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करजई अफगान-अमेरिका सुरक्षा समझौते के प्रति अपने रूख पर अडे
2013-11-26 16:17:58


अफगानिस्तान में राष्ट्रीय महासभा—लोया जिरगा ने 24 नवम्बर को अफगान-अमेरिका सुरक्षा समझौता पारित कर राष्ट्रपति करजई से जल्द ही इसपर हस्ताक्षर करने की अपील की। लेकिन करजई ने इसकी परवा न करके अपना पुराना रूख बार-बार दोहराया कि इस समझौते पर अगले साल अप्रैल में राष्ट्रपति-चुनाव होने के बाद भी हस्ताक्षर किए जाएंगे।

24 नवम्बर को कोई 2500 कबाइली सरदारों से बने लोया जिरगा में भारी बहुमत से अफगान-अमेरिका सुरक्षा समझौते को पारित कर वर्ष 2014 के बाद भी निश्चित संख्या में अमेरिकी सैनिकों के अफगानिस्तान में बने रहने पर सहमति बनाई गई और राष्ट्रपति करजई से समय रहते समझौते पर हस्ताक्षर करने का आग्रह किया गिया। लेकिन करजई ने दोहराया कि वो अलगे साल अप्रैल में राष्ट्रपति-चुनाव होने से पहले अमेरिका के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। उन्होंने कहाः

`शांति पूर्व शर्त है। अमेरिका को हमारे देश में शांति लाने की पहल करनी चाहिए, फिर हम समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। शांति के बिना यह समझौता अफगानिस्तान को मुसीबत में डालेगा।`

करजई ने इस बात पर भी जोर दिया कि अगर किसी अमेरिकी सैनिक ने अफगानों के घरों में छापेमारी के लिए प्रवेश किया, तो इस समझौते का अस्तित्व नहीं रहेगा।

संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के अनुसार अफगानिस्तान में अमेरिका की अगुवाई वाली अंतर्राष्ट्रीय सहायता सेना का कार्यकाल अगले साल के अंत में पूरा होगा। यदि अफगानिस्तान और अमेरिका के बीच कानून के रूप में कोई नया समझौता संपन्न नहीं हुआ, तो अफगानिस्तान में अमेरिका और उसके मित्र देशों के सैनिकों की तैनानी कानूनी तौर पर निराधार होगी। पहले घोषित इस समझौते के मसौदे के अनुसार अफगान पक्ष इस बात पर सहमत है कि अफगानिस्तान में बने रहने वाले अमेरिकी सैनिकों को अपराधों के लिए कानूनी सज़ा से निजात का अधिकार दिया जाएगा और दोनों देशों के सैन्य सहयोग के ठोस तरीके और मुद्दे स्पष्ट रूप से तय किए जाएंगे। लोया जिरगा में यह समझौता पारित किया गया तो है, लेकिन राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करने के बाद भी वह प्रभावी हो सकता है।

उधर अमेरिका सरकार करजई पर दबाव बनाने की कोशिश में रही है कि वह चालू वर्ष के भीतर इस समझौते पर हस्ताक्षर करें, ताकि अमेरिका और उसके मित्र देशों को वर्ष 2014 के बाद भी अफगानिस्तान में सैन्य तैनाती संबंधी योजना बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता सुश्री प्साकी ने कहाः

`समझौते पर हस्ताक्षर के समय को अगले साल अप्रैल तक टालना अव्यावहारिक है और है असंभव।`

रिपोर्टों के अनुसार लोया जिरगा का यह आयोजन करजई के आह्वान में किया गया है और इस पर 4 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च किए गए हैं। लेकिन उस में प्राप्त सहमति का खुद करजई द्वारा खुलेआम नजरंदाज किया गया है। इससे करजई को आलोचनाओं की लहरों का सामना करना पड़ा है।

24 नवम्बर को लोया जिरगा में एक नाटकीय दृश्य दिखाई दिया। उसमें करजई के भाषण देने के बाद लोया जिरगा के अध्यक्ष, पूर्व राष्ट्रपति मुजादीदी ने मंच पर चढ़कर सीधे तौर पर कहा कि करजई को समझौते पर हस्ताक्षर को टालने का अधिकार नहीं है। उनका कहना है कि हस्ताक्षरण में देरी करना अफगानिस्तान के हित में नहीं है। जब करजई दुबारा मंच पर चढकर बहस करने लगे, तो मुजादीदी ने ऊंची आवाज में यहां तक कि टेबल बजाते कहाः

`अगर समझौते पर जल्द ही हस्ताक्षर नहीं किये गए, तो मैं सभी पदों से इस्तीफ़ा दे दूंगा और किसी दूसरे देश में शरण के लिए जाऊंगा।`

अफगानिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री, राष्ट्रपति-पद के प्रत्याशी अब्दुल्लाह ने भी करजई के विचारों का बिना किसी लाग-लपेट के विरोध किया। उनका कहना हैः

` राष्ट्रपति करजई सिर्फ अपनी मांग प्रकट कर रहे हैं। अफगान-अमेरिका सुरक्षा समझौते को आम चुनाव के साथ जोड़ना बहुत खतरनाक है। हमें उन के ऐसा करने की जरूरत नहीं है।`

कई विश्लेषकों का मानना है कि करजई दूसरी बार राष्ट्रपति-पद संभाल रहे हैं। उनके लिए आगे भी इस पद पर बने रहना असंभव है। उनकी वर्तमान ज़िद से जाहिर है कि वो अमेरिका से थोड़े दूर रहना चाहते हैं, न कि अमेरिका के एजेंड के रूप में राजनीतिक मंच से हटना चाहते। दूसरी ओर यह भी देखा जा सकता है कि करजई इस समझौते का किसी तराजू के भार के रूप में प्रयोग करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि राष्ट्रपति-पद के उन के चहते उम्मीदवार को अमेरिका से समर्थन मिल सके।

अफगान राष्ट्रीय शांति आयोग के अध्यक्ष आबेदी के अनुसार अफगान सरकार अमेरिकी सहायता पर निर्भर है। ऐसे में करजई द्वारा नकारात्मक रवैया अपनाए जाने के बावजूद सुरक्षा समझौते पर जल्द ही हस्ताक्षर होंगे। लेकिन इससे युद्ध जारी रह सकता है।

आबेदी ने कहाः

`मेरी नजर में कजरई के आह्वान में आयोजित इस लोया जिरगा का कोई मतलब नहीं है, जिसमें 2500 लोग उपस्थित थे। इन लोगों में से अधिकत्तर सरकार के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने सिर्फ अमेरिका को खुश करने के लिए करजई की मदद की है। करजई ने कहा था कि वो अगले साल अप्रैल में राष्ट्रपति-चुनाव होने के बाद समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। यह बहुत अतार्किक है। अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान में तैनात होने का अधिकार नहीं है और करजई को भी अधिकार नहीं है अमेरिका के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर करने का। इस समझौते से सिर्फ ऐसा नतीजा निकलेगा अथार्त युद्ध जारी रहेगा।`

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