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पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ अपने आवास के पास एक बम मिलने के बाद बुधवार को सुनवाई के लिए अदालत में पेश नहीं हुए। मुशर्रफ देशद्रोह के मामले में मुकदमे का सामना करने के लिए अदालत में पेश होने वाले थे।
पूर्व योजना के मुताबिक 24 दिसम्बर को मुशर्रफ़ को पाकिस्तान की एक विशेष अदालत में सुनवाई के लिए पहुंचना था, लेकिन रास्ते में विस्फोटक मिलने से उनकी सुनवाई स्थगित कर दी गई और अगली तारिख 1 जनवरी निश्चित हुई।
इसके बाद मुशर्रफ बुधवार एक जनवरी को भी अदालत में पेश नहीं हुए क्योंकि उनके आवास के बाहर सड़क पर एक किलो विस्फोटक सामग्री बरामद हुई, जिस रास्ते से वह अदालत जाने वाले थे। सड़क के किनारे स्थित रेस्तरां में 2 संदिग्द्ध व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। पिछले कुछ दिनों में मुशर्रफ के घर के नजदीक यह दूसरा बम पाया गया।
यह दूसरा मौका है जब अदालत जाने के उनके रास्ते से विस्फोटक सामग्री बरामद हुई है। मुशर्रफ के वकील अहमद राजा कसूरी ने बताया कि उनके मुवक्किल सुरक्षा कारणों के चलते अदालत में पेश नहीं हो सके। उन्होंने मुशर्रफ के आवास के पास से विस्फोटक पदार्थ बरामद होने का जिक्र किया। उन्होंने मुकदमे की सुनवाई पांच हफ्ते के लिए स्थगित करने का अनुरोध किया, लेकिन अदालत ने उनका अनुरोध नहीं माना। देशद्रोह के मामले में सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति फै़सल अरब ने गुरूवार मुशर्रफ़ को हर स्थिति में अदालत में पेश करने का आदेश दिया है।
वहीं इस्लामाबाद पुलिस के अनुसार अब पुलिस ने मुशर्रफ को अदालत में पेश होने के लिए सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किए हैं। अदालत तक जाने के रास्ते में लगभग 1000 पुलिसकर्मी तैनात किये गये हैं।
पाक सेना के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ का पद संभालने के दौरान मुशर्रफ़ ने नवंबर 2007 में देश भर में इमरजेंसी लागू की थी और करीब 60 न्यायाधीशों को बर्खास्त किया। उनकी यह कार्रवाई संविधान के खिलाफ मानी गई। इसके चलते उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है। नवम्बर 2013 में पाकिस्तान सरकार ने औपचारिक तौर पर मुशर्रफ़ के खिलाफ़ देशद्रोह के आरोप को लेकर मुकदमा चलाना शुरु किया। तीन सदस्यों से गठित एक विशेष अदालत स्थापित हुई। पाकिस्तान के इतिहास में पूर्व सैन्य नेता के खिलाफ़ पहली बार देशद्रोह का मुक़दमा चलाया गया है। अगर ये आरोप साबित हो जाता है, तो मुशर्रफ़ को मौत की सज़ा या आजीवन कारावास हो सकता है।
मुशर्रफ़ के वकील ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की और विशेष अदालत से मुशर्रफ़ पर लगाए गए देशद्रोह अपराध वाले आरोपों को बंद करने का अनुरोध किया। वकील ने उच्च न्यायालय से अपील करने के तीन कारण बताए और विशेष अदालत के गठन और प्रोक्यूरेटर की नियुक्ति पर आशंका जतायी। उनके वकील का कहना है कि वर्ष 2007 में मुशर्रफ़ ने सेना प्रमुख की हैसियत से इमरजेंसी लागू की, उनकी सुनवाई सैन्य अदालत में होनी चाहिए। लेकिन उच्च न्यायलय ने वकील के इस अनुरोध को ठुकरा दिया।
ऐसी स्थिति में मुशर्रफ़ के खिलाफ अंत में क्या फैसला होगा?विश्लेषकों का विचार है कि उनके विरुद्ध अपराध साबित होने की कम संभावना है। सर्वप्रथम, मुशर्रफ़ ने 29 दिसम्बर को विदेशी मीडिया के साथ हुए एक साक्षात्कार में कहा था कि उन पर लगाया गया देश-द्रोह का आरोप "प्रतिशोधात्मक" कार्रवाई है, जिससे फौजी पक्ष असंतुष्ट है। पाक सेना उनके साथ खड़ी है। अब तक मुशर्रफ़ पर देशद्रोह के आरोप को लेकर पाक सेना ने कोई खुली टिप्पणी नहीं की। विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के 66 वर्षों के इतिहास में सैन्य शासन आधे से ज्यादा समय तक जारी रहा। पूर्व सेनाध्यक्ष के रूप में मुशर्रफ़ पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया और यह पाक सेना ऐसा नहीं चाहती।
दूसरा, मुशर्रफ़ ने वर्ष 1999 में राजनीतिक विद्रोह के जरिए तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ का तख्ता पलट किया। लेकिन शरीफ़ गत मई में तीसरी बार पाक प्रधानमंत्री बने। वे अवश्य ही इसका प्रतिशोध करना चाहते हैं। मुशर्रफ़ को 8 महीने नज़रबंद किए जाने से शरीफ़ सरकार का लक्ष्य पूरा हो गया कि किसी के राजनीतिक विद्रोह करने का नतीज़ा मुशर्रफ़ जैसा हो सकता है।
तीसरा, 70 वर्षीय मुशर्रफ़ का देश में बड़ा प्रभाव फिर भी कायम है। वर्तमान पाकिस्तान में उनके खिलाफ़ सरकार की कार्रवाई का विरोध करने वाले व्यक्ति मौजूद हैं। विपक्षी लोगों का विचार है कि मुशर्रफ़ पर मुकदमा चलाने का लक्ष्य सेना पक्ष की शक्ति को कम करना है, जिससे घरेलू खतरों से लोगों का ध्यान हट गया है। वर्तमान सरकार को देश की सुरक्षा स्थिति में सुधार करने, ऊर्जा की कमी और आर्थिक कमजोरी के समाधान करने पर जोर देना चाहिए।
चौथा, मुशर्रफ़ पर मुकदमा चलाने के दौरान सऊदी अरब के शाह परिवार और अमेरिका सरकार का भी दबाव है। शरीफ़ सरकार को अपने मित्रों की राय भी सुननी पड़ेगी।
(श्याओ थांग)