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जलवायु परिवर्तन के मुकाबले नीति और कार्यक्रम शीर्षक 2013 वार्षिक रिपोर्ट 5 नवंबर को जारी की गई । चीनी राजकीय विकास और सुधार आयोग के उप प्रमुख श्ये चन ह्वा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुकाबले में चीन द्वारा उठाए गए कदमों की प्रगति से जाहिर है कि चीन सरकार जिम्मेदार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि विकसित देशों से विकासशील देशों को पूंजी और तकनीक देने का वचन निभाने की अपील की, जो ध्यानाकर्षक बात बन गई। सुनिए विस्तार सेः
जलवायु परिवर्तन के लिए संयुक्त राष्ट्र ढांचागत संधि के सदस्य देशों की 19वीं बैठक और क्योटो प्रोटोकॉल के सदस्य देशों की 9वीं बैठक 11 नवंबर को पोलैंड की राजधानी वारसा में आयोजित होंगी। नियमों के मुताबिक चीन सरकार जलवायु परिवर्तन के मुकाबले नीति और कार्यक्रम से जुड़ी वार्षिक रिपोर्ट जारी करेगी। चीनी राजकीय विकास और सुधार आयोग के उप प्रमुख श्ये चन ह्वा ने कहा कि 2013 वार्षिक रिपोर्ट से जाहिर होगी कि चीन ने अपना वादा निभाया है। श्ये चन ह्वा का कहना हैः
-----आवाज 1-----
"11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान चीन ने आर्थिक विकास के साथ साथ 1 अरब 50 करोड़ टन के कार्बन डाइऑक्साइड की निकासी कम की है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के पहले दो सालों में चीन ने 3 से 4 टन कार्बन डाइऑक्साइड की निकासी में कटौती की। जलवायु परिवर्तन के मुकाबले में चीन सरकार द्वारा उठाए गए सिलसिलेवार कदमों, नीतियों और कार्यक्रमों की उल्लेखनीय उपलब्धियां हुई हैं। इससे जाहिर है कि चीन सरकार जिम्मेदार है और संजीदगी से वायदा निभाती है।"
अहम बात यह है कि चीन, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका ने कुछ समय पहले आयोजित 17वें जलवायु परिवर्तन मंत्री स्तरीय सम्मेलन में संयुक्त वक्तव्य जारी किया, जिसमें कहा गया है कि विकसित देश को अपने वादे के अनुसार विकासशील देशों को पूंजी, तकनीक और समर्थन देना चाहिए। वक्तव्य में चर्चित वादा यह है कि 2015 से पहले 30 अरब चीनी युआन की धनराशि जमा करनी चाहिए और 2020 से पहले इसे 1 खरब युआन तक पहुंचाना चाहिए। ताकि जलवायु परिवर्तन के मुकाबले में विकासशील देशों को सहायता दी जा सके। ब्राजील के विदेश संबंध मंत्रालय के उपाध्यक्ष कर्वरो ने कहाः
-----आवाज 2-----
"पूंजी सचमुच एक प्रमुख सवाल है। विकसित देशों को विकासशील देशों की सहायता करने के लिए ठोस कार्रवाई करनी पड़ती है, ताकि क्षमता निर्माण और तकनीक हस्तांतरण साकार हो सके।"
इस पर चीनी राजकीय विकास और सुधार आयोग के उप प्रमुख श्ये चन ह्वा ने कहा कि विकसित देशों के सामने मुश्किलें मौजूद हैं। लेकिन उन्हें अपना वायदा और जिम्मेदारी निभानी चाहिए। यह राजनीतिक विश्वास के आधार पर है। उनका कहना हैः
-----आवाज 3-----
"विकसित देशों के सामने मौजूद आर्थिक मुश्किलें दीर्घकालीन नहीं है। हम आशा करते हैं कि पूंजी लगाने के कार्यक्रम तय करने के बाद विकासशील देशों का विश्वास बढ़ेगा।"
मीडिया ने कहा कि अगर विकासशील देशों को पूंजी और तकनीक का समर्थन नहीं मिले, तो कार्बन निकासी कम करने में उनका कार्रवाई प्रभावित होगी। श्ये चन ह्वा ने इससे मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि चीन समेत व्यापक विकासशील देश इस पर सक्रिय हैं। श्ये चन ह्वा ने कहः
-----आवाज 4-----
"स्थिति मीडिया की बात के बराबर नहीं है। पूंजी और तकनीक के समर्थन के बिना चीन समेत व्यापक विकासशील देशों ने जलवायु परिवर्तन के मुकाबले में सक्रिय कार्यक्रम किए हैं।"
आंकड़ों के मुताबिक औद्योगिक क्रांति से 2010 तक विकसित देशों में कार्बन निकासी दुनिया की 70 प्रतिशत रही, जबकि विकासशील देशों का अनुपात सिर्फ 30 फीसदी है। लेकिन अब तक विकासशील देशों ने सक्रिय कार्रवाई के जरिए 70 प्रतिशत कार्बन निकासी कम की है।
श्ये चन ह्वा ने कहा कि चीन विकासशील देश होने के नाते आर्थिक विकास, गरीबी उन्मूलन, जन जीवन सुधार, पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के मुकाबले आदि व्यापक चुनौतियों का सामना कर रहा है। लेकिन चीन फिर भी सक्रिय कदम उठाएगा और अपनी जिम्मेदारी निभाएगा।