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वर्ष 2013 से अलविदा कहने का समय नजदीक आ रहा है। इस साल चीन की नई सरकार ने चाहे प्रमुख क्षेत्रीय मुद्दे या ज्यलंत अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे क्यों न हो, उन सब पर अपना श्रेष्ठ राजनयिक प्रदर्शन किया है।
इस साल मार्च महीने में चीन में नई सरकार की स्थापना के बाद राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष के रूप में शी चिनफिंग और ली ख छ्यांग ने क्रमशः 7 बार विदेशों का दौरा किया है। इनमें एशिया, अफ्रीका,यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप के 22 देश शामिल हैं। साथ ही शी चिनफिंग और ली ख छ्यांग ने भी देश में 64 विदेशों के राष्ट्राध्यक्षों एवं शासनाध्यक्षों से भेंटवार्ताएं कीं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में चीन और दूसरे देशों के बीच सहयोग के लिए करीब 800 समझौते संपन्न हुए हैं। कुछ समय पहले चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने योजना की पहल करने, सक्रियता से प्रगति करने, हिम्मत से जिम्मेदारी निभाने और नया सृजन करने जैसे शब्दों में इस साल चीनी राजनयिक कार्य की विशेषता व्यक्त की। उन्होंने कहाः
`वर्ष 2013 चीनी राजनयिक इतिहास में असाधारण है। चीनी राजनयिक कार्य ने अपनी परंपरा और प्रमुख उसूलों के आधार पर राष्ट्रपति शी चिनफिंग की अगुवाई वाली केँद्रीय पार्टी-कमेटी के निर्देशन में अच्छा प्रदर्शन किया है। नई परिस्थिति में चीनी राजनयिक कार्य और भी व्यापक दृष्टि और सकारात्मक रवैये से दुनिया भर में किया जाएगा।`
2013 में चीन और दूसरे बड़े देशों के बीच संबंधों का विकास आकर्षण का केंद्र रहा। राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने पद संभालने के बाद रूस को अपनी पहली विदेश-यात्रा का पहला पड़ाव बनाया। इससे जाहिर है कि चीन-रूस की रणनीतिक साझेदारी विदेशों के साथ चीन के संबंधों में भारी महत्व रखती है। उधर चीन और अमेरिका के बीच बड़े देशों के नए ढंग के संबंध बनाने की चीन की अपील भी विश्व में ध्यानाकर्षक है। इस पर पेइचिंग विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध कॉलेज के प्रोफ़ेसर ये ची छंग ने कहाः
` चीन की इस अपील का उद्देश्य शांतिपूर्ण साझा विकास करना, सहयोग एवं समान जीत का रास्ता अपनाना, दूसरे देशों के हितों को ध्यान में रखना और समान सुरक्षा सुनिश्चित करना है। मेरे विचार में चीन और अमेरिका के बीच इस तरह के नए ढंग के संबंध कायम हो सकते हैं।`
गौरतलब है कि उभरती अव्यवस्थाओं के एक प्रतिनिधि—भारत का विकास दुनिया भर की मीडिया-सुर्खियों में रहा है। प्रधानमंत्री के रूप में ली ख छ्यांग ने भारत को अपनी पहली विदेश-यात्रा का पहला पड़ाव चुना। उधर भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस साल चीन की यात्रा की। बीते 6 दशकों में ऐसा पहली बार हुआ कि चीन और भारत के प्रधानमंत्रियों ने एक ही साल में एक दूसरे के देशों का दौरा किया। यह सबसे अहम रहा।
2013 में चीनी नेताओं ने दसेक पड़ोसी देशों की यात्रा की और इस तरह के 21 देशों के नेताओं से देश में मुलाकात की। उल्लेखनीय है कि भारत, रूस और मंगोलिया गणराज्य जैसे चीन के 3 पड़ोसी देशों के प्रधानमंत्रियों ने लगभग एक ही समय चीन की यात्रा की। यह हाल के वर्षों में बहुत कम देखने को मिला है। खास बात यह है कि चीन ने पास-पड़ोस के देशों के साथ अपने संबंधों के विकास के लिए सहयोग के अनेक अहम सुझाव प्रस्तुत किए हैं। इसकी चर्चा करते हुए चीनी अंतर्राष्ट्रीय मामला अनुसंधान-प्रतिष्ठान के उप प्रमुख रवान त्सोंग त्से ने कहाः
`चीन ने रेशम-मार्ग से जुड़ी आर्थिक पट्टी, चीन-पाक आर्थिक गलियारा, चीन-भारत-बांग्लादेश आर्थिक गलियारा बनाने की परिकल्पना और सुझाव पेश किए हैं। चीन का उद्देश्य इन देशों का अच्छा पड़ोसी, अच्छा साझेदार और अच्छा दोस्त बनना है। और चीन इन देशों के साथ अपने विकास के अनुभवों को साझा करना चाहता है।`
दूसरी ओर चीन ने अपने केंद्रीय हितों से जुड़े मसलों को लेकर जरा भी अस्पष्टता नहीं बरती है। 2013 में जापान की उकसावे वाली हरकत को देखकर चीन ने त्याओयू द्वीप के जलक्षेत्र में नियमित गश्त लगाना जारी रखा है और उपयुक्त समय पर पूर्वी चीन सागर के ऊपर अपना वायु रक्षा पहचान क्षेत्र घोषित किया। इसके अलावा फिलिपीन्स द्वारा एकतरफ़ा तौर पर दक्षिण चीन सागर से जु़ड़े विवाद को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता कोर्ट के हवाले करने के कदम का भी डटकर विरोध किया और संबंधित देशों के साथ वार्ता के जरिए विवाद को सुलझाने की समान कोशिश की है। चीन ने अपने व्यावहारिक कदमों से दुनिया को बताया है कि चीन शांतिपूर्ण विकास के रास्ते पर अविचल है और राष्ट्रीय हितों की कीमत पर कथित विकास कतई नहीं करेगा। शांगहाई अंतर्राष्ट्रीय मामला अनुसंधान-प्रतिष्ठान के प्रभारी छन तुंग श्याओ के शब्दः
`दूसरे देशों के साथ संबंधों के निपटारे में चीन अपनी संप्रभुत्ता की जमकर रक्षा करने पर कायम है। चीन का यह रूख स्पष्ट और सर्वविदित है। यह रूख अपनाने का चीन का उद्देश्य किसी भी देश को संदेह और गलतफहमी में पड़ने से रोकना है।`
उधर सीरिया-संकट और ईरानी परमाणु कार्यक्रम पर वार्ता आदि ज्वलंत मुद्दों के समाधान में भी चीन ने सकारात्मक मध्यस्थता की है। इस साल फिलिस्तीन और इजराइल दोनों देशों के नेता चीन आए। फिलिस्तीन-समस्या के समाधान के लिए चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 4 सूत्रीय सुझाव पेश किया। उल्लेखनीय है कि फिलिस्तीन-समस्या पर किसी चीनी राष्ट्रपति का यह पहला सुझाव है। इसके अलावा चीन ने संयुक्त राष्ट्र और रासायनिक हथियारों पर पाबंदी वाली अंतर्राष्ट्रीय संगठन की मांग के अनुसार सीरिया के रासायनिक हथियारों के विनाश के लिए भी बहुत से काम किए हैं। संक्षेप में अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के समाधान में चीन की लगातार बढती भूमिका की अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने बड़ी प्रशंसा की है।