भारत के वर्तमान आर्थिक संकट की वर्ष 1991 में आए अंतरराष्ट्रीय भुगतान संकट से तुलना नहीं की जानी चाहिए। वर्तमान में भारत में चालू खाते का घाटा ज्यादा हो रहा है, जिससे रूपए की विनिमय दर घटकर नए ऐतिहासिक स्तर पर पहुंची। विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने हाल ही में उक्त बात कही।
सिंगापुर की मीडिया की 20 अगस्त रिपोर्ट के अनुसार बसु ने आर्थिक आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि भारत की आर्थिक समस्या से 1991 में आए अंतरराष्ट्रीय भुगतान संकट की तुलना नहीं की जानी चाहिए। भारत की वर्तमान स्थिति उसी समय से अच्छी है। इसके अलावा 19 अगस्त को बसु ने नयी दिल्ली में भाषण देते हुए कहा कि उसी दिन रूपए व अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर घटकर 62.46 हो गयी। भारत को विदेशी मुद्रा भंडारण के जरिए रूपए की विनिमय दर को बनाए रखना चाहिए। वैसे 20 अगस्त को डॉलर के मुक़ाबले रूपया लुढ़ककर 64 तक पहुंच चुका है।
बसु भारत के वित्त मंत्रालय के मुख्य सलाहकार बने थे। उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि जापान की तरह भारत को अल्पावधि में तरलता लानी चाहिए। उन्होंने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था बेहतर होगी, जबकि यूरो क्षेत्र का संकट डेढ़ साल तक चलेगा।
गौरतलब है कि इस साल मई के अंत से भारतीय रूपए की विनिमय दर में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है। पिछले हफ्ते भारत सरकार द्वारा तमाम कदम उठाए जाने के बावजूद रूपए की हालत नहीं सुधर रही है।
(मीनू)