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चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रेस प्रवक्ता यांग य्वीचुन ने 31 अक्तूबर को पेइचिंग में आयोजित नियमित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि बुधवार को जापानी समुद्री आत्मरक्षा बल का एक जहाज पश्चिमी प्रशांत महासागर के उस अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र में जबरन घुसकर लम्बे समय तक ठहरा, जहां चीनी नौसेना का अभ्यास हो रहा था। जापान की यह हरकत चीन के सामान्य सैन्याभ्यास में बुरा हस्तक्षेप है। इसे लेकर चीनी रक्षा मंत्रालय ने जापान से गंभीरता से तलब किया है। यांग य्वीचुन ने कहा कि चीन इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए जापान से सामान्य चीनी सैन्य गतिविधियों में दखल देने की उस की सभी हरकतों को बन्द करने की मांग करता है। अगर जापान ने चीन की न मानी, तो जो भी परिणाम निकले, उसके लिए जापान जिम्मेदार होगा और चीन उसके खिलाफ़ आगे भी कदम उठाने का अपना अधिकार सुरक्षित रखेगा।
ध्यान रहे कि गत 23 अक्तूबर को चीन ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मामला संगठन के जरिए घोषणा की थी कि चीनी नौसेना 24 अक्तूबर से पहली नवम्बर तक पश्चिमी प्रशांत महासागर के अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र में सैन्याभ्यास और निशानेबाजी-प्रशिक्षण करेगी। इसके लिए चीन ने विभिन्न देशों के इस क्षेत्र में आने-जाने वाले जहाजों को सावधान रहने की सलाह दी। लेकिन जापानी समुद्री आत्मरक्षा बल का न0. 107 जहाज चीन की सलाह की परवाह न करके 25 अक्तूबर की सुबह 10 बजकर 41 मिनट पर जबरन चीनी सैन्याभ्यास वाले क्षेत्र में घुस गया और लम्बे समय तक ठहरा। करीब 3 दिन बाद भी यानी 28 अक्तूबर को वह वहां से चला गया। इसके साथ जापान के कई टोही विमानों ने भी अनेक बार चीनी सैन्याभ्यास वाले क्षेत्र के ऊपर नभक्षेत्र में घुसकर टाह लगाई।
इसके बारे में यांग य्वीचुन ने कहा कि चीनी रक्षा मंत्रालय जापान के समक्ष इस मामले को गंभीरता से उठा चुका। उन्होंने कहाः
`जापानी समुद्री आत्मरक्षा बल के जहाज ने न केवल चीन के सामान्य सैन्याभ्यास में दखल दिया है, बल्कि चीनी जल-जहाजों के परिचालन को भी खतरा पैदा किया है। यह एक बड़ी खतरनाक उकसावे वाली हरकत है। इसे लेकर चीन जापान से उसकी गलती को दुरुस्त करने के लिए गंभीरता से आत्मालोचना करने की मांग करता है, ताकि इस तरह की घटना दुबारा न घटित हो सके।`
दूसरी तरफ़ जब जापानी जहाज ने चीनी सैन्याभ्यास वाले क्षेत्र में संकट का संकेत दिया, तो चीन ने मानवता के लिहाज से जल्द ही उसे सहायता दी।
गौर हो कि जापान ने इधर की एक अवधि में कथित किसी दूसरे देश की ओर से आने वाले सैन्य खतरे के बारे में कई बयान दिए हैं। कुछ समय पहले जापान ने 2014 की अपने आत्मरक्षा बलों की बजट संबंधी रिपोर्ट दी। इसमें खिला गया है कि जापान के आसपास के जल एवं नभ क्षेत्रों में चीन अधिकाधिक सक्रिय रहा है। इससे जापान के आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा की स्थिति और भी बिगड़ गई है। उल्लेखनीय है कि यह विषय जापान की पहले की इस तरह की रिपार्ट में कभी भी देखने को नहीं मिला है। इस रिपोर्ट में साफ़ तौर पर यह भी लिखा गया है कि जापान अपने दक्षिण पश्चिमी समुद्री क्षेत्र में चौकसी एवं निगरानी की शक्ति को अधिक मजबूत करेगा और इस समुद्री क्षेत्र में स्थित सभी टापुओं की रक्षा की व्यवस्था को परिपूर्ण बनाने के लिए ड्रोन विमानों का आयात करेगा।
इस रिपोर्ट के बारे में यांग य्वीचुन ने कहा कि जापान ने जो किया है, वह शस्त्रागार बढाने की तैयारी है। इससे आसपास के देशों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को बड़ी सतर्कता बरतनी चाहिए। यांग य्वीचुन ने कहाः
` जापान चीनी सैन्य खतरे वाली बयानबाजी पर अडा रहा है। उसका उद्देश्य अपने शस्त्रागार को बढाने का बहाना ढूंढना है। हां, इतिहास में जापान ने अपनी सैन्य शक्ति को बढाने के लिए बहाना बनाने और यहां तक कि दूसरे देशों का अतिक्रमण करने की घृणित हरकत की थी, बल्कि इन सब को लेकर उसने आज तक भी आत्मालोचना नहीं की है।`
गत 29 अक्तूबर को जापानी रक्षा मंत्री ओनोदेरा. इत्सुनोरी ने कहा कि त्याओयू द्वीप के निकट जलक्षेत्र में चीन की आक्रमणकारी कार्यवाही शांति को खतरे में डाल सकती है। जापान सरकार इस साल के अन्दर सुरक्षा की गारंटी वाले कानून में संशोधन लाने पर विचार करेगी।
इस पर चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रेस प्रवक्ता यांग य्वीचुन ने कहा कि त्याओयू द्वीप चीन का एक मूल भू-भाग है। चीन उसका अतिक्रमण कतई नहीं करेगा, ऐसा करने की क्या जरूरत है? बल्कि उसकी रक्षा करेगा। त्याओयू द्वीप का मुद्दा सौ फीसदी साफ़ है। शांति को खतरा पैदा करने वाला शतप्रतिशत जापान ही है। उनका कहना हैः
`जापान ने हाल ही में जहां एक ओर युद्ध का माहौल बनाने के लिए चीनी सेना पर बेबुनियाद आरोप लगाया है, वहां दूसरी ओर उसने मान लिया है कि चीनी सेना की गतिविधियां अंतर्राष्ट्रीय कानून के खिलाफ़ नहीं हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? जापान को अपनी विकृत मानसिकता को बदलना चाहिए और अपने सही स्थान पर बैठकर दूसरे देशों की कानूनी सैन्य कार्यवाहियों को स्वीकार करना चाहिए। अन्यथा वह अपने को दयनीय हालत में खुद डालने की अपनी मजबूरी से बाहर नहीं निकल सकेगा और उसे अपनी मोल लेने वाली परेशानी सताती रहेगी। चीन में एक कहावत प्रचलित है कि युद्ध प्रमी को ही युद्ध में हार मिलेगी। चीन आशा करता है कि जापान इतिहास को सही दृष्टि से देखेगा और शांति एवं विकास के सही रास्ते पर चल निकलने के लिए ठोस कदम उठाएगा। चीन युद्ध कतई नहीं छेड़ेगा, लेकिन जरा भी नहीं डरता युद्ध से। किसी भी देश को राष्ट्रीय संप्रभुत्ता, सुरक्षा एवं प्रादेशिक अखंडता की रक्षा करने की चीनी सेना की शक्ति, मनोबल, हिम्मत और प्रतिबद्धता को कम कर नहीं आंकना चाहिए।