6 अप्रैल को वर्ष 2013 बोआओ एशिया मंच के वार्षिक सम्मेलन का उप मंच आयोजित हुआ, जिसका विषय "उभरते बाज़ारों की गति में मंदी" रखा गया। चीन, रूस और भारत समेत देशों से आये प्रतिनिधियों ने इस पर विचार-विमर्श किया कि नवोदित बाज़ारों को विकास के दौरान आर्थिक वृद्धि में आई मंदी से कैसे निपटना चाहिये।
चीनी राष्ट्रीय विकास व सुधार आयोग के उप निदेशक चांग श्याओ छियांग ने भाषण देते हुए कहा कि गत वर्ष में चीन का सकल घरेलू उत्पादन यानी जी.डी.पी. की वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रही, जो वर्ष 1999 से अबतक का निम्नतम वृद्धि दर रहा। बाहरी मांग में हुई कमी समेत कई बाहरी कारणों के अलावा चीन में कमज़ोर नवीनीकरण, अनुचित औद्योगिक ढांचा, विकास के लिये ऊर्जा की खपत पर ज़्यादा निर्भरता और शहरों व गांवों के बीच असंतुलित विकास आदि कारको से चीनी अर्थतंत्र की अनवरत बढ़ोतरी मे कमी आयी है। इसलिये विकास के ढांचे में तेज़ी से बदलाव लाना और समावेशित अनवरत विकास पर कायम रहना चीन के लिये जायज़ विकल्प नज़र आया है।
भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) के महासचिव दिदर सिंह के मुताबिक सब नवोदित आर्थिक समुदायों की वृद्धि धीमी रहती हुई दिखाई पड़ रही है। पिछले साल में भारत की जी.डी.पी. की वृद्धि दर 5 प्रतिशत रही, जोकि गति में कमी आयी। लेकिन उनका मानना है कि वृद्धि की गति से समस्या को कोई लेना-देना नहीं है। भारत के लिये स्थिर वृद्धि अधिक महत्वपूर्ण है। इसके अलावा गत 20 सालों में निजी भारतीय उद्यमों के समक्ष भरपूर मौके मिले है। अब पूरे विश्व में भारतीय कंपनियां देखने को मिलती है।(लिली)