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चीन-दक्षिण एशिया राष्ट्रीय थिंक टैंक मंच 6 से 7 जून तक खुनमिंग में आयोजित होगी। हाल ही में दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों के अकादमिक संस्थानों ने क्रमशः सक्रिय रूप से इस में भाग लेने व सहयोग करने को कहा। पहले चीन-दक्षिण एशिया राष्ट्रीय थिंक टैंक मंच का आयोजन करने का मुख्य उद्देश्य चीन व दक्षिण एशियाई देशों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक मंच बनाया जाए। ताकि चीन व दक्षिण एशियाई देशों के बीच मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान व सहयोग के लिये बौद्धिक समर्थन दिया जा सके। इस बार मंच के तीन मुद्दे क्रमशः आर्थिक व व्यापारिक सहयोग व क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण, क्षेत्र में आदान-प्रदान, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सहयोग व आदान-प्रदान हैं।
चीनी प्रसिद्ध दक्षिण एशियाई मामला अनुसंधान विशेषज्ञ, यूनान प्रांत के सामाजिक विज्ञान अकादमी की प्रधान रेन च्या ने 9 मई को संवाददाता से कहा कि इस मंच में मानवीय आदान-प्रदान से विभिन्न देशों की जनता के बीच आपसी समझ व पहचान को मजबूत किया जाएगा। जो चीन व संबंधित देशों के थिंक टैंक के बीच वार्ता व्यवस्था की स्थापना की शुरूआत होगी। साथ ही चीन व दक्षिण एशियाई देशों के बीच आर्थिक, व्यापारिक व राजनीतिक आदान-प्रदान दिन-ब-दिन गहन होने के साथ साथ मानवीय आदान-प्रदान चीन व दक्षिण एशिया के बीच क्षेत्रीय सहयोग का एक नया भाग बन जाएगा।
लंबे समय से चीन व दक्षिण एशिया के बीच आर्थिक व व्यापारिक आदान-प्रदान चलता आ रहा है। और व्यापार रकम की वृद्धि भी बहुत तेज है। वर्ष 2000 से 2012 तक चीन व दक्षिण एशियाई देशों के बीच व्यापार मूल्य 5 अरब 70 करोड़ अमेरिकी डॉलर से 93 अरब तक पहुंच गया। जो वार्षिक वृद्धि से 26 प्रतिशत ज्यादा रहा। लेकिन केवल व्यापारिक आदान-प्रदान से मतभेदों को दूर नहीं किया जा सकता। रेन च्या ने कहा कि वर्तमान में चीन व दक्षिण एशिया के संबंध लगातार घनिष्ठ हो रहे हैं। सरकारी आदान-प्रदान दिन-ब-दिन मजबूत हो रहा है। लेकिन मानवीय आदान-प्रदान में अब भी कमी है। हाल के कई वर्षों में चीन के प्रति पड़ोसी देशों में भिन्न गलतफहमियां पैदा हुईं। उधर चीनी जनता को भी दक्षिण एशियाई देशों के बारे में कम जानकारी है।
चर्चा में रेन च्या ने कहा कि कूटनीति, सैन्य, विज्ञान व तकनीक तथा आर्थिक व व्यापारिक सहयोग की अपेक्षा मानवीय आदान-प्रदान में सरकारी औपचारिकताएं नहीं है। जिससे जनता पर आसानी से असर पड़ता है, जैसे पर्यटन व शिक्षा आदि। कहा जाता है कि खुनमिंग में आयोजित होने वाली चीन-दक्षिण एशिया थिंक टैंक मंच मानवीय आदान-प्रदान का बेहतरीन मंच साबित होगा। इस मंच का उद्देश्य चीन व दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया व अन्य देशों के थिंक टैंक के बीच वार्ता व सहयोग के लिए पृष्ठभूमि तैयार करना है और मानवीय आदान-प्रदान से विभिन्न देशों की जनता के बीच आपसी समझ व पहचान को मजबूत करना और आर्थिक, सांस्कृतिक व सामाजिक क्षेत्रों में सहयोग व विकास को बढ़ावा देकर चीन व दक्षिण एशिया समेत पड़ोसी देशों के बीच पीढ़ी दर पीढ़ी मित्रता सुदृढ़ करना है।
इस मंच में देश-विदेश के लगभग सौ विशेषज्ञों व विद्वानों को आमंत्रित किया गया है और कई दक्षिण एशिया अनुसंधान विशेषज्ञ इस मंच की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मंच के दौरान भारत के चीनी अनुसंधान प्रतिष्ठान, पाकिस्तान के रणनीति अनुसंधान प्रतिष्ठान व नीति अनुसंधान प्रतिष्ठान, भूटान अनुसंधान केंद्र, शांघाई अंतर्राष्ट्रीय मामला अनुसंधान संस्थान, यूनान प्रांत के दक्षिण पूर्वी एशिया व दक्षिण एशिया अनुसंधान संस्थान आदि देशों व क्षेत्रों से आए वरिष्ठ विशेषज्ञ व विद्वान इकट्ठे होकर आर्थिक व व्यापारिक सहयोग, क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण, क्षेत्रीय आदान-प्रदान, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय आदान-प्रदान जैसे तीन मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
यूनान प्रांत के दक्षिण एशिया अनुसंधान संस्थान के उप अनुसंधानकर्ता क्वो ह्वेई येन मानवीय आदान-प्रदान पर बड़ा ध्यान देती है। उन्होंने संवाददाता से कहा कि चीन व दक्षिण एशिया के बीच हालांकि व्यापार रकम की वृद्धि बहुत तेज है, लेकिन आपसी समझ भी उतनी आवश्यक है। इसलिये दोनों पक्षों की व्यापार रकम और उन्नत की जा सकती है। इसे और विस्तृत किया जाना चाहिये।
क्वो ह्वेइ येन ने कहा कि वर्ष 1998 में मैंने पहली बार भारत की यात्रा की। और पता चला है कि भारत में बहुत लोग चीन को जानने के इच्छुक हैं। गैरसरकारी आदान-प्रदान करने की इच्छा बहुत तीव्र है। खास तौर पर हाल के कई वर्षों में दोनों पक्षों के बीच आर्थिक व व्यापारिक विकास के साथ-साथ दक्षिण एशियाई देशों के अनुसंधान प्रतिष्ठान चीन के अध्ययन पर बड़ा ध्यान देते हैं। जिसने बुनियादी तौर पर हम से गैरसरकारी आदान-प्रदान के मजबूत करने, पर्यटन, संस्कृति, सुयोग्य व्यक्तियों की शिक्षा के सहयोग, मीडिया के बीच आपसी संपर्क, खासतौर पर सरकार को महत्वपूर्ण विशेषज्ञ सलाहकार व विद्वानों के बीच वार्ता की स्थापना करने की मांग की। ताकि वास्तविकता से चीनी जनता व दक्षिण एशियाई जनता के बीच दूरी को कम किया जा सके।
चंद्रिमा