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भूटान में विपक्षी पार्टी ने राष्ट्रीय चुनाव जीता
2013-07-15 15:04:18

एशिया के सब से सुखमय देश के नाम से विख्यात भूटान में हाल ही में दूसरे राष्ट्रीय चुनाव( नेशनल असेम्बली चुनाव) का आयोजन हुआ। इसमें विपक्षी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रटिक पार्टी (पीडीपी) ने भारी बहुमत से जीत प्राप्त की। चुनाव के बाद स्थानीय आमराय है कि नई सरकार के सामने सब से बड़ी चुनौती राष्ट्रीय अर्थतंत्र का पुनरूथान है।

13 जुलाई को भूटान में दूसरा नेशनल असेम्बली चुनाव कराया गया। पंजीकृत 3 लाख 80 हजार मतदादाओं में से कोई 2 लाख 50 हजार लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, मतलब 66 प्रतिशत लोगों ने मतदान में भाग लिया। भूटान के निर्वाचन आयोग द्वारा 14 जुलाई को जारी परीणाम के अनुसार विपक्षी पार्टी—पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने चुनाव में निर्णयक जीत हासिल की। उसने नेशनल असेंबली की 47 सीटों में से 32 पर जीत दर्ज की। जबकि वर्तमान सत्ताधारी पार्टी—भूटान पीस एंड प्रोस्पेरिटी पार्टी (द्रुक फुएनसुम त्शोगपा) को 15 सीटें मिलीं। संबंधित नियमों के अनुसार कोई भी राजनीतिक पार्टी चुनाव में नेशनल असेम्बली की तमाम सीटों में से 24 पर जीत दर्ज करने से ही नई सरकार बना सकती है। ऐसे में इस बार पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा नई सरकार बनायी जाने की स्थिति तय हो गई है।

विपक्षी पार्टी की जीत के बारे में स्थानीय मीडिया का मानना है कि देश में आर्थिक मंदी, मुद्रा की कमी और बेरोजगारी जैसे गंभीर समस्याओं से निपटने में पीपुल्स डेमोक्रटिक पार्टी ने सत्ताऱूढ़ पार्टी--पीस एंड प्रोस्पेरिटी पार्टी की तुलना में अधिक व्यावहारिक काम किए हैं। मिसाल के लिए उसने हरेक निर्वाचन-क्षेत्र को बुवाई-मशीनें दी हैं, गांवों में बैंक स्थापित किए हैं, स्थानीय सरकारों को अधिक वित्तीय सहायता दी है और सरकारी कर्मचारियों को आसाव-भत्ते उपलब्ध कराए हैं आदि। जनता के नजदीक होने की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की छवि और उसकी व्यावहारिक काम करने की कार्यशैली व्यापारियों और युवाओं में काफी लोकप्रिय है। इसलिए उसने उन लोगों से समर्थन प्राप्त किया है।

करीब 7 लाख आबादी वाला भूटान हिमालय पर्वतमाला के दक्षिणी भाग में स्थित एक छोटा देश है। आर्थिक तौर पर अविकसित होने के बावजूद इस देश की जनता सुखमय जीवन बिता रही है। 40 साल पहले तत्कालीन राजा जिग्मे खेसार नामग्याल वांगचुक ने पहली बार राष्ट्रीय सुख सूचकांक संबंधी विचार प्रकट किया था। उनके विचार में सरकार को सुखमय जीवन की उपलब्धता को अपना लक्ष्य बनाना चाहिए और भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर संतुलित विकास करना चाहिए। इन्हीं राजा ने देश में राजशाही का अंत करने और लोकतांत्रिक सुधार लाने का प्रस्ताव भी रखा था। मार्च 2008 में भूटान में पहले राष्ट्रीय चुनाव यानी पहले नेशनल असेम्बली चुनाव का आयोजन किया गया था। इस चुनाव से भूटान में 100 वर्षों से अधिक समय तक जारी राजशाही का अंत हो गया और भूटान नेशनल असेम्बली वाली व्यवस्था का एक लोकतांत्रिक देश बन गया है।

स्थानीय अखबार `भूटान ऑब्सर्वर` की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2012 में भूटान में अर्थतंत्र का विकास 9.9 प्रतिशत की दर से हुआ और गरीबी-दर वर्ष 2007 की 23 प्रतिशत से घटकर 16 प्रतिशत हो गई। बावजूद इसके भूटान को अपना विकास होने की परेशानी होने लगी। अथार्त भूटान में खुलेपन का कार्य शुरू होने के साथ-साथ आर्थिक जोखिम भी उत्पन्न होने लगी। अप्रैल 2012 में भूटान को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा।जैसा आप जानते हैं कि अपना द्वार खोलने के बाद भूटान ने पडो़सी देश भारत से बहुत से तिजारती उत्पादों का आयात करना शुरू किया। लेकिन भारतीय रुपए के लगातार अवमूल्यन होने के कारण भारतीय उत्पाद महंगे होते गए। इससे भूटान के आम लोगों का जीवन बहुत प्रभावित हुआ।

भूटान में दूसरे नेशनल असेम्बली चुनाव के बाद `भूटान ऑब्सर्वर` ने नई `सरकार का कठिन कार्य` शीर्षक एक लेख प्रकाशित किया। लेख में कहा गया है कि वर्तमान काल में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के सामने सब से बड़ी चुनौती ऱाष्ट्रीय अर्थतंत्र का पुनरुथान है। भारतीय रुपये के अवमूल्यन से प्रभावित होकर भूटान में खाद्य पदार्थों, ईधन, निर्माण-सामग्रियों, सौंदर्य-प्रसाधनों और खाद्य तेल की कीमतें तेजी से बढ रही हैं। इसकी चर्चा करते हुए पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने कहा कि वह सत्तासीन होने के बाद के एक महीने के भीतर अर्थशास्त्रियों और व्यावसायिकों से बनने वाला एक विशेष कार्य-दल गठित करेगी, ताकि रुपए की कमी से निपटने वाली दीर्धकालिक नीति बनाई जाए। इसके अलावा भारी वैदेशिक कर्ज का निबटारा भी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की एक बड़ी मुश्किल है। आकंड़ों के अनुसार वर्ष 2012 में भूटान का वैदेशिक कर्ज लगभग 1 अरब 30 करोड़ अमेरिकी डॉलर था, जो भूटान के जीडीपी का 78 प्रतिशत भाग बनता है। दूसरी ओर आर्थिक मंदी के कारण लगातार बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी भी नई सरकार के लिए ऐसा सिरदर्द होगा, जिसे दूर करने के लिए गुनी कोशिश की जानी जरूरी है।

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