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अफगानिस्तान में 21 नवंबर को चार दिवसीय लोया जिरगा सम्मेलन यानी ग्रांड राष्ट्रीय सभा शुरू हुई। 2500 अफगान कबीलाई सरदारों से गठित लोया जिरगा सम्मेलन में अफगानिस्तान-अमेरिका सुरक्षा समझौता पारित करने या न करने पर विचार-विमर्श हो रहा है।
अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने सम्मेलन में भाषण देते हुए कहा कि अगर अफगान-अमेरिका सुरक्षा समझौता पारित होता है, तो इस पर हस्ताक्षर 5 अप्रैल 2014 को अफगानिस्तान में चुनावों के बाद किए जाएंगे। 2014 में नाटो सेना हटने के बाद क्या अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी टुकड़ियों को न्यायिक क्षमादान का अधिकार मिलेगा या नहीं सम्मेलन का अहम विषय भी है।
स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक करजई ने भाषण में अचानक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर की तिथि स्थगित की। उन्होंने कहा कि चुनावों के आयोजन के बाद समझौता संपन्न करना सही और सम्मानजनक कार्रवाई है। इसके साथ-साथ अमेरिका द्वारा किए गए वादे की पुष्टि भी की जाएगी, यानी 2014 के बाद अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सेना का मुख्य कार्य आतंकियों से निपटने के बजाय अफगानिस्तान की सुरक्षा की गारंटी में तब्दील हो जाएगा।
करजई का भाषण अमेरिका के लिए बड़ा झटका है। क्योंकि अमेरिका उम्मीद लगाए बैठा था कि शीघ्र ही सुरक्षा समझौता संपन्न होगा, ताकि 2014 के बाद मुख्य सेना की वापसी के पश्चात अफगानिस्तान में तैनात सैनिकों को न्यायिक क्षमादान का अधिकार मिल सके। इस पर अफगानिस्तान स्थित अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा कि करजई के भाषण पर अभी अमेरिका टिप्पणी नहीं कर सकता। क्योंकि दोनों देशों के बीच प्रस्ताव संपन्न होने के बावजूद अफगान ग्रांड राष्ट्रीय असेंबली इसका विरोध कर सकता है। इसलिए सम्मेलन समाप्त होने से पहले बदलाव होने की संभावना है। वर्तमान में विचारार्थ विषय पर टिप्पणी नहीं की जा सकती।
प्रवक्ता ने कहा कि हालांकि अमेरिका द्वारा जारी सूचना से जाहिर है कि अमेरिका और अफगानिस्तान ने द्विपक्षीय सुरक्षा समझौता संपन्न किया और अमेरिकी सेना ने न्यायिक उन्मुक्ति अधिकार हासिल किया है। समझौते का मसौदा 20 नवंबर को अफगान विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर भी डाला गया है। लेकिन अफगान ग्रांड राष्ट्रीय असेंबली में इसे रद्द किया जा सकता है। मसौदा पारित होगा या नहीं, या इसमें संशोधन होगा या नहीं, सब विचार-विमर्श के बाद पता चलेगा।
सम्मेलन के दो मुख्य विषय हैं। पहला, क्या 2014 के बाद अमेरिकी सेना को न्यायिक उन्मुक्ति का अधिकार दिया जाएगा या नहीं। अगर अमेरिकी सेना को अधिकार मिलता है, तो स्थानीय न्यायालय में इसकी सुनवाई नहीं हो सकेगी। और दूसरा है, अमेरिकी सेना अफगान नागरिकों के घरों की जांच कर सकती है। इससे पहले अमेरिकी सेना अक्सर रात के वक्त स्थानीय लोगों के घरों में सर्च ऑपरेशन करती थी, जिसका अफगानिस्तान ने विरोध किया है। अगर उक्त दो विषय पारित हुए, तो अमेरिकी सेना के लिए रास्ता साफ हो जाएगा। इससे अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की तैनाती 2024 तक लंबित होने की संभावना होगी। अन्यथा अमेरिका 2014 में सभी सैनिकों को वापस बुला लेगा।
अफगानिस्तान में सुरक्षा समझौते पर रवैया भी अलग है। विरोधी पक्ष का विचार है कि अमेरिकी सेना की तैनाती अफगानिस्तान की प्रभुसता का अतिक्रमण है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसका विरोध करने वाले अधिकतर अफगान नागरिक हैं। क्योंकि वे पिछले 12 सालों में जारी अमेरिकी सैन्य कार्रवाई के सबसे बड़े शिकार हैं। जबकि समर्थक अफगान सुरक्षा स्थिति पर ज्यादा ध्यान देते हैं। उनका विचार है कि अफगान सुरक्षा टुकड़ियां इतनी सक्षम नहीं हैं कि अमेरिकी सेना के हटने के बाद देश की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसलिए कुछ अमेरिकी सैनिक वहां मौजूद रहने चाहिए, ताकि अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति बेहतर हो।