Web  hindi.cri.cn
बुनियादी चार देशों ने चीन में संयुक्त वक्तव्य जारी किया
2013-10-30 18:07:51

बुनियादी चार देशों का 17वां जलवायु परिवर्तन संबंधी मंत्री स्तरीय सम्मेलन 29 अक्टूबर को चीन के च्रच्यांग प्रांत की राजधानी हांगच्यु शहर में समाप्त हो गया। चीन, भारत, ब्राजिल और दक्षिण अफ्रीका तथा छोटे द्वीप संघ के सदस्य सिंगापुर से आये प्रतिनिधियों ने जलवायु परिवर्तन में पैदा हुए महत्वपूर्ण समस्याओं पर विचार-विमर्श किया। चार देशों द्वारा सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में जोर देते हुए कहा गया कि विकसित देशों को विकासशील देशों को धनराशी एवं तकनीकी प्रदान करना और क्षमता निर्माण करना आदि वचनों का कारगर रूप से पालन करना चाहिये, जो कि नवम्बर में वॉरसॉ में आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का सफलतापूर्वक सम्पन्न किया जा सके।

विकासमान देशों के प्रतिनिधि के रूप में बुनियादी चार देश अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ता में समान पक्षधर हैं। उन्होंने लम्बे समय से अत्यन्त महत्पूर्ण भूमिका अदा की है। नियमित नियमों के अनुसार बुनियादी चार देश जलवायु परिवर्तन संबंधी सम्मेलन से पहले सलाह-मशविरा करेंगे।

29 अक्तुबर की शाम को बुनियादी चार देशों ने चौथा मंत्री स्तरीय विचार-विमर्श के बाद संयुक्त वक्तव्य जारी किया चीनी राजकीय विकास और सुधार कमेटी के जलवायु विभाग के प्रभारी सू वेइ ने इस वक्तव्य को लेकर कहा कि वॉरसॉ में आयोजित होने वाला संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन संपन्न उपलब्धियों को अमल में लाने वाला सम्मेलन है। उन्होंने कहा-

"मंत्रियों ने कहा है कि वॉरसॉ सम्मेलन को बाली, कानकुन, डरबन और दोहा में आयोजित सम्मेलनों में प्राप्त उपलब्धियों को अमल में लाना चाहिये। मंत्रियों ने जोर देते हुए कहा कि धनराशी समस्या सम्मेलन की सफलता का फैसला करेगी।"

विश्लेषकों का मानना है कि वॉरसॉ सम्मेलन में ग्रीन क्लाइमेट फंड की चर्चा की जाएगी। वर्ष 2009 में संपन्न कोपेनहेगन समझौते और वर्ष 2010 में कानकुन समझौते की मांगों के अनुसार विकसित देशों को वर्ष 2010 से 2012 तक 3 खरब अमरीकी डॉलर की पूंजी जुटाकर वर्ष 2013 से 2020 तक हर साल 10 खरब अमरीकी डॉलर देना चाहिये, ताकि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में मदद दी जा सके। लेकिन अभी तक सहायता धनराशी नहीं जुटायी गयी है।

इसके प्रति बुनियादी चार देशों द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य में विकसित देशों से धनराशी जुटाने की मांग भी की गयी। ब्राजिल के विदेश मंत्रालय के उप महासचिव कार्वालहो ने कहा-

"धनराशी समस्या एक कूंजीभूत समस्या है। विकसित देशों को कारगर कार्यवाही कर विकासशील देशों की मदद के लिये धनराशी जुटानी चाहिये ताकि विकासमान देश क्षमता निर्माण और तकनीकी हस्तांतरण कर सके।"

आकड़ों से पता चला है औद्योगिक क्रांति से लेकर अब तक विकसित देशों ने 70 प्रतिशत कार्बन डाइओक्साइड की निकासी की है, जबकि विकासमान देशों ने 30 प्रतिशत का उत्सर्जन किया है। चीनी राजकीय विकास और सुधार कमेटी के उप प्रभारी श्ये चेन ह्वा के विचार में विकसित देशों को अधिक कम निकासी करना चाहिये। उन्होंने कहा

"विकसित देशों को ऐतिहासिक जिम्मेदारी लेनी और कम निकासी पर जोर देना चाहिये। अपने देश में कारगर कदम उठाना अत्यन्त महत्वपूर्ण है।"

नयी कार्यवाही शैली खोजने के लिये विभिन्न देशों को वर्ष 2015 में एक नये समझौते पर हस्ताक्षर करने की जरूरत है, ताकि क्योटो प्रोटोकॉल विफल होने के बाद वर्ष 2020 में जलवायु परिवर्तन के मुकाबले की पुष्टि की जा सके। जबकि वॉरसॉ सम्मेलन नये समझौते का प्रारंभिक बिंदु है। इसके प्रति संयुक्त वक्तव्य में दोहराया गया कि वॉरसॉ सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन ढांचागत संधि के अधीन संतुलित और औपचारिक वार्ता करना चाहिये ताकि वर्ष 2015 में समय पर समझौता संपन्न होने के लिये सकारात्मक संकेत दिया जा सके।

आप की राय लिखें
Radio
Play
सूचनापट्ट
मत सर्वेक्षण
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040