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अफ़गान राष्ट्रपति हामिद करजई ने 1 दिसंबर को इसकी आलोचना की कि अमेरिका ने जानबूझकर कुछ अफ़गान सैन्य बलों व पुलिस इकाइयों की ज़रूरी सप्लाई बंद कर दी। ताकि अफ़गान सरकार विवश होकर द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करे।
करज़ई के राष्ट्रीय सुरक्षा कमेटी की सभा में भाग लेने के बाद अफगान राष्ट्रपति कार्यालय ने एक वक्तव्य जारी करके कहा कि हाल ही में तेल व उपकरण की सप्लाई दो तीन बार बाधित हुई। इसी कारण से संबंधित विभागों ने विवश होकर अपना काम बंद किया। वक्तव्य में यह कहा गया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा कमेटी के ख्याल से अमेरिका ने पहले का वायदा तोड़कर अफगान सैनिकों व पुलिस इकाइयों के लिये ईंधन, समर्थन व सेवा देना बंद किया। यह अफगान सरकार पर दबाव बनाने का एक तरीका है। ताकि अफगान सरकार विवश होकर बिना शर्त अफ़गान-अमेरिका द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करे।
पिछले महीने की 24 तारीख को 2500 कबाइली नेताओं से गठित लोया जिर्गा में अफगान-अमेरिका द्विपक्षीय सुरक्षा समझौता पारित किया गया। और कुछ अमेरिकी सैनिकों को वर्ष 2014 के बाद भी अफगानिस्तान में तैनात रहने पर सहमति बनी। साथ ही उन्होंने करजई से ठीक समय पर इस पर हस्ताक्षर करने का आग्रह किया। लेकिन करजई ने फिर एक बार स्पष्ट रूप से यह कहा है कि वे अगले वर्ष के अप्रैल में आयोजित राष्ट्रपति चुनाव से पहले अमेरिका के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। विश्लेशकों का मानना है कि करजई दो बार राष्ट्रपति बन चुके हैं। वे फिर एक बार राष्ट्रपति नहीं बनेंगे। उनके कड़े रुख से यह जाहिर है कि वे अमेरिका से कुछ दूरी बनाए रखना चाहते हैं। वे अमेरिका के एक एजेंट नहीं बनना चाहते। उधर इसके विरोध में लोगों का कहना है कि करजई समझौते के माध्यम से इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि अपने पसंद के राष्ट्रपति उम्मीदवार को अमेरिका का समर्थन मिल सके।
हालांकि नाटो के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बलों ने तुरंत वक्तव्य जारी करके इन आरोपों से इनकार किया। और कहा कि वे जानबूझकर सप्लाई बंद नहीं करते। हमें अफ़गान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों की मांग मिलते ही हम सप्लाई शुरू करेंगे।
लेकिन 2 दिसंबर को नाटो के एक उच्च स्तरीय अधिकारी ने करजई को यह चेतावनी दी कि अगर द्विपक्षीय सुरक्षा समझौता नहीं हुआ, तो नाटो वर्ष 2014 के बाद सभी कार्रवाई बंद कर देगा। साथ ही सभी सहायता व वादे भी पूरे नहीं किए जाएंगे।
3 दिसंबर से नाटो का दो दिवसीय विदेश मंत्री सम्मेलन बेल्जियम के ब्रसेल्स में आयोजित हो रहा है। एक अधिकारी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वर्तमान में अफगान सुरक्षा बलों पर हर वर्ष 4 अरब 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च करने हैं। लेकिन अफगान सरकार केवल 50 करोड़ देने में सक्षम है। बाकी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मिली सहायता है। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हर वर्ष अफगानिस्तान के विकास के लिये लगभग 4 अरब अमेरिकी डॉलर की सहायता देता है। अगर अफगानिस्तान व अमेरिका के बीच समझौता नहीं हुआ तो वर्ष 2014 के बाद अफ़गानिस्तान में कोई विदेशी बल नहीं होगा। यह अफगानिस्तान में सैन्य व आर्थिक सहायता देने वाले देशों के भरोसे पर प्रभाव डालेगा।
वर्तमान में अफगानिस्तान में तैनात नाटो सैनिकों की संख्या लगभग 84 हजार है। उनमें 60 हजार अमेरिकी सैनिक हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के अनुसार अमेरिका के नेतृत्व वाले अफ़गान स्थित नाटो के अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बलों का कार्यकाल अगले वर्ष के अंत में समाप्त होगा। अगर अफगानिस्तान व अमेरिका ने नये कानूनी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये, तो अफगानिस्तान में स्थित अमेरिका व उनके सहयोगी सेना बलों में कानूनी आधार खो जाएगा। पहले जारी समझौते के अनुसार अफगानिस्तान इस पर सहमत है कि अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सैनिकों के पास आपराधिक उन्मुक्ति का अधिकार है। और दोनों पक्षों के बीच सैन्य सहयोग के ठोस तरीके व विषय भी सुनिश्चित किया गया। इस समझौते के मसौदे को लोया जिर्गा में पारित करके संसद की सहमति भी प्राप्त होगी। और राष्ट्रपति के इस पर हस्ताक्षर करने के बाद वह प्रभावी होगा। इससे पहले अमेरिकी सरकार ने लगातार करजई पर दबाव डाला। और आशा है कि इस साल के भीतर अफ़गानिस्तान द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर कर सकेगा। ताकि अमेरिका व उसके सहयोगी वर्ष 2014 के बाद भी अपने सैनिक अफगानिस्तान में तैनात कर सकें।
चंद्रिमा