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अफगान संसद में सुरक्षा समझौते का मसौदा पारित
2013-11-25 14:37:33

स्थानीय समयानुसार 24 नवम्बर को अफगान महासभा—लोया जिरगा में 4 दिनों के विचार-विमर्श के बाद अफगान-अमेरिका सुरक्षा समझौते का मसौदा पारित किया गया और उम्मीद जताई गई कि राष्ट्रपति करजई चालू साल के अंत से पहले इस ममझौते पर हस्ताक्षर करेंगे।

इस समझौते का मसौदा पारित होने का मतलब यह है कि अगले एक दशक में अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों को अपराधों के लिए कानूनी सज़ा से मुक्ति का अधिकार मिलेगा अथार्त अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिक सिर्फ अमेरिकी सैन्य कानून से बंधेंगे, अफगान कानून का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अफगानिस्तान ने किसी भी अमेरिकी को किसी भी अंतर्राष्ट्रीय अदालत के हवाले नहीं करने का वचन दिया है। इसके अलावा अफगानों के घरों में छानबीन के लिए अमेरिकी सैनिकों के प्रवेश को भी अनुमति मिली है, मतलब कि विशेष स्थिति में अमेरिकी सैनिकों को अफगानों के घरों में छापेमारी के लिए दाखिल होने की इज़ाज़त मिली है। इससे अमेरिका के पास आतंक विरोधी छापेमारी के लिए कुछ गुंजाइश सुरक्षित हो सकती है। आमराय है कि लोया जिरगा ने ऐसा निर्णय इसलिए लिया है, च्योंकि सर्वविदित है कि अफगानिस्तान में तालिबान अब भी सक्रिय है, बल्कि अफगान सुरक्षा बल की शक्ति सीमित है, मतलब कि वह अकेले राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने में असक्षम है और उसके लिए जरूरी है कि निश्चित संख्या में अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में रहकर सैन्य प्रशिक्षण, सुझाव और आतंक-विरोधी सहायता दें। अन्य एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि अगर अफगानिस्तान में अमेरिका ने अपनी सैनिक तैनाती को नहीं बरकरार रखा, तो अफगान सरकार को अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता के रूप में 4 अरब से अधिक अमेरिकी डॉलर की वार्षिक धनराशि नहीं मिलेगी। इस समझौते के मसौदे के अनुसार अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती वर्ष 2024 तक रहेगी।

रिपोर्ट के अनुसार अफगान राष्ट्रपति करजई ने 21 नवम्बर को लोया जिरगा का उद्घाटन होने के बाद अपील की थी कि इस समझौते पर अगले साल वसंतकाल में राष्ट्रपति-चुनाव होने के बाद भी हस्ताक्षर किए जाए। इस पर लोया जिरगा ने कहा कि करजई को इस समझौते पर हस्ताक्षर के समय में देरी करने का हक नहीं है, बल्कि यह देरी करना अफगानिस्तान के हित में भी नहीं है। उधर अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर जल्द ही हस्ताक्षर करना अफगानिस्तान की शांति एवं स्थायित्व के लिए लाभदायक है और अगले साल होने वाले राष्ट्रपति-चुनाव को भी इससे फायदा मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस समझौते पर हस्ताक्षरण को अगले साल अप्रैल तक टालना अमेरिका के लिए भी अव्यावहारिक और असंभव है। इस साल के अंत में इस समझौते पर औपचारिक हस्ताक्षर होना दोनों देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसा नहीं हुआ, तो वर्ष 2014 के बाद अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य तैनाती की योजना पर बुरा असर पड़ेगा।

गौरतलब है कि इस समझौते में यह निश्चित नहीं किया गया है कि वर्ष 2014 के अंत में अमेरिका की अगुवाई वाली नाटो सेना की वापसी के बाद भी अफगानिस्तान में कितने विदेशी सैनिक बने रहेंगे? यह संख्या अमेरिका सरकार द्वारा तय की जाएगी। अनुमान के अनुसार यह संख्या 8000 से 12000 हो सकती है, जिसका दो तिहाई अमेरिका की है और बाकी सैनिक नाटो और उसके मित्र देशों के हैं। ये विदेशी सैनिक प्रमुख क्षेत्रों में तैनात किए जाएंगे, लेकिन वे अफगान सैनिकों के साथ सीधे युद्ध में भाग नहीं लेंगे।

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