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तिब्बत में रेल यात्रा
2011-11-24 19:04:45

लोगों के दिल में तिब्ब्त का स्थान विश्व की छत की तरह है। वहां पर विश्व की सब से ऊंची पर्वत चोटी चुमुलांगमा चोटी खड़ी है, विश के सबसे ऊंचे स्थान पर निर्मित महल पोताला महल, सबसे लंबा रेल मार्ग छिंगहाई-तिब्बत रेलवे तथा इसके अलावा अनेक पहाड़, झील, मैदान और मठ है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, मानवीय सभ्यता लोगों का मन अपनी तरफ आकर्षित करता रहता है।

तिब्बत पठार औसतन समुद्री तल से 4000 मीटर से ज्यादा ऊंचा है। यहाँ पर आक्सीजन की भी कमी होती है। यहाँ आने वाले कुछ लोगों को तो आक्सीजन की कमी के कारण उच्च रक्तचाप का भी सामना करना पड़ता है। इस कारण से बहुत सारे लोग चाहकर भी तिब्बत नहीं आ पाते हैं। विशेष तौर पर क्वांगतुंग के लोगों के लिए जो समुद्र तल से निम्न उँचाई से जब तिब्बत जाते हैं तो उन्हें वहाँ के वायु दबाब का सामना करना पड़ता है। वर्ष 2006 में, तिब्बत के लिए क्वांगतुंग से सीधी रेल सेवा, जो कि चीन की सबसे लंबी रेल सेवा भी है, शुरू होने के बाद लोग तिब्बत जाने के लिए तैयार होने लगे।

चोउ च्री छियांग और चोउ क निंग दोनों दंपति मूल रूप से क्वांगतुंग वासी है। उन्हें पर्यटन में बहुत रूची है। वे दोनों लगभग 70 साल के हो चुके हैं।वर्ष 2008 में दोनों बुजुर्गों ने तिब्बत जाने की योजना बनाई। उनके साथ कुछ दोस्त कुल मिलाकर दस से ज्यादा लोग तिब्बत जाने के लिए तैयार हुए। लेकिन जब पर्यटन कंपनी के पास आवेदन करने का समय आया तो सिर्फ तीन लोग ही शेष बचे। फिर दोनों पति पत्नी ने भी तिब्बत जाने का विचार त्याग दिया। इस साल दोनों दंपति ने पवित्र तिब्बती भूमि जाने का फिर से विचार बनाया। चोउ क निंग ने कहाः

मेरी बहुत इच्छा हुई इस पवित्र भूमि का दौरा करने की। पहले उच्च वायु दबाब के कारण वहाँ जाना तकलीफदेह लगता था। इस बार मैंने साहस के साथ वहाँ जाने का निर्णय लिया है। मेरे पति इस ग्रुप में सबसे वृद्ध हैं। मैं महिलाओं में सबसे वृद्ध हूँ। इस बार देखना चाहती हूँ कि जा सकती हूँ कि नहीं। नहीं तो फिर दुबारा मौका नहीं मिलेगा। मैंने सबसे बुरे परिणाम की तैयारी भी कर ली है। अगर वास्तव में सफलता नहीं मिली तो वहीं से हवाईजहाज से वापस आ जाउँगी। मान लूँगी की यह एक सबसे महंगी यात्रा हुई।

दोनों दंपति ने इस बार तिब्बत जाने के लिए रेल का चुनाव किया। क्वांगतुंग से तिब्बत की दूरी 4980 किलोमीटर है। रेल से यह दूरी तय करने के लिए तीन दिन और दो रात की जरूरत होती है। क्वांग-तिब्बत रेल के एक अधिकारी ने कहा कि रेल से तिब्बत जाने में समय बहुत ज्यादा लगता है लेकिन यह हवाई जहाज से ज्यादा सुविधापूर्ण है। यह ट्रेन दक्षिण सागर के तट से रवाना होकर हरी-भरी वादियों से होते हुए चीन के मध्य भाग में पहुँचती है, फिर वहाँ से खोखोशिली होते हुए सात प्रदेशों को पार करते हुए तिब्बत पहुँचती है। पर्यटक न केवल सुंदर पारिस्थितिकी का दर्शन कर सकते हैं बल्कि वे धीरे-धीरे उच्च वायु दबाब के आदी भी हो जाते हैं। क्वांग-तिब्बत रेल में कई विशेष मशीनें हैं जिससे पर्यटकों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।

स्वचालित ऑक्सीजन मशीन ट्रेन के डिब्बे में ऑक्सीजन का संचालन करते रहते हैं जिससे यात्रियों को कम आक्सीजन का सामना नहीं करना पड़ता है। ट्रेन के छूटने के बाद, हमलोग यात्रियों को विभिन्न तरह की सावधानियों का परिचय देते हैं जैसे उच्च वायु दबाव में क्या करना है और किस तरह से ऑक्सीजन लेना, एक-दूसरे की किस प्रकार मदद करना है आदि।

क्वांग-तिब्बत रेल सेवा में करामु और ल्हासा के बीच ऊंचाई औसतन समुद्रतल से 4000 मीटर से ज्यादा है जहां पर यात्रियों को उच्च रक्तचाप की शिकायत अक्सर होती है। 79 वर्षीय चोउ च्री छियांग ने कहा कि छिंग हाई प्रांत के शिनिंग से निकलने के बाद अधिकांश यात्रियों को सिरदर्द, उल्टी जैसी शिकायत होने लगती है लेकिन गंभीर स्थिति पैदा नहीं होती है। इस जगह पर जब ट्रेन पहुँचती है तो हमारे परिचारक यात्रियों का विशेष ध्यान रखते हैं।

ट्रेन परिचारक डिब्बों में घूमते रहते हैं। जब हमें किसी उच्च रक्तचाप के रोगी का पता चलता है तो हम उसे ऑक्सीजन पाईप देते हैं और मदद के लिए डाक्टर की भी व्यवस्था करते हैं।

इस ट्रेन के परिचारक अक्सर क्वांगतुंग और तिब्बत के बीच यात्रा करते हैं। उनका कहना है कि समुद्रतल से अधिक ऊंचाई खतरनाक नहीं है। सबसे मूल बात है कि वहाँ पहुँचने के बाद आप को अपने आप को ठीक ढंग से संयमित करना चाहिए। कुछ यात्री अक्सर ट्रेन में दिखाए जाने वाले समुद्रतल की उँचाई पर नजरे गड़ाए रहते हैं जिससे उनके उपर कुछ ज्यादा ही मानसिक दबाब पड़ जाता है। इस तरह वे बहुत आसानी से उच्च रक्तचाप के शिकार हो जाते हैं। क्वांगतुंग में पली-बढ़ी छ्वी यी ने कुछ दिन पहले ही अपनी तिब्बत यात्रा समाप्त की है। उसका कहना है कि तिब्बत जाने के लिए और पहुँचने के बाद किसी भी व्यक्ति का उत्तेजित होना स्वाभाविक है लेकिन एक शब्द कभी भी नहीं भूलना चाहिए। यह शब्द है धीमा।

आपका मन स्थिर होना चाहिए। जब आप तिब्बत पहुँचते हैं तो उस समय से आप सबकुछ को धीरे-धीरे करें। बोलने की गति धीमी होनी चाहिए, आपकी सभी गतिविधियां धीमी होनी चाहिए। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात है आराम करना। ल्हासा पहुँचते ही खाना खाने के बाद आराम की जरूरत होती है और नहाने से परहेज करना चाहिए। फिर आपको किसी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ेगा।

तिब्बत जाने वाले पर्यटकों का पहला चुनाव रेल का सफर ही होता है क्योंकि रेल से जाने पर आप रास्ते में कई दर्शनीय स्थलों का अवलोकन करने के साथ-साथ प्रकृति के सुंदर नजारों का भी आनंद ले सकते हैं। क्वांग-तिब्बत रेल के नेता यु सिन छियु ने हमारे संवाददाता को बतायाः

रेलगाड़ी के निर्जन क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद 5072मीटर समुद्रतल से ऊंचे थांकुला पर्वत पर पहुँचते ही तिब्बती नील गाय और जंगली घोड़े अक्सर दिख जाते हैं। नामुछु झील से गुजरने के समय, इस झील के उपर जमी हुई बर्फ नीली नजर आती है। यह बिल्कुल शीशा की तरह दिखता है। यहां पर गाय चराने वाले चरवाहे को भी देखा जा सकता है। बहुत सारे लोगों को रेल से तिब्बत का सफर करने के दौरान वहां की प्राकृतिक सुंदरता का अवलोकन करने का अच्छे मौके मिलते है। यहाँ का फोटो भी बहुत उत्तम होता है।

71 वर्षीया चोउ क निंग ने कहा, क्वांग चोउ से ल्हासा के बीच गाड़ी जब किसी स्टेशन पर रूकती थी तो वह नीचे उतरकर वहां के नजारे का अवलोकन करती थी।

गाड़ी बहुत कम देरी के लिए रूकती थी लेकिन सभी लोग नीचे उतरकर वहां के मौसम का आनंद लेते थे। वहां पर स्थानीय लोगों के अपने स्थानीय परिधान में देखकर बहुत आनंद आता था। गाड़ी पाँच मिनट के लिए भी रूकती थी तो नीचे जाकर देखती थी कि यहां पर क्या-क्या हैं।

क्वांगतुंग के लोग खाने-पीने के बहुत शौकिन होते हैं। चोउ क निंग को यह देखकर बहुत आश्चर्य हो रहा था कि उसी डिब्बे में बैठे एक अन्य यात्री खाने को लेकर परेशान था। वास्तव में, क्वांग-तिब्बत रेल में खाने का बहुत सारा सामान मौजूद होता है। यहां पर सछ्वान, हूनान, तिब्बती, मुस्लिम, पश्चिमी आदि सभी तरह का खाना मिलता है। ट्रेन परिचालक ने कहा कि इतना सारा व्यंजन तैयार करना बहुत मुश्किल होता है। विशेष रूप से जब समुद्रतल से अधिक ऊंचाई पर गाड़ी पहुँचती है तो खाना पकाना और ज्यादा मुश्किल हो जाता है। यात्रियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए हमारे रसोईए पहले ही भोजन तैयार कर लेते हैं।

यहाँ पर चावल पकने में दो घंटे लगते हैं। मांस पकाने के लिए एक दिन का समय लगता है।

क्वांगचोउ से ल्हासा पहुँचने में लगभग 55 घंटा लगता है। छ्वी यी ने कहा कि, ट्रेन परिचालक स्वयं यात्रियों के साथ बातचीत करते हैं। वे यात्रियों को विभिन्न जगहों के रीति-रिवाजों, रहन-सहन आदि का परिचय देते हैं। इस पूरे सफर में ट्रेन परिचालक और यात्री दोस्त बन जाते हैं। मा शीन ने कहा, हमलोग कभी-कभी यात्रियों को आश्चर्यचकित भी कर देते हैं।

एक बार एक यात्री ने बातचीत के दौरान कहा कि आज उसका जन्मदिन है। ट्रेन परिचालक ने तुरंत इसकी सूचना अपने नेता को दिया। हमलोगों ने अगले स्टेशन पर एक केक बुक किया। जब ट्रेन अगले स्टेशन पर पहुँचा तो हम केक खरीदकर ले आए। फिर उस यात्री को बुलाकर केक दिखाया। यह सब देखकर वह खुश होने के साथ-साथ आश्चर्यचकित भी था।

चोउ च्री छियांग, चोउ क निंग और छ्वी यी सभी लोगों ने कहा कि उनलोगों ने ट्रेन परिचालकों को रात के समय भी देखभाल के लिए आवाजाही करते हुए देखा है। रात में किसी यात्री को जब परेशानी होती है तो वे उसकी मदद करने आ पहुंचते हैं। उसी ट्रेन के उपनेता ने कहा कि जल्द ही मध्य शरद उत्सव आने वाला है। हमलोग इस त्योहार को मनाने की तैयारी कर रहे हैं।

मध्य शरद उत्सव के दिन हमलोग हरेक डिब्बे में लाल लालटेन टांगेंगे। खाने में मून केक भी दिया जाएगा। त्यौहार के माहौल में एक साथ यात्रियों के साथ यह त्यौहार मनाया जाएगा। अगर कोई तिब्बती यात्री मिलेगा तो उसके साथ नाच-गान का इंतजाम किया जाएगा। ऐसा माहौल तैयार किया जाएगा कि सभी लोगों को ऐसा लगे कि वे अपने परिवार के साथ त्यौहार की खुशियां मना रहे हैं।

पहले यातायात की असुविधा, उच्च समुद्रतल, आक्सीजन की कमी आदि कारणों से यात्रियों का तिब्बत में प्रवेश करना कठिन था। लेकिन अब, क्वांग-तिब्बत रेल सेवा शुरू हो जाने से तिब्बत जाना बहुत आसान हो गया है। इस रेल सेवा के शुरू होने से लेकर आज तक सबकुछ बहुत ही सुरक्षित है। कभी भी कोई दुर्घटना नहीं हुई है। आशा है कि भविष्य में अधिक से अधिक लोग इस रेल सेवा का उपयोग कर अपनी तिब्बत यात्रा के सपने को पूरा कर सकेंगे।

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