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शिन्जो अबे का स्वागत नहीं करती चीनी जनता
2014-01-09 17:54:20

यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है ।श्रोता दोस्तो ,वर्ष 1943 में चीन ,अमेरिका और ब्रिटेन तीन देशों के नेताओं ने जापान विरोधी युद्ध के समन्वय और युद्ध के बाद जापान के निपटारे पर विचार करने के लिए मिस्र की राजधानी काहिरा में एक अहम बैठक बुलाई। इतिहास में इस बैठक को काहिरा बैठक के नाम से जाना जाता है। मिस्र की यात्रा कर रहे चीनी उप विदेश मंत्री च्यांग मिंग ने 8 जनवरी को काहिरा बैठक के आयोजन के स्थल मोना हाउस होटल जाकर चीन और मिस्र के संवाददाताओं के साथ इतिहास का अवलोकन किया और चीन जापान संबंधों पर सवालों के जवाब दिए। अब हमारे संवाददाता द्वारा काहिरा से भेजी गयी एक रिपोर्ट सुनिए ।

मीना हाउस होटल में उप विदेश मंत्री च्यांग मिंग ने सबसे पहले काहिरा घोषणा पत्र का कानूनी प्रभाव दोहराया ।उनके विचार में न्याय का समर्थन और आतिक्रमण की सजा करने वाली काहिरा घोषणा पत्र की भूमिका निभाकर जापानी आतिक्रमणकारियों को पराजित करने का परिणाम और दूसरे विश्व युद्ध के बाद स्थापित हुई एशिया और प्रशांत क्षेत्र की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाए रखा जाना चाहिए ।उन्होंने कहा ,

काहिरा बैठक विश्व फासिस्ट विरोधी युद्ध के इतिहास में मील पत्थर जैसी अंतरराष्ट्रीय बैठक है ।इस बैठक के बाद जारी काहिरा घोषणा पत्र में जापान द्वारा छेडा गया चीन के खिलाफ युद्ध और प्रशांत महासागर युद्ध को आतिक्रमण युद्ध करार किया गया और पूरे विश्व के समक्ष जापानी सैन्यवाद पूरी तरह पराजित करने का फासिस्ट विरोधी गठबंधन देशों का संकल्प व्यक्त किया गया । काहिरा घोषणा पत्र और बाद में संपन्न जारी पोट्सडाम वक्तव्य में साफ साफ कहा गया है कि जापान को चीन से चुरायी गयी सभी भूमि लौटानी है ,जिसमें त्याओयू द्वीप शामिल है ।ये दो दस्तावेज युद्ध के बाद जापान सवाल के निपटारे के अंतरराष्ट्रीय कानून का आधार है और युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और जापान की प्रादेशिक सीमा निर्धारित करने के सभी कानूनी दस्तावेजों का आधार भी ।अब शांति प्रेमी काहिरा बैठक के असाधारण योगदान और काहिरा घोषणा पत्र के दूरगामी महत्व की प्रशंसा करते हैं ।

च्यांग मिंग ने जोर देकर कहा कि त्याओयू द्वीप और उसके अधीन द्वीप प्राचीन समय से चीन की भूमि रही है ।चीनियों ने सबसे पहले उन द्वीपों को पाया और नाम दिया और उनका विकास किया ।इसके अलावा चीन ने लंबे अरसे तक इन द्वीपों पर शासन किया ।वर्ष 1895 चीन जापान युद्ध के अंत में जापान ने गैरकानूनी रूप से इन द्वीपों को चुराया ।दूसरे विश्व युद्ध के बाद काहिरा घोषणा पत्र और पोट्सडाम वक्तव्य समेत सिलसिलेवार अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय कानून की नजर से उन द्वीपों पर चीन का प्रभुत्व है ।

च्यांग मिंग ने कहा कि त्याओयू द्वीप सवाल पर जापानी सरकार का रूख और काररवाई चीनी प्रभुसत्ता का जानबूझकर उल्लंघन है और विश्व फासिस्ट विरोधी युद्ध के परिणाम का खुलेआम खंडन भी है ।जापानी प्रधानमंत्री शिन्जो अबे ने पडोसी देशों के जबरदस्त विरोध की उपेक्षा कर 26 दिसंबर 2013 को यासुकुनी मंदिर में पूजा की औऱ क्षेत्रीय तनाव बढाया ।इसके प्रति च्यांग मिंग ने कहा कि जापान का आतिक्रमण युद्ध का मामला पलटने की मंजूरी कतई नहीं दी जाएगी और जापान का इतिहास घुमाने की मंजूरी कतई नहीं दी जाएगी ।उन्होंने कहा ,  

जापान चीन का पडोसी देश है ।हम जापानी जनता के साथ सामान्य व मैत्रीपूर्ण संबंध की स्थापना करना और उसका विकास करना चाहते हैं ।लेकिन अबे के नेतृत्व वाली जापानी दक्षिण पंथी शक्ति ऐतिहासिक जिम्मेदारी ठुकराकर ऐतिहासिक अपराध अस्वीकार करती है ,यहां तक कि वे एशिया व प्रशांत क्षेत्र के विभिन्न देशों के करोडों जनता की खून से लथपथ दूसरे विश्व युद्ध के अपराधियों की पूजा करते हैं ।यह चीन जापान संबंध का राजनीतिक आधार गंभीर रूप से बर्बाद करना है और चीनी जनता समेत एशिया व प्रशांत क्षेत्र की जनता का अवमानना है और उनकी भावना को ठेस पहुंचाई। इसके अलावा यह मानव नैतिकता की बेस लाइन की चुनौती है ।अबे की कार्रवाई जापान को एक अत्यंत खतरे की दिशा में ले जा रही है ,जिसने क्षेत्रीय शांति व स्थिरता पर गंभीर नुकसान पहुंचाया ।अबे ने इस कार्रवाई से अपने हाथ से चीनी नेता से वार्ता करने का द्वारा बंद कर दिया ।चीनी जनता ऐसे जापानी राजनीतिज्ञ का स्वागत नहीं करती ।

च्यांग मिंग ने कहा कि इतिहास न सिर्फ स्मारक है ,बल्कि एक दर्पण भी है ।इतिहास की याद करने से दुखत नाटक दोहराया नहीं जा सकेगा ।इतिहास का सामना करते ही भविष्य का नया अध्याय जोडा जा सकेगा ।उन्होंने बल देकर कहा कि अगर जापानी नेताओं को चीन और पडोसी देशों के साथ संबंध सुधारने की सदिच्छा है ,तो उनको इतिहास और भविष्य के प्रति जिम्मेदार ऱूख अपनाकर जापानी सैन्यवाद के वैदेशिक आतिक्रमण और उपनिवेश का इतिहास सही रूप से देखने के साथ-साथ गहराई से आत्मलोकन करना चाहिए। उन्होंने कहा

अगर जापानी नेता और दक्षिणी पंथी अपनी इच्छा पर अड़े रहकर सही रूप से इतिहास नहीं देख सकते और अपने पडोसी देशों व अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास जीतने के लिए व्यावहारिक कदम नहीं उठाते ,तो उनके द्वारा उठाया गया यह पत्थर उनके ही पांव पर गिरेगा ।

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