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निजी चॉपस्टिक म्यूजियम का दौरा
2013-07-22 15:37:47
प्रिय दोस्तो , यह सभी जानते हैं कि चीन की बात आते ही लोगों को चॉपस्टिक की याद आ जाती है, हो भी क्यों न चीनी लोग चॉपस्टिक से खाना जो खाते हैं। जी हां , यह बिलकुल सही है , चीनी लोगों में चॉपस्टिक से खाना खाने की परम्परा हजार वर्ष पुरानी है । दुनिया में जहां-जहां चीनी लोग बसे हैं , वहां पर चॉपस्टिक देखने को मिलते हैं । चॉपस्टिक चीनी सांस्कृतिक विरासतों में से एक भी हैं ।

यह निजी चॉपस्टिक म्यूजियम पूर्वी चीन के शांगहाई शहर के त्वो लुन रोड के सांस्कृतिक हस्ती सड़क पर है , हालांकि इस म्यूजि़यम का द्वार इतना छोटा है कि अगर आपने गौर से नहीं देखा तो उस पर नज़र नहीं जाती। लेकिन वह आज चीन में चॉपस्टिक के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाला एक मात्र स्थल है । इस म्यूजियम के मालिक बुजुर्ग लान श्यांग अब 80 वर्ष के हो गये हैं । उन्होंने 1970 के दशक से चॉपस्टिक जुटाने का काम शुरु किया , तब से लेकर आज तक बांस , लकड़ी , धातु , जेट व हड्डियों से तैयार दो हजार जोड़ी चॉपस्टिकों का संग्रह कर चुके हैं , जिनमें हजारों वर्ष पहले थांग राजवंश से कोरिया , जापान और थाइलैंड के विविधतापूर्ण चॉपस्टिक भी शामिल हैं । वे सचमुच चीन में चॉपस्टिक एकत्र करने वाले पहले व्यक्ति कहलाने लायक हैं ।

यह सभी जानते हैं कि चॉपस्टिक चीनी लोगों के लिए काफी अहम है , पर आखिरकार किसने इसका आविष्कार किया , किसी को पता नहीं है । लान श्यांग के अनुसार शांग राजवंश काल में चॉपस्टिक के बारे में लिखित उल्लेख मिलता है ।

प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ में इस बात का वर्णन पढ़ने को मिलता है कि चो राजा ने चीन में हाथी के दांत से पहले जोड़ी के चापस्टिक निर्मित किये । चो राजा तत्कालीन श्यांग राजवंश का अंतिम राजा था , इसका अर्थ यह है कि आज से तीन हजार सौ साल पहले चीन में हाथी के दांत से निर्मित चॉपस्टिक प्रकाश में आये थे ।

यह चीनी ऐतिहासिक ग्रंथ में चॉपस्टिक के बारे में सबसे पुराना विवरण माना जाता है , जबकि चॉपस्टिक का मूल आकार आज से कोई चार पांच हजार वर्ष पहले देखने को मिला था । उस समय चीनियों के पूर्वज मिट्टी के बर्तन से खाना पकाते थे , उबला हुआ पानी बहुत गर्म होता था , यदि हाथ से बर्तन बाहर ले जाते, तो हाथ जल जाता था , इसलिये वे पेड़ की एक शाखा से भोजन बाहर लाते थे , पर एक शाखा से भोजन बाहर लाने में सुविधा न होने से दो शाखाओं का प्रयोग करने लगे , धीरे धीरे उसने आज के चॉपस्टिक का आकार ले लिया।

बुजुर्ग लान श्यांग पहले सेना में थे , उनका पहली जोड़ी के चॉपस्टिक अमेरिकी आक्रमण विरोधी कोरियाई युद्ध के दौरान एक कोरियाई महिला ने भेंट किये थे । पर उस समय चॉपस्टिक संग्रहित करने का उनका कोई इरादा नहीं था । बाद में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति निक्सन की चीन यात्रा के दौरान हुई एक राजनयिक घटना से उन्होंने चॉपस्टिक संग्रहित करने का मन बनाया।

उनका कहना है कि जन बृहत सभा भवन में हुए राजकीय भोज में जब निक्सन ने चॉपस्टिक मेज पर रखे , तो टोरंटो के एक पत्रकार ने तुरंत ही वे चॉपस्टिक छीनकर अपनी जेब में रख लिए। फिर जब यह पत्रकार अमेरिका गये , तो दस संग्रहकर्ताओं ने उनसे वह चॉपस्टिक खरीदने का अनुरोध किया । इस पत्रकार ने कहा कि जन बृहत सभा भवन में उस जोड़ी का चॉपस्टिक निक्सन की चीन यात्रा का काफी महत्व रखता है , दो हजार अमेरिकी डालर की कीमत में भी मैंने उसे नहीं बेचा ।

1978 में बुजुर्ग लान श्यांग एक अखबार पर प्रकाशित यह रिपोर्ट पढ़ने से काफी प्रभावित हुए । उन्हें पता चला कि चॉपस्टिक खाना खाने के माध्यम ही नहीं , बल्कि इसका गहरा सांस्कृतिक मूल्य व अंतर्राष्ट्रीय महत्व भी है , इसका आगे अध्ययन करना लायक है । तबसे वे चापस्टिकों का संग्रह करने में जुट गए। उनके संग्रहित चापस्टिक विविधतापूर्ण हैं , जिनमें अलग अलग युगों में सोने , चांदी , कास्य , हाथी दांत , जेट , बांस और हड़िडयों से तैयार भिन्न भिन्न क्वालिटी के चापस्टिक शामिल हैं । इसके अलावा उन्होंने कई सौ किस्मों वाले चापस्टिक दान , चापस्टिक बाक्स और चापस्टिक तकिया भी संग्रह किये हैं । इस निजी चापस्टिक म्यूजियम में लान श्यांग ने कई विशेष मूल्यवान चापस्टिक दर्शाए हैं।

उन्होंने क्लौइज़न से बना एक ऐसा बारेल्ड दिखाया , जिस पर मंचुरियाई व मंगोलियाई अक्षर अंकित हैं , इस बारेल्ड के ऊपरी छोर पर एक ढक्कन लगा हुआ है , उसके निचले छोर पर एक जेट पेटेंट लटका हुआ है । ढक्कन खोलकर उसमें चांदी के चापस्टिक व एक छुरी रखी हुई है , ये दोनों चापस्टिक काफी बारीक चांदी की जंजीर से जुड़े हुए हैं । कमाल की बात यह भी है कि ये दोनों चापस्टिक खोखले हैं , चांदी की जंजीर के दोनों छोरों से जुड़े़ स्टिक चापस्टिक में छिपे हुए हैं , ताकि खाना खाने के बाद दांतों को साफ किया जा सके ।

लान श्यांग ने इस जोड़ी के चापस्टिक की चर्चा में कहा कि ये चापस्टिक छिंग राजवंश में बने थे। मंचूरियाई व मंगोलियाई जातियां पहले घुमंतू जीवन बिताती थीं , अतः पहले खाते समय चापस्टिक के बजाय चाकू का प्रयोग करने की उनकी परम्परा थी । पर बाद में मंचूरियाई जाति ने मिंग राजवंश का तख्ता उलट कर छिंग राजवंश की स्थापना की , जिस से शाही परिवार और कुलीन परिवार राजधानी पेइचिंग आ बसे । ऐसी स्थिति में वे अपनी शानदार छवि दिखाने के लिये चापस्टिक का प्रयोग करने लगे ।

बुजुर्ग लान श्यांग चापस्टिकों का संग्रह ही नहीं करते, बल्कि चापस्टिक के बारे में छह रचनाएं भी रची हैं। । उनके अनुसार चापस्टिक खाना खाने का साधन ही नहीं , बल्कि वह शगुन और सुख, प्रेम का प्रतीक भी है ।

एक जोड़ी के चापस्टिक कभी भी अलग नहीं होते हैं । क्योंकि चापस्टिक हमेशा एक जोड़ी के हैं , नहीं तो वह चापस्टिक न होकर डंडा हो सकता है । मजेदार बात यह है कि पुराने जमाने में शादी के समय चापस्टिक दहेज के रुप में दिये जाते थे , मतलब है कि नव दंपति हमेशा के लिये जोड़ी के रुप में सुखी रहेगा। चापस्टिक का दूसरा अर्थ है कि नव दंपति जल्द से बच्चे को जन्म देगा ।

क्योंकि छोटे चापस्टिक के पीछे इतनी ज्यादा दिलचस्प कहानियां छिपी हुई हैं , इसलिये लान श्यांग का निजी चापस्टिक म्यूजियम पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है । चीन के पूर्व सांस्कृतिक मंत्री सुन च्चा चंग और शांगहाई मेयर हान चंग जैसी हस्तियां वहां गए थे । 2010 शांगहाई विश्व मेला आयोजित करने की खबर सुनकर उन्होंने सोचा कि मौके पर अवश्य ही बहुत ज्यादा विदेशी पर्यटक विश्व मेले को देखने के लिये शांगहाई आयेंगे , यह चीनी चापस्टिक संस्कृति के प्रचार प्रसार का अच्छा मौका है । उन्होंने तुरंत ही चापस्टिक के बारे में एक पुस्तक लिखी । यह पुस्तक तीन साल पहले पेइचिंग विदेशी भाषा प्रकाशन गृह ने विदेशी भाषाओं का संस्करण प्रकाशित की।

इस पुस्तक की चर्चा में लान श्यांग बड़े गर्व के साथ कहा कि मैंने विश्व मेले के लिये योगदान दिया है । अब वे शांगहाई चापस्टिक सांस्कृतिक संवर्द्धन आयोग के प्रधान हैं और चीन की नयी पीढी में चापस्टिक संस्कृति को लोकप्रिय बनाने को संकल्पबद्ध हैं ।

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