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नये साल की शुरुआत में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में नया कदम उठाया। 5 जनवरी भारत ने आंध्र प्रदेश स्थित प्रक्षेपण केंद्र से क्रायोजेनिक इंजन से लैस राकेट वाहक जीएसएलवी डी -5 का सफल प्रक्षेपण किया और इस राकेट ने एक दूर संचार उपग्रह को निर्धारित कक्षा में स्थापित किया। इस तरह भारत ने पहली बार क्रायोजेनिक इंजन वाला राकेट छोडने में सफलता पायी।
राकेट प्रक्षेपण सफल बताया जाता है। 5 तारीख को शाम चार बजकर 18 मिनट पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इसरो ने आंध्र प्रदेश स्थित प्रक्षेपण केंद्र में सफलता से जीएसएलवी डी-5 छोडा। इस राकेट की लंबाई 49 मीटर और वजन 415 टन है ,जिस पर 1982 किलो जीसैट-14 दूर संचार उपग्रह को छोड़ा गया।
ध्यान रहे भारत ने अप्रैल 2010 में पहली बार क्रायोजेनिक इंजन वाला राकेट वाहक छोडा ।लेकिन दो क्रायोजेनिक इंजनों में समय पर इग्नाइजिशन नहीं हुआ और प्रक्षेपण असफल रहा। माना जाता है कि इस बार जीएसएलवी डी-5 का सफल प्रक्षेपण भारत के अंतरिक्ष अनुसधान के लिए व्यापक महत्व रखता है। कई वर्षों से भारत मुख्य तौर पर रूसी क्रायोजेनिक इंजन वाले राकेट से भारी उपग्रह छोडता रहा है । रूसी क्रायोजेनिक इंजन की कीमत 1 करोड 80 लाख अमेरिकी डालर है ,जबकि भारत के स्वनिर्मित इंजन का खर्च सिर्फ 36 करोड रूपये है । स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के व्यापक इस्तेमाल से भारत के उपग्रह प्रक्षेपण का खर्च काफी हद तक कम होगा । इस संदर्भ में भारत संबंधित उपकरणों का निर्यात कम करेगा ।खास बात यह है कि भारत दूसरे देशों के लिए अधिकाधिक उपग्रह छोडने में सक्षम होगा ।इसके अलावा क्रायोजेनिक इंजन पर्यावरण के हित में है और इसकी मजबूत शक्ति है ,जो अंतरिक्ष तकनीक के भावी विकास की मुख्य दिशा है । जीएसएलवी डी-5 के सफल प्रक्षेपण से भारत विश्व में ऐसी तकनीक में महारत हासिल करने वाला छठा देश बन चुका है ।इससे पहले सिर्फ अमेरिका ,रूस ,चीन ,फ्रांस और जापान के पास ऐसी तकनीक है ।
इस सफल प्रक्षेपण से भारत के विभिन्न क्षेत्रों को प्रेरणा मिली ।भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बताया कि इस प्रक्षेपण से भारत ने विज्ञान व तकनीक में और एक बडा कदम उठाया है । इसरो के अध्यक्ष राधाकृषणन ने कहा कि बीस साल की मेहनत व कोशिश से यह उपलब्धि हासिल हुई है ।भारतीय मीडिया ने इस प्रक्षेपण की व्यापक प्रशंसा की। आईएएनएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने बीस साल में 4 अरब रूपये खर्च कर अंत में यह सफलता पायी ।
विश्लेषकों के विचार में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत महत्वाकांक्षी है ।वर्ष 2013 में भारत ने पहला मंगलयान अंतरिक्ष में पहुंचाया ।वर्ष 2014 में भारत अंतिरक्ष अनुसंधान में अधिक सक्रिय नजर आएगा ।