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अफ़गान राष्ट्रपति हामिद करजई 15 दिसंबर को भारत की यात्रा समाप्त कर काबुल वापस लौटे। भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह दोहराया कि भारत अफ़गानिस्तान को संक्रमणकाल और इसके बाद भी समर्थन देगा। करजई ने इस पर संतोष प्रकट किया।
इस वर्ष मई में अफ़गानिस्तान ने भारत को हथियार खरीदने संबंधी सूची सौंपी थी, लेकिन उस बारे में भारत की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। इसलिये करजई की इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत से सैन्य समर्थन जुटाना है। ताकि वर्ष 2014 में विदेशी सुरक्षा बलों के हटने के बाद अफ़गानिस्तान में हथियारों का बड़ा अभाव कम किया जा सके। लेकिन भारतीय अधिकारी से मिली खबर के अनुसार दोनों पक्षों ने इस मामले पर कोई वास्तविक उपलब्धि प्राप्त नहीं की। भारतीय सरकारी वेबसाइट द्वारा जारी खबर के अनुसार भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन के साथ वार्ता में भारत व अफगानिस्तान रणनीतिक सहयोग साझेदार संधि के ढांचे के तले विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग मजबूत करने पर चर्चा हुई। भारत वित्तीय समर्थन, छात्रवृत्ति योजना व पुनःनिर्माण कार्यक्रम आदि के जरिए अफ़गानिस्तान के सामाजिक व आर्थिक विकास में समर्थन देगा। इसके अलावा भारत व अफगानिस्तान ईरान के साथ व्यापार के नये रास्ते का विकास करना चाहते हैं। सैन्य व सुरक्षा सहयोग में दोनों पक्षों ने सुरक्षा व प्रतिरक्षा सहयोग मजबूत करने पर सहमति जताई। भारत अफगान सैनिकों को प्रशिक्षण देगा, ताकि वे अफगानिस्तान में सेना व बुनियादी सुविधाओं की मांग पूरा कर सकें, और अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों की लड़ाकू क्षमता को उन्नत किया जा सके। पर यह पता नहीं है कि भारत किस तरह के हथियार अफगानिस्तान को देगा, और हथियारों की मात्रा कितनी होगी।
भारत की यात्रा से पहले करजई ने अमेरिका की मांग पर वर्ष 2014 के बाद कुछ अमेरिकी सैनिकों की तैनाती से जुड़े द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया। इसलिये अमेरिका को आशा है कि भारत भारत-अफगान के घनिष्ठ संबंधों का इस्तेमाल करके द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते के हस्ताक्षर पर समन्वय कर सकेगा। लेकिन भारत ने यह कहा है कि भारत इस बात पर ध्यान देता है। लेकिन इस मसले पर हस्तक्षेप व मूल्यांकन नहीं करेगा। वार्ता में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन ने कहा कि भारत को विश्वास है कि अफगान सरकार व जनता एक समृद्ध व शक्तिशाली देश के निर्माण में सक्षम हैं। एक शांतिपूर्ण अफगानिस्तान क्षेत्रीय स्थिरता व विकास के लिये लाभदायक होगा। मनमोहन ने यह दोहराया कि भारत संक्रमणकाल व इसके बाद भी अफगानिस्तान को समर्थन देगा। भारत के रुख पर करजई संतुष्ट हैं। उन्होंने कहा कि मुझे बहुत खुशी हुई कि द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर भारत अफ़गानिस्तान की मांग को खूब समझता है। साथ ही भारत को भी यह मालूम है कि क्यों अफगानिस्तान इस समझौते पर हस्ताक्षर करने में इतना सावधानी रखता है।
विश्लेषकों का मानना है कि भारत व अफगानिस्तान के बीच दीर्घकालीन घनिष्ठ सहयोग संबंध हैं। करजई की इस यात्रा से दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग साझेदार संबंधों को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण मौका मिला है। साथ ही भारत अगले वर्ष नाटो के सुरक्षा बलों के हटने के बाद अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण, खासतौर पर सुरक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। हाल के कई वर्षों में भारत अफगानिस्तान के साथ अर्थव्यवस्था, सुरक्षा व प्रतिरक्षा आदि क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग बनाए रखेगा। भारत ने अफगानिस्तान को 2 अरब अमेरिकी डॉलर की सहायता दी है। अफगानिस्तान की स्थिरता भारत के हितों से जुड़ी हुई है। भारत पाकिस्तान के खिलाफ़ अफगानिस्तान को सैन्य सहायता देता है। और कुछ लोगों ने इस पर चिंता जताई है कि भारत को अफगान मामले में शामिल नहीं करना चाहिए। क्योंकि पाक लंबे समय से अफगानिस्तान में भारत की भूमिका पर ध्यान देता है। अगर भारत अफगानिस्तान को हथियार देगा, तो पाकिस्तान इस कार्रवाई को एक उत्तेजक बात समझेगा।
चंद्रिमा