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आपकी पसंद 2011-10-15
2011-10-24 16:49:26

अनिलः आपकी पसंद सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल का नमस्कार। दोस्तो आज के इस प्रोग्राम को हम महान ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह के नाम डेडिकेट कर रहे हैं। करोड़ों दिलों पर राज करने वाले जगजीत आखिर दस अक्टूबर को अपनी ज़िदगी से हार गए। मैं उन्हीं की ग़ज़ल की ये लाईन पेश कर रहा हूं, चिट्ठी ना कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश, जगजीत कहां तुम चले गए।

ललिताः श्रोताओं को ललिता का भी नमस्कार। वाकई में संगीत की दुनिया के लिए जगजीत का जाना एक अपूरणीय क्षति है।

अनिलः दोस्तो सोमवार यानी 10 अक्टूबर का दिन संगीत व ग़ज़ल प्रेमियों के लिए सबसे दुखद दिन था। जब ग़ज़लों को आम लोगों की जुबान पर चढ़ाने वाला शख्स हमेशा-हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गया। लगभग पंद्रह दिनों तक ब्रेन हेमरेज के कारण अस्पताल में भर्ती जगजीत ने सोमवार को मुम्बई के लीलाबती अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। दोस्तो भले ही आज जगजीत सिंह हमारे बीच नहीं हो, लेकिन उनकी आवाज़ हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में गूंजती रहेगी।

अनिलः अपनी लाजवाब ग़ज़ल गायकी से ग़ज़ल सम्राट का ख़िताब पाने वाले जगजीत का जन्म 8 फरबरी 1941 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में अमर सिंह धीमन नाम के एक सरकारी कर्मचारी और बचन कौर के यहां हुआ था। चार बहनों और दो भाइयों में जगजीत सिंह को सभी जीत के नाम से बुलाया करते थे। पहले उनका नाम जगमोहन धीमन था, बाद में एक गुरू की सलाह पर उन्होंने अपना नाम जगजीत सिंह रख लिया। उन्होंने अपनी शुरूआती पढ़ाई श्रीगंगानगर के खालसा हाई स्कूल से की थी। उसके बाद उन्होंने स्नातक जालंधर के डीएवी कॉलेज से आर्ट विषय के साथ की थी, जबकि स्नातकोत्तर की डिग्री उन्होंने हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से ली।

ललिताः संगीत का शौक उन्हें बचपन से ही था। उन्होंने दो साल तक पंडित छगनलाल शर्मा के सानिध्य में संगीत की शिक्षा ली और उसके छह साल बाद सैनिया घराना स्कूल के उस्ताद जमाल खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत के ध्रुपद, ख्याल और ठुमरी सीखा। 1970 में कलकत्ता के प्रसिद्ध संगीत घराने की बेटी चित्रा दत्ता से उनका विवाह हुआ।

अनिलः दरअसल 700 साल पुरानी ग़ज़ल को जगजीत सिंह ने जब अपने सुरों में ढालकर आम लोगों के दिलों तक पहुंचाया, तभी ग़ज़ल अपने शबाब पर पहुंची और आम आदमी में मशहूर हुई। यही एक कारण था की अंतिम संस्कार के दौरान उनके सैकड़ों प्रशंसकों में से कोई हाथ में उनकी फोटो लिए, कोई फूल, तो कोई तख्तियां उठाए, गजल के सरताज की अंतिम महफिल में खड़ा बंद होठों से कह रहा था, ' कहां तुम चले गए ' ।

ललिताः 1975 में उनका पहला एल्बम एचएमवी कंपनी ने निकाला था जिसमें उनके साथ उनकी पत्नी चित्रा सिंह ने भी ग़ज़लें गायीं थीं। वह वास्तव में एक सबसे अलग एल्बम रहा, जिसे लोग कभी भूल ही नहीं पाएंगे। और उसके बाद तो उनकी ग़ज़लें लोगों की जुवान पर छाने लगीं।

अनिलः भले ही प्रोफेशनल लाईफ में जगजीत का कोई मुकाबला न रहा हो, लेकिन पर्सनल लाईफ में उन्हें उतना ही दर्द सहना पड़ा। 1990 में उनकी लाईफ में कुछ ऐसा घटा जिसने उन्हें तोड़ कर रख दिया, जब उनके एकमात्र पुत्र विवेक की 18 वर्ष की अल्प आयु में कार एक्सीडेंट में मौत हो गई। इस हादसे के बाद उनकी पत्नी चित्रा ने अपनी आवाज़ खो दी और वे फिर कभी गा ना सकीं। इतना ही नहीं, उसके बाद गोद ली हुई बेटी की मौत ने तो जगजीत की पर्सनल लाईफ को और डार्क बना दिया, लेकिन संगीत के लिए वे आखिरी समय तक समर्पित रहे। इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि जब वे मुंबई में एक कांसर्ट में शामिल होने के लिए जा रहे थे, तभी उन्हें ब्रेन हेमरेज हो गया और उसके बाद वे अस्पताल में भर्ती हुए और लगभग 15 दिन बाद इस दुनिया से विदा हो गए।

ललिताः दोस्तो जगजीत सिंह अपने ज़माने के एक सफल संगीतकार रहे। उन्होंने अपनी लाईफ में 80 एल्बम निकाले। उन्होंने जावेद अख्तर, अटल बिहारी वाजपेई, गुलज़ार आदि प्रसिद्ध कवियों की कविताओं को भी अपनी आवाज़ दी। वैसे एक दौर ऐसा भी था जब वे म्यूजिक डायरेक्टर बनने के लिए मुंबई भागे थे। बात 1960 की है। उनके एक दोस्त ने कहा कि वे और जगजीत जालंधर के डीएवी कॉलेज से बीए कर रहे थे। दोनों एक साथ रहते थे और जगजीत को 25 रुपए प्रतिमाह छात्रवृत्ति मिलती थी, किताबें और पढ़ाई निशुल्क थी। दोनों को संगीत से बहुत लगाव था। 1962 में हम दोनों म्यूजिक डायरेक्टर बनने और लताजी से मिलने का सपना लेकर मुंबई भागे थे।

अनिलः इतना याद कर उनके बचपन के साथी यासीन भारती की आंखों से निकले आंसू मानो गुनगुना रहे थे, 'चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वो कौनसा देश, जहां तुम चले गए।' वे बोलेः सोमवार सुबह 8 बजे जैसे ही समाचार सुना, ऐसा लगा जैसे मुझसे मेरा भाई जुदा हो गया हो। यह कहते हुए वे देर तक सुबकते रहे। उनके साथ बिताया हर पल हवा के झोंके की तरह सामने आता-जाता रहा।

ललिताः उनके दोस्त यासीन भारती कहते हैं कि जगजीत के पिता ओवरसियर थे और भाई जसवंत सिंह पीटीआई। हमारे पास पैसे नहीं थे, तब जालंधर में साइकिल के कलपुर्जे बनाने वाले एक पंजाबी दोस्त ने उस वक्त 200 रुपए महीने मदद की थी। हम ग़ज़ल गायक राजेंद्र मेहता-नीना मेहता से मिले। कुछ समय बाद मैं वापस लौट आया, लेकिन जगजीत वहीं रुक गया। बाद में उसने कुरुक्षेत्र से एमए किया। वह दिन रात ग़ज़लों की रियाज करते थे। जगजीत और वे पिता जमाल खान के शागिर्द भी रहे।

अनिलः दोस्तो आज हम याद कर रहे हैं ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह को। अगर हम भारत के ग़ज़ल गायकों की बात करें, तो उनके मुक़ाबले कोई दूसरा खड़ा नज़र नहीं आता। मैं तो बस जगजीत दा के लिए यही कह सकता हूं। मरकर भी ज़िंदा रहोगे तुम जगजीत, दिल से कभी न ज़ुदा न होने देंगे हम।

अनिलः दोस्तो इसी गीत के साथ हमारे जाने का वक्त आ गया है। आपसे फिर मुलाकात होगी, इसी समय इसी दिन। तब तक के लिए हमें इज़ाजत दें, नमस्ते।

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