिया व्यक्त की है।               

एस बी शर्मा कहते हैं कि, गोरों की रंग भेदी नीति ने फिर रंग दिखाया और ओलंपिक से कुश्ती को बाहर करने का निर्णय लिया। वोटिंग तो महज एक बहाना है। जब भारत सहित कई देशो में कुश्ती खेली जाती है और यह खेल लोकप्रिय भी है, फिर इसे क्यों ओलंपिक से बाहर किया जा रहा है। जबकि कुश्ती के मुक़ाबले कम लोकप्रिय खेल मॉडर्न पेंटाथलॉन और ताइक्वांडो को ओलंपिक में क्यों बरकरार रखा गया है। यह बिल्कुल समझ से परे है, दोगली नीतियों में इन्हें अपने फायदे के अलावा कुछ नहीं दिखता। 1896 में ओलंपिक खेलों की शुरुआत के समय से ही कुश्ती लगभग सभी ओलंपिक आयोजनों का हिस्सा रही है। सिर्फ वर्ष 1900 के ओलंपिक में उसे शामिल नहीं किया गया था। इतनी अधिक लोकप्रियता और लम्बा सफ़र होने बाद भी कुश्ती को बाहर करने की साजिश निंदनीय है। दुनिया के कुश्ती प्रेमियों को एकजुट होकर कुश्ती को ओलंपिक में बनाये रखने के लिए कोशिश करनी चाहिए।

                

जबकि सुरेश अग्रवाल कहते हैं कि जहां तक ओलंपिक खेलों से कुश्ती को हटाने की बात है, तो यह पश्चिम का एशियाई देशों को नियंत्रित करने का एक षड्यंत्र है, जिसमें उन्हें सफलता मिलना मुश्किल है, क्योंकि कुश्ती एक साफ़-सुथरा खेल है, जो कि दमखम पर आधारित है। वहीं मुक्केबाजी एक हिंसक खेल है,जिसे खेलते हुए प्रतिभागियों की जान तक चली जाती है। फिर पेंटाथलॉन और ताइक्वांडो तो कुश्ती के मुकाबले कहीं भी नहीं ठहरते। ऐसे में कुश्ती को हटाने की बात करना गले नहीं उतरता ।

               

वहीं दिल्ली के श्रोता, शाहिद आज़मी लिखते हैं कि कुश्ती को बाहर करने का निर्णय बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। कुश्ती एक ऐतिहासिक खेल है और अब इस फैसले से कुश्ती को अपनाने वाले खिलाडियों को अपना भविष्य अंधकारमय नज़र आ रहा होगा। भारत में जबसे कुश्ती में ओलंपिक पदक आये हैं तबसे इस खेल को चाहने और खेलने वालों की संख्या में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है । यह भारतीय और अंतराष्ट्रीय कुश्ती के लिए दुखद समाचार है।

दोस्तो, अब बारी है, आज के प्रोग्राम के अगले पत्र की। जिसे भेजा है, शिहोहर, बिहार से, अब्दुल रहमान ने। वे लिखते हैं कि हमारे श्रोता क्लब को पंजीकृत कर प्रमाण पत्र भेजा जाय। साथ ही आगे कहते हैं कि सीआरआई द्वारा तिब्बत के बारे में प्रसारित कार्यक्रम अच्छा लगता है। तिब्बत के सुधार पर जानकारी पाकर लगता है कि वाकई चीन सरकार तिब्बत के विकास पर विशेष ध्यान दे रही है।

प्रोग्राम का अगला ख़त हमें भेजा है, मुबारकपुर, आज़मगढ़ यूपी के श्रोता दिलशाद हुसैन ने। वैसे उन्होंने यह पत्र नव वर्ष के मौके पर भेजा था, फिर भी अभी इसे शामिल करने का अच्छा मौका है, क्योंकि आजकल चीन में भी नया साल मनाया जा रहा है। उन्होंने सीआरआई से जु़ड़े सभी कर्मचारियों और श्रोताओं को नए साल की शुभकामनाएं भेजी हैं। इसके साथ ही उन्होंने एक कविता भी लिखकर भेजी है। जो कुछ इस तरह है।

नव वर्ष आया है, सीआरआई से शुभकामनाएं लाया है।

हमारे ज्ञान को बढ़ाता है, हमने ऐसा दोस्त पाया है।

नव वर्ष आया है, ज्ञान के साथ-साथ उपहारों को भी लाया है।

नए साल में नई उम्मीदें लाया है।

वाह-वाह क्या बात है। सीआरआई के साथ अपने प्रेम को कविता के माध्यम से व्यक्त करने के लिए आपका धन्यवाद। आगे भी यूं ही हमारा उत्साह बढ़ाते रहिएगा।

इसके बाद अगला पत्र। जिसे भेजा है, दीनानगर, गुरदास पुर पंजाब से, कौशझेश्वर कुमार वर्मा ने। लिखते हैं कि प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के बाद, सीआरआई द्वारा भेजी गई सामग्री प्राप्त हुई। हालांकि मैने पहले भी सही उत्तर भेजे थे, लेकिन ईनाम नहीं मिला। मैं लगातार सीआरआई के प्रोग्राम सुन रहा हूं। चलिए अच्छी बात है कि आप सीआरआई के प्रोग्राम सुनते हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में भी आप पत्र भेजते रहेंगे।

इसके बाद अब मेरे हाथ में अगला पत्र है, जिसे भेजा है, विश्व रेडियो लिस्नर्स क्लब, कोआथ, रोहतास बिहार से सुनील केशरी ने। यह पत्र उन्होंने दीपावली के पर्व के मौके पर लिखा है। वे कहते हैं कि पंकज जी को नमस्कार। आपने दीवाली के बहाने 14 नवंबर को सीआरआई की ओर से संपर्क किया। इस बात पर मुझे बहुत खुशी हुई। इसके साथ ही हमारे सभी सदस्य सीआरआई के प्रचार-प्रसार करने में जुटे हैं।

साथ ही सुनील केशरी ने एक कविता भी भेजी है।

चेतना का संचार जगाओ, शिक्षा को आगे बढ़ाओ

दूसरो को दो अपना ज्ञान, पढ़ो लिखो बनो महान

शिक्षा आज की आवश्यकता

शिक्षा से मिले ज्ञान-विज्ञान और सम्मान

पहले शिक्षा माता-पिता से मिलती है

फिर बिना गुरू के ज्ञान नहीं होता। केशरी जी कविता भेजने के लिए आपका धन्यवाद।

दोस्तो, हमें अन्य श्रोताओं ने भी पत्र भेजे हैं। इनमें, बिहार के महात्मा गांधी रेडियो लिस्नर्स क्लब के अध्यक्ष मुकुंद कुमार, मध्य प्रदेश के उदयभान ठाकरे और मध्य प्रदेश के ही बालाघाट के डॉ. प्रदीप मिश्रा, शाहजहॉंनपुर के आर एन सिंह, बंग्लादेश के मोहम्मद कमाल हुसैन आदि शामिल हैं। आप सभी का पत्र भेजने के लिए धन्यवाद।

दोस्तो, इसी के साथ आज के प्रोग्राम में पत्र पढ़ने का सिलसिला संपन्न होता है, अगले हफ्ते आपसे फिर होगी मुलाक़ात। हमें उम्मीद है कि आप अपने बहुमूल्य सुझाव यूं ही भेजते रहेंगे। अगर वेबसाइट पर जारी टेक्स्ट में कोई त्रुटि हो तो, हमें ज़रूर अवगत कराईएगा। धन्यवाद।

(प्रोग्राम होस्टः वेइतुंग व अनिल पांडे) (टेक्स्ट संपादन- अनिल पांडे)

(नोट- यह प्रारूप टेक्स्ट है, जो रेडियो कार्यक्रम से कुछ अलग है)

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