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मिस्र में स्थानीय समयानुसार पहली जुलाई को सेना के प्रवक्ता ने अपने टी.वी बयान में सभी राजनीतिक पक्षों से 48 घंटे के भीतर राजनीतिक विकास की दिशा को लेकर एकमतता प्राप्त करने की मांग की और इस बात को खारिज कर दिया कि सेना देश के राजनीतिक विकास का रूड-मैप प्रस्तुत करेगी।
मिस्र के रक्षा मंत्री अल सिसि ने चेतावनी दी कि अब से शुरू होने वाले 48 घंटे देश के विभिन्न राजनीतिक शक्तियों के लिए अंतिम असवर है। उन्होंने कहाः
`सेना ने दोहराया कि जनता की मांग को पूरा करना जरूरी है। हम ने सभी लोगों को देश के इतिहास में वर्मतान अहम घंड़ी पर भारी मिशन निभाने का अंतिम अवसर देने के लिए 48 घंटों की समन-सीमा तय की है। जिम्मेदारी से कतराने वाली किसी भी राजनीतिक शक्ति को नहीं सहा जाएगा और ना ही बख्शा जाएगा।`
स्थानीय मीडिया ने विश्लेषण करते हुए दावा किया है कि सेना के इस नवीनतम बयान ने देश की राजनीतिक स्थिति में सीधा सैन्य हस्तक्षेप का संकेत दिया है। बल्कि परिस्थिति को बेकाबू होने से रोकने के बहाने बयान देना सेना का नियमित तरीका है। रक्षा मंत्री अल सिसि ने कहाः
`घरेलू परिस्थिति में आए ताजा परिवर्तन से जाहिर है कि देश की सुरक्षा को गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है। इससे सेना को अपनी जिम्मेदारी निभाने के तौर पर उचित कदम उठाना होगा, ताकि देश के सामने मौजूद खतरे को दूर किया जा सके।`
हाल की एक अवधि में मिस्र में कई राजनीतिक शक्तियों ने सेना से देश की समग्र परिस्थिति को नियंत्रित करने के लिए दुबारा आगे आने की मांग की। प्रमुख विपक्षी संगठन राष्ट्रीय बचाव मोर्चा के प्रमुख नेता साबाहिट सेना से कह चुके हैं कि अगर राष्ट्रपति मोर्सी ने सत्ता छोड़ने से इन्कार कर दिया, तो जनता के साथ कंधे से कंधा मिलाने वाली सेना को कार्यवाही करनी होगी। ऐसे में सेना के नवीनतम बयान ने एक बड़े बम की तरह लोगों में डर पैदा किया है और इससे पूरे समाज में अनिश्चिता औऱ चिंता भरा माहौल व्याप्त है।
काहिरा स्थित सीआरआई संवाददाता मिस्र की सेना का ताजा बयान आने के बाद की स्थिति जानने के लिए काहिरा के कई मुख्य स्थान गए। वहां उन्होंने पाया कि बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी कारों के बाहर राष्ट्रीय ध्वज फहराए हैं। वे हॉर्न बजाते और नारे लगाते कार चला रहे थे। बहुत से लोग सड़कों पर उतरकर रैलियां कर रहे थे।
`यदि शक्कर पाना चाहे, यदि गैसोलीन पाना चाहे, तो मुस्लिम ब्रटरहुड के नेता के घर जाए।`
लम्बे समय से जारी अव्यवस्था मिस्र के लिए सचमुच असहनीय है, जो पहले से ही गंभीर आर्थिक नुकसान और सामाजिक विघटन की संभावना से पीड़ित रहा है। मिस्र की सेना द्वारा जारी सांख्यकि के अनुसार पूरे देश में कोई 1 करोड़ 40 लाख लोगों ने गत 30 जून को शुरू हुए विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जबकि देश की कुल आबादी सिर्फ 8 करोड़ है। उधर मिस्र के स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी कि 30 जून को 16 प्रदर्शनकारियों की जान चली गई और अन्य 781 लोग घायल हुए।
विरोध-प्रदर्शन पहली जुलाई तक चला। सोमवार की सुबह काहिरा में प्रदर्शनकारियों ने मुस्लिम ब्रटरहुड मुख्यालय में घूसकर आगजनी और तोड़फोड़ की। सौभाग्यवश मुख्यालय के सभी कार्यकर्ता और कर्मचारी समय से पहले वहां से हट गए थे। पहली जुलाई को दोपहर मिस्र सरकार में बड़ा बदलाव आया। उस के पर्यटन मंत्री, पर्यावरण मंत्री औऱ दूर संचार मंत्री तथा न्याय मंत्री ने अपने-अपने इस्तीफा-पत्र दे दिये। फिर तीसरे पहरे सेना ने टी.वी बयान दिया। इस सब ने न केवल आम लोगों अचंभे में, बल्कि रानजीतिक नेताओं की योजना को भी उथल-पुथल में डाल दिया है। सेना द्वारा सभी लोगों को दी गई अंतिम चेतावनी में अपूर्व रूप से बिना नाम लिए राष्ट्रपति मोर्सी को चेताया गया है। यद्यपि गंभीर रूप से विघटित हुए समाज ने मोर्सी के लिए बड़ी तादाद में उनके समर्थक सुरक्षित रखा है, लेकिन उन के दिन पहले जैसे अच्छे नहीं रह गए हैं। मध्यपूर्व मामलों के विशेषज्ञ मार्वान ने कहा कि सेना के हालिया ब्यान का बड़ा निहितार्थ है। उन का कहना हैः
`सेना के बयान से लोगों को सोचना पड़ा है कि राष्ट्रपति मोर्से की स्थिति हिल सकती है। एक सप्ताह पहले सेना ने मिलती-जुलती चेतावनी दी थी, लेकिन मोर्सी ने इस के बाद दिए अपने बयान में चेतावनी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लगता है कि वो इस बात का परवाह नहीं करना चाहते हैं।`
मिस्र में वर्तवान परिस्थिति, सभी राजनीतिक शक्तियां नहीं देखनी चाहती हैं, ऐसा नहीं है और न ही ऐसा है कि सभी लाभ प्राप्त लोग वर्तमान परस्थिति को पसन्द करते है और सभी आम लोग इस का विरोध करते हैं। वास्तव में बहुत से लोग क्रांति की दीवानगी से उतरकर विवेकपूर्ण हो गए हैं, लेकिन चिंताओं से भरे हैं। अटाला नामक एक युवक उनमें से एक है। उन्होंने कहाः
`इस समय मैं सिर्फ यह जानता हूं कि मैं मोर्सी का विरोधी हूं। मेरे शामिल होने से उन का विरोध करने वाली शक्ति बढ सकती है। लेकिन आखिरकार मेरी मांग क्या है? यह मैं खुद भी नहीं जानता। समय से पहले राष्ट्रपित-चुनाव कराए जाने का विपक्षी नेता का प्रस्ताव या उन का अन्य कोई भी विचार उतना अच्छा नहीं लगता है, जितना अपेक्षित किया गया था। अच्छी तरह से सोच-विचार कर भी मैं स्पष्ट नहीं कर सका हूं कि आखिरकार कौन सा विचार ऐसा है, जिसे मैं तहेदिल से मानता हूं।`