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उत्तर पश्चिम चीन स्थित निंगश्या का दौरा
2013-08-14 15:53:49

11 वीं शताब्दी से 13 वीं शताब्दी तक के दौ सौ वर्षों में अल्पसंख्यक जाति तांगश्यां जाति , जिस का अधिकांश उत्तर पश्चिम प्राचीन चीन की घूमंतु छांग जाति है , ने वर्तमान निंगश्या ह्वी स्वायत्त प्रदेश में शीश्या राजवंस की स्थापना की और दो सौ वर्षों तक उत्तर पश्चिम चीन का शासन किया था । बाद में मंगोल सेना ने शीश्या राजवंश का खात्मा कर दिया , जबकि शीश्या में बसी तांग श्यांग अल्पसंख्यक जातीय लोग मजबूर होकर धीरे धीरे चीनी हान जाति और अन्य अल्पसंखयक जातियों से जा मिले हैं ।

इन छ्वान शहर के केंद्र से कार चलाकर डेढ़ घंटे से कम समय में शीश्या राजवंश के शाही कब्रस्थान पहुंच सकता है। शीश्या शाही कब्रस्तान वर्तमान चीन में सुरक्षित सब से संपूर्ण बड़े स्थलीय शाही कब्रस्थानों में से एक माना जाता है और उसे पूर्वी पिरैमिड कहा जाता है । गगनचुम्बी होलान पर्वत की तलहटी में खड़ा होकर दूर से देखा जाय़े , तो पीली मिट्टी से बने बनाये पर्वत रुपी समाधियां काफी भव्यदार व पुरातन दिखाई देती हैं ।

शीश्या शाही कब्रस्तान का पता गत सदी के 70 वाले दशक में लगाय़ा गया है , असल में इस रहस्यमय शाही राज्य का पता सचमुच संयोग से हुआ है । जून 1972 में चीनी जन मुक्ति सेना के लानचओ फौजी क्षेत्र की अमुक टुकड़ियों ने होलान पर्वत के नीचे एक छोटे आकार वाले फौजी हवाई अड्डे के निर्माण का कार्य संभाला , सैनिकों ने इस हवाई अड्डे का आधार खोदने के दौरान अचानक दसेक प्राचीन चीनी मिट्टी पात्र और कुछ पक्के चौकोनेदार ईंट प्राप्त किये , साथ ही चौकोनेदार ईंटों पर चीनी अक्षरों से मिलते जुलते शब्द भी सुव्यवस्थित रूप से लाइन में अंकित हुए हैं । फिर निंगश्या म्युजियम के पुरातत्ववेताओं के निर्देशन में एक पुराना समाधी खुदाई में मिल गयी है।

इस समाधि में कुछ भित्ति चित्रों को छोड़कर कुछ अत्यंत सूक्ष्म कलाकृतियों व चौकोनेदार ईंटों समेत चीनी मिट्टी बर्तन भी हैं और ईंटों पर अक्षर व डिजाइन भी तराशी गयी हैं । पुरात्ववेताओं ने तफसील से अनुसंधान करने के बाद मान लिया है कि यह प्राचीन काल के शीश्या काल की समाधी है । जबकि ईंटों पर खोदे गये अक्षर ठीक आज किसी की समझ में न आने वाली शीश्या राजवंश की लिपी है ।

इस के बाद के पिछले तीस सालों में पुवातत्ववेताओं ने इसी विशाल वीरान भूमि पर खड़े शीश्या कब्रस्थान का सिलसिलेवार वैज्ञानिक सर्वेक्षण व अध्ययन किया । फलस्वरुप उन्हों ने एक शाही समाधि , चार सहायक समाधियों , चार शिलालेख मीनारों और एक महल के खण्डहर का पता लगाये और कुछ कीमती शीश्या सांस्कृतिक अवशेष भी प्राप्त किये । इन सांस्कृतिक अवशेषों में शीश्या राजवंश की लिपि , तत्कालीन शीश्या के घूमंतु जीवन व साधारण दैनिक जीवन से जुड़े चित्र , विविधतापूर्ण मूर्तियां , विभिन्न कालों के प्रचलित सिक्के , कलात्मक कांस्य पात्र , चीनी मिट्टी शतरंज जैसे सांस्कृतिक अवशेष भी शामिल हैं । और आश्चर्यजनक बात यह है कि खुदाई में बड़ी संख्या में विशेष आकार प्रकार वाली पत्थर और मिट्टी मूर्तियां भी प्राप्त हुई हैं , इन ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अवशेषों का पता लगाये जाने से शीश्या काल की संभ्यता पर अनुसंधान के लिये बेहद मूल्यवान वस्तुएं प्रदान की गयी हैं ।

शीश्या अनुसंधान प्रतिष्ठान के प्रधान श्री तू च्येन लू , जो पिछले अनेक सालों में प्राचीन शीश्या संस्कृति पर अनुसंधान करने में संलग्न हैं , ने हमारे संवाददाता से कहा कि रहस्यमय शीश्या शाही कब्रस्थान पश्चिम इन छ्वान खड़े होलान पर्वत के नीचे एक चमकदार मोती ही है , वह शीश्या संस्कृति से परिचित होने और पुराने जमाने के पदचिन्ह की खोज करने वाला रमणीक पर्यटन स्थल है ।

शीश्या अनुसंधान प्रतिष्ठान के प्रधान श्री तू च्येन लू ने इस का परिचय देते हुए कहा कि शीश्या शाही कब्रस्थान इन छ्वान शहर के पश्चिमी उपनगर में खड़े पूर्वी होलान पर्वत की तलहटी में अवस्थित है , पश्चिम से पूर्व तक की चौड़ाई 4.5 किलोमीटर है और उत्तर से दक्षिम तक की लम्बाई दस किलोमीटर है , उस का कुल क्षेत्रफल कोई 50 वर्गकिलोमीटर बड़ा है । यहां पर कुल नौ राजाओं को दफनाया गया है , इस के अलावा अन्य सौ से ज्यादा सहायक समाधियां भी उपलब्ध हुई हैं । संक्षेप में कहा जाये , तो शीश्या कब्रस्थान में अपनी जाति की विशेषता के साथ साथ मध्य चीन की हान जाति की छाप भी देखने को मिली है ।

शीश्या सांस्कृतिक पुरातत्व अनुसंधान प्रतिष्ठान के अनुसंधानकर्ता न्यू ता शंग आज तक भी प्रथम बार शीश्या शाही कब्रस्थान देखने का अपना अनुभव नहीं भूल सकते ।

उन्हों ने कहा कि जब मैं ने वहा पर प्रथम कदम रखा , तो मुझे एकदम बड़ा , वीरान और रहस्यपूर्ण अनुभव हो गया है , न जाने उस में क्या क्या चीज दबी हुई है , मैं कुछ नहीं कह सकता।

सैकड़ों बेलानाकर मिट्टी ढेरें विशाल रेतीली भूमि पर एक एक पहाड़ी की तरह खड़ी हुई दिखाई देती हैं । हालांकि करीब हजार वर्षों की हवाओं व वर्षाओं की मार से ढेरों की बाहरी दीवारें कुछ नष्ट हुई हैं , पर फिर भी वे ऐतिहासिक साक्षी के रूप में अपनी कहानियां लोगों को बताते हुए नजर आती हैं ।

प्रिय श्रोताओ , शीश्या शाही कब्रस्थान की चर्चा करने के बाद अब हम होलान पर्वत के पत्थर चित्रों को देखने चलते हैं ।

इन छ्वान शहर से कोई 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित होलान पर्वत के मध्यम भाग पर पत्थर चित्र केंद्रित रुप से पाये जाते हैं । यहां पर पर्वत ऊंचा ही नहीं , चोटियां भी अजीबोगरीब हैं , करीब हजार पत्थर चित्र छै सौ लम्बी गगनचुम्बी चट्टानों पर अंकित हुए हैं । इन चित्रों की चित्रण शैली सीधी सादी ही नहीं , प्राकृतिक और वास्तुगत भी है , जिन का अधिकांश भाग मानव जाति की आकृतियां ही हैं , इस के अतिरिक्त गायं , घोड़ा , गधा , हिरण , पक्षी और भेड़िया भी हैं ।

पत्थर चित्रों के चित्रण के अनुसार होलान पर्वत के पत्थर चित्र अनेक विभिन्न कालों में किये गये हैं । पत्थर चित्रों के विषय व चित्रण अत्यंत विशाल व काल्पनिक हैं , साथ ही लोगों को ठोस , स्नेहपूर्ण , भव्य और शुद्ध आभास भी देते हैं । इतने अधिक पत्थर चित्रों ने लोगों को प्राचीन घूमंतु जातियों के इतिहासिक , सांस्कृतिक और आर्थिक स्थितिय़ों और रीति रिवाजों को समझने और अनुसंधान के लिये बेहद मूल्यवान सांस्कृतिक सामग्री प्रदान की है , सचमुच कीमती जातीय कलात्मक गलियारा कहने लायक है ।

1997 में होलान पर्वत के पत्थर चित्र युनेस्को ने अनौपचारिक विश्व सांस्कृतिक विरासत की नामसूची में शामिल कर लिया है , अप्रैल 2004 में होलान पर्वत के पत्थर चित्र औपचारिक रूप से विश्व सांस्कृतिक विरासत में शामिल करने का निवेदन पेश किया गया । सितम्बर 2008 में होलान पर्वत का पत्थर चित्र म्युजिमय विधिवत रूप से उद्घाटित हुआ ।

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