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भारत योजनानुसार सोमवार 12 अगस्त को अपने निर्मित पहले विमानवाहक पोत--'आईएनएस विक्रांत'का जलावतरण करेगा। इससे भारत अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ़्रांस के बाद दुनिया में अपने बल पर विमानवाहक पोत बनाने में सक्षम पांचवां देश बनेगा। हालांकि इस योजना के क्रियान्वयन को 4 सालों तक स्थगित कर दिया गया है।
प्रेस ट्रस्त ऑफ़ इंडिया (पीटीआई) ने रिपोर्ट दी कि `विक्रांत` का दक्षिण भारत के बन्दरगार शहर—कोच्चि में जलावतरण किया जाएगा। रक्षा मंत्री एके.एंटनी की पत्नि इस पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत का शुभारंभ करेंगी। सूत्रों के अनुसार `विक्रांत` का भारत द्वारा ब्रिटेन से खरीदे गए पहले विमानवाहक पोत के नाम से नामकरण किया गया है। `विक्रांत` 260 मीटर लम्बा, 60 मीटर चौड़ा और 14 मंजिला इमारत जैसा ऊंचा है और उसका वजव 40 हजार टन है। इस विमानवाहक पोत पर विमानों के उ़ड़ान भरने के लिए 2 और उतरने के लिए 1 पटरियां निर्मित हैं। उसपर सर्वाधिक 30 विमान रखे जा सकते हैं, जिनमें से 17 विमानों को पोत के गोदाम में सुरक्षित रखा जा सकता है। डिजाइन के अनुसार रूस के मिग-29 आकार के लड़ाकू विमान और भारत के कामोव-31 आकार के हल्के युद्धक विमान इस पोत से उड़ान भर सकते हैं। यह विमानवाहक जहाज सब से अधिक 1600 कि.मी दूरी पर किसी भी चीज को निशाना बना सकता है। इस के निर्माण में 32 अरब 50 करोड़ रूपए ( करीब 66 करोड़ अमेरिकी डॉलर) की धनराशि लगी है।
रिपोर्ट कहती है कि पूर्वयोजना के अनुसार `विक्रांत` का निर्माण-कार्य वर्ष 2008 में पूरा होना था। सचमुच यह निर्माण-कार्य काफ़ी लम्बे समय तक चला। वर्ष 1999 में भारतीय संसद ने विमानवाहक पोत बनाने की योजना को मंजूरी दी थी। लेकिन वर्ष 2002 के शुरू में आकर भी नौसेना स्टाफ़ के प्रमुख ने इस योजना की औपचारिक पुष्टि की थी। अप्रैल 2005 में भारत ने विमानवाहक पोत बनाने के काम को औपचारिक रूप से शुरू करने की घोषणा की थी। फरवरी 2009 में नौसेना ने इस पोत के निर्माण की बुनियाद रखी थी औऱ इसके लिए एक विशेष रस्म भी आयोजित की थी। यद्यपि नौसेना विमानवाहक पोत को जल्द ही बनाकर उसका सेना में प्रयोग करने के लिए उत्सुक रही, लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि कोच्चि के शिपयार्ड ने अन्य पोत बनाने के लिए जगह खाली करने के उद्देश्य से वर्ष 2011 के अंत में जबरन `विक्रांत` को जल में उतार दिया। वास्तव में उस समय `विक्रांत` पर गियर केस, बिजली-जनरेटर और जल-पाइप आदि प्रमुख उपकरण तक भी नहीं लगाए गए। इसलिए जल में उतारा गया जो `विक्रांत` था, वह सिर्फ उसका खोखला है। उसका निर्माण-कार्य पूरा करने के लिए उसे दुबारा शिपयार्ड में रखा जाना पड़ा। इस तरह `विक्रांत` का इस साल 12 अगस्त तक भी जलावतरण हो पाया है।
भारतीय मीडिया ने `विक्रांत` के जलावतरण पर बड़ा ध्यान दिया है। गत 9 अगस्त से शुरू होकर मीडियाकर्मियों ने इस बात के कवरेज के लिए तैयारियां शुरू कीं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि `विक्रांत` के जलावतरण का दिन भारत का एक विशेष ऐतिहासिक पन्ना बनेगा। इस दिन से भारत अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ़्रांस के बाद दुनिया में ऐसा पांचवां देश बनेगा, जो स्वदेशी विमानवाहक पोत बना सकते हैं। एनडीटीवी ने रिपोर्ट दी कि `विक्रांत` बनाने के दौरान भारत ने डिजाइन और निर्माण-सामग्री दोनों पहलुओं में बड़ी प्रगति की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कठिन वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक अनुसंधान के जरिए घरेलू डिजाइन और निर्माण कार्य के अलावा भारतीय इस्पात प्राधिकरण ने इसके लिए उच्च श्रेणी का इस्पात निर्मित किया था जिसका इस्तेमाल इस पोत को बनाने में किया गया।
नौसेना स्टाफ के उप प्रमुख ने भी कहा कि `विक्रांत` किसी विमानवाहक पोत के आकार और जटिलता में अपूर्व है। इस का शुभारंभ भारतीय नौसेना के स्वदेशीकरण कार्यक्रम की शान होगा। हां, मीडिया और सैन्य जगत `विक्रांत` के जलावतरण के लिए बहुत उत्साहित हैं, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि इस विमानवाहक पोत के निर्माण का मात्र पहला चरण संपन्न हुआ है। इसके बाद इसके बाहरी उपकरणों को लगाने तथा ऊपर के ढांचे के निर्माण के लिए इसे फिर से शिपयार्ड में भेजा जाएगा। सभी आवश्यक काम पूरे किए जाने के बाद भी उस का समुद्र में औपचारिक गहण परीक्षण शुरू किया जाएगा। इस तरह सब से जल्दी वर्ष 2018 में उसे नौसेना में शामिल किया जा सकता है।