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पर्यावरण की संरक्षण मानव की समान जिम्मेदारी
2011-08-02 11:08:21

चंद्रिमाः यह चाइना रेडियो इन्टरनेशनल है। आप का पत्र मिला कार्यक्रम के सभी श्रोताओं को चंद्रिमा का प्यार भरा नमस्कार।

विकासः विकास का भी स्नेह के साथ नमस्कार।

चंद्रिमाः विकास जी, आजकल हमें डाक या ई-मेल से बहुत सारे श्रोताओं के पत्र मिल रहे हैं। यह सचमुच एक बहुत अच्छी बात है।

विकासः जी हां, और आज हम उन में से कुछ चुनकर कार्यक्रम में पेश करेंगे।

चंद्रिमाः पहला पत्र रांची, खुंती तोरपा, झारखंड के सुकरा हेमरोम का है। पत्र में सबसे पहले उन्होंने सी.आर.आई. हिन्दी विभाग के सभी बहनों व भाइयों को प्यार भरा नमस्कार कहा। इसके साथ निहाओ भी लिखा हुआ है।

विकासः अच्छा, श्रोता दोस्तो, निहाओ एक चीनी शब्द है, जिस का मतलब नमस्कार है। देखने में हेमरोम जी को भी चीनी भाषा का बड़ा शौक है। उन्होंने और क्या लिखा है, चंद्रिमा जी?

चंद्रिमाः इस के बाद उन्होंने लिखा है कि मैं आप का पुराना श्रोता हूं। आप के सभी कार्यक्रम बहुत अच्छे लगते हैं। एक कार्यक्रम, जो आपने बंद कर दिया, वह नहीं बंद करना था। वह"चीनी बाल कथा है"। मैं उस कार्यक्रम को बड़े चाव से सुनता हूं। वेगा और अल्तेयर की प्रेम कहानी तो मैं आज तक नहीं भूला हूं। जो सातवें महीने के सातवें दिन यानि सात तारीख को चीनी युवतियों द्वारा अच्छे जीवन साथी मिले कहकर व्रत के रूप में मनाया जाता है। उस समय भारत में भी सावन का पवित्र महीना चलता है। भारतीय युवती भी सावन के महीने में निरामिष होकर अच्छे जीवन साथी के लिये भोलेनाथ पर जल और दूध, फूल अर्पित करती हैं। और जब मनोकामना पुरी हो जाती है, तो एक नारियल उपर से फिर भोलेनाथ को अर्पित करती है। मैं एक मुण्डा आदिवासी युवक हूं। फिर भी सावन में एक महीना शाकाहारी रहकर जल अर्पित करता हूं। और सावन पूर्णिमा के दिन एक बड़ा मेला लगता है। उस में घूमने जाता हूं। आशा है इस बार भी वेगा और अल्टेयर के कहानी को पुनः सुनाएंगे।

विकासः चंद्रिमा जी, मेरी याद में चीनी बाल कथा कार्यक्रम पिछले साल में आप पेश करती थीं, ठीक है न?

चंद्रिमाः जी हां। वास्तव में वह मनोरंजन का वक्त कार्यक्रम का ही एक भाग था। बाल कथा का विषय मैं चुनती थी, और मेरी साथी हेमा जी इसे प्रसारित करती थी। क्योंकि हेमा जी को कहानी सुनाने में खूब मजा आता है, वे भिन्न-भिन्न पात्र के अनुसार भिन्न-भिन्न आवाज़ निकाल सकती हैं। इसलिये बहुत दिलचस्पी लगता है।

विकासः पर चंद्रिमा जी, इतना अच्छा कार्यक्रम क्यों बंद किया गया है?मैंने भी कई बार श्रोताओं से यह सुना है कि वे यह कार्यक्रम बहुत पसंद करते हैं।

चंद्रिमाः क्योंकि इस साल के मार्च से मैंने श्रोताओं से संबंधित कार्य संभालना शुरू कर दिया, इसलिये मुझे मनोरंजन का वक्त कार्यक्रम छोड़कर आपका पत्र मिला कार्यक्रम बनाना पड़ा।

विकासः अच्छा यह कारण है। तो श्रोताओ, चिंता मत कीजिये, अगले साल अगर चंद्रिमा जी आपका पत्र मिला कार्यक्रम से मुक्त होती हैं, तो चीनी बाल कथा कार्यक्रम शायद फिर शुरू किया जाएगा।

चंद्रिमाः जी हां। अब हम दूसरा पत्र पढ़ेंगे, जो भागलपुर, बिहार के प्रियदर्शिनी रेडियो लिस्नर्स कल्ब के अध्यक्ष हेमंत कुमार द्वारा भेजा गया है।

विकासः इस पत्र में उन्होंने लिखा है कि परम सम्मान के साथ सहर्ष सूचित करना है कि हम लोग सी.आर.आई. की हिन्दी, उर्दू, नेपाली और अंग्रेज़ी सेवा का नियमित, जागरुक और पुराने श्रोता हैं। सभी कार्यक्रमों को नियमित सुनकर समीक्षात्मक पत्र लिखना हम लोगों का स्वभाव बन चुका है। समय-समय पर उत्साहवर्धन के लिये ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं। यह हम लोगों के लिये खुशी की बात है। हमारे कल्ब को आपने श्रोता वाटिका का मार्च 2011 अंक, लिफाफा और तिब्बत का कायापलट का प्रश्न पत्र भेजा। इस के लिये आप को धन्यवाद देता हूं।

चंद्रिमाः हेमंत जी, धन्यवाद देने की ज़रूरत नहीं है। यह तो हमारा कर्तव्य है। आशा है आप लोग सक्रिय रूप से हमारे द्वारा आयोजित गतिविधियों में भाग ले सकेंगे। आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश के रेडियो लिस्नर्स यूनियन के सहायक शमसुद्दीन साकी अदीबी ने भी अपने पत्र में तिब्बत से जुड़ी उस ज्ञान प्रतियोगिता की चर्चा की। उन्होंने लिखा है कि तिब्बत का कायापलट सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता की घोषणा से हमें अत्यधिक प्रसन्नता हुई। इस प्रतियोगिता के सभी लेख अत्यधिक महत्वपूर्ण रहे। इन लेखों से हमें बहुत ही नयी नयी बातें जानने को मिली। इस प्रतियोगिता के फ़ार्म हमें मिल चुके हैं और शीघ्र ही अपने तथा अपने कल्ब सदस्यों के फार्म आप को सही उत्तर पर चिन्ह लगाकर भेज देंगे।

विकासः रेडियो लिस्नर्स यूनियन के सभी सदस्यों को हमारा समर्थन करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। कुछ पत्र पढ़ने के बाद अब हम श्रोता द्वारा पूछे कुछ सवालों का जवाब देंगे। चंद्रिमा जी, क्या आपके पास कोई सवाल है?

चंद्रिमाः जी हां। बिहार के श्रोता डॉ.राजीव कुमार ने ये सवाल पूछे हैं कि चीन के संविधान बनने में कितने समय लगे?और ह्वांगहो नदी को चीन का शोक क्यों कहते हैं?विकास जी, कृप्या आप पहले सवाल का जवाब दीजिये।

विकासः ठीक है। अब मैं चीन के संविधान के बारे में कुछ जानकारियां दूंगा। चीन का संविधान चीन लोक गणराज्य का बुनियादी कानून है, जिसके पास सर्वोच्च कानूनी प्रभाव होता है। नयी चीन की स्थापना के बाद कुल चार संविधान बनाये गये हैं। पहले तीन संविधान क्रमशः वर्ष 1954,1975 व 1978 में बनाये गये। और वर्तमान संविधान यानि चौथा संविधान वर्ष 1982 में पांचवें चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा में पास किया गया। इसके बाद वर्ष 1988, 1993, 1999 व 2004 में चार बार इसमें संशोधन किया गया है।

चंद्रिमाः धन्यवाद विकास जी, हमें चीनी संविधान के बारे में जानकारियां देने के लिये। अब मैं दूसरे सवाल का जवाब दूंगी कि ह्वांगहो नदी को चीन का शोक क्यों कहते हैं?ह्वांगहो नदी यानि चीन की पीली नदी, वह चीन में दूसरी बड़ी नदी है। उस की लंबाई विश्व में पांचवें स्थान पर है, और उस की तलछट भी विश्व में पहले स्थान पर है। वास्तव में हम पीली नदी को शोक के बजाय चीन की माता नदी ज्यादा कहते हैं। पर उस पर शोक का शीर्षक क्यों डाला गया?क्योंकि पीली नदी पीली मिट्टी पठार से गुजरती है। चीन के छिन राजवंश के बाद पीली मिट्टी पठार का मौसम ठंडा बन गया, और आंधी-पानी अक्सर आता था। इसलिये पीली मिट्टी वर्षा के साथ नदी में प्रवेश हुआ। जिससे पीली नदी में बराबर बाढ़ आती रहती थी। साथ ही जनसंख्या की तेज़ वृद्धि तथा असिमित कृषि योग्य भूमि के विकास से मिट्टी के कटाव पर और ज्यादा कुप्रभाव डालते थे। आंकड़ों के अनुसार इतिहास के 2 हजार से ज्यादा वर्षों में पीली नदी के डाउनस्ट्रीम में लगभग 1500 बार बाढ़ आयी, और पीली नदी का रास्ता भी 26 बार बदला है। शायद यही कारण है कि उसे चीन का शोक क्यों कहा जाता है। पर नयी चीन की स्थापना के बाद वैज्ञानिकों ने पीली नदी के सुधार के लिये अनेक प्रस्ताव तैयार किये हैं। पीली मिट्टी पठार पर वनस्पति की रक्षा करने के साथ साथ जल सिंचाई जंक्शन की स्थापना भी की गयी है। विश्वास है चीन सरकार व जनता के प्रयासों से पीली नदी की स्थिति ज़रूर सुधरेगी।

विकासः जी हां। श्रोता दोस्तो, वास्तव में प्राकृतिक पर्यावरण की संरक्षण न सिर्फ़ चीन सरकार व जनता की कर्तव्य है, बल्कि वह मानव की समान जिम्मेदारी भी है। विश्व की सभी जनता व सरकारों को इस पर ध्यान देना चाहिए।

चंद्रिमाः विकास ने बिल्कुल ठीक कहा। मैं उनकी बातों से बहुत सहमत हूं। अच्छा, कार्यक्रम के बाकी समय में हम और कुछ पत्र पढ़ेंगे, ठीक है न, विकास जी।

विकासः ठीक है। मेरे पास एक पत्र है, जो बिहार के अतमाद श्रोता क्लब के अध्यक्ष डा. एम.एफ़.आजम ने भेजा। इस पत्र में उन्होंने सी.आर.आई. व उन के बीच की दोस्ती को प्रकट करने के अलावा कुछ शिकायतें भी की है। जैसे:उन के श्रोता कल्ब अब तक सी.आर.आई. द्वारा भेजे उपहार से वंचित है, और अब तक कल्ब पंजीकृत नहीं हुआ इत्यादि।

चंद्रिमाः आजम जी। हमारे श्रोताओं की संख्या इतनी बड़ी है कि हर आदमी को सी.आर.आई. से उपहार मिलना असंभव है। पर अगर आप लोग सक्रिय रूप से हमें पत्र भेजते हैं, और हमारे द्वारा आयोजित गतिविधियों में भाग लेते हैं, तो कोई न कोई दिन सौभाग्य जरूर आपके साथ होगा। और हमने आपके कल्ब को भी पंजीकृत किया है। कुछ समय के बाद आप लोगों को हमारे द्वारा भेजे गये श्रोता वाटिका, लिफ़ाफा आदि चीज़ें मिल जाऐंगी।

विकासः आज का अंतिम पत्र मध्य प्रदेश के मालवा रेडियो श्रोता संघ के अध्यक्ष बलवन्त कुमार वर्मा का है। उन्होंने लिखा है कि श्रोता वाटिका का 28वां अंक पाकर श्रोता संघ के सदस्य मित्र बेहद खुश हुए। क्योंकि इस में श्याओ थांग जी व सौ चीनी युवा प्रतिनिधि मंडल की भारत यात्रा का वृतान्त पढ़ा और छाया चित्रों ने भारत चीन मैत्री की झलक सभी को दिखलाई। श्रोता मित्र झूम उठे।

चंद्रिमाः साथ ही उन्होंने यह सूचना भी दी कि सी.आर.आई. श्रोताओं का सम्मेलन, 24 अप्रैल 2011 को मालवा रेडियो श्रोता संघ द्वारा जिला मन्दसौर, मध्य प्रदेश में आयोजित किया गया, जिस में 100 श्रोताओं ने हिस्सा लिया। इस पत्र के साथ वर्मा जी ने मालवा रेडियो श्रोता संघ की गतिविधियों का फोटोग्राफ़ भी भेजा। बहुत बहुत धन्यवाद। हम ज़रूर इसे श्रोता वाटिका की संपादक को देंगे। शायद अगले अंक में आप लोगों का यह फोटो भी शामिल होगा।

विकासः अच्छा, इस पत्र के साथ आज का आप का पत्र मिला कार्यक्रम समाप्त होता है।

चंद्रिमाः पर और कुछ रंगारंग विषय आप की आवाज़ ऑन लाइन में मिलेगा। अब हम एक साथ सुनें यह कार्यक्रम।

चंद्रिमाः श्रोता दोस्तो, आज का कार्यक्रम यहीं तक समाप्त होता है। अगले हफ्ते हम ठीक इसी समय यहां फिर मिलेंगे।

विकासः अब विकास व चंद्रिमा को आज्ञा दीजिये, नमस्कार।

चंद्रिमाः नमस्कार।

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