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ब्रिक्स देशों और अफ्रीका के बीच सहयोग की बड़ी निहित शक्ति मौजूद
2013-03-26 18:47:01

26 और 27 मार्च को ब्रिक्स देशों की पांचवीं शिखर वार्ता दक्षिण अफ्रीका के डरबन में आयोजित हो रही है। वर्तमान वार्ता में ब्रिक्स देशों और अफ्रीका के बीच सहयोग मुद्दे पर बहुस्तरीय बातचीत और ताल-मेल होंगे। दक्षिण अफ्रीका के इफिशन्ट ग्रुप के प्रमुख अर्थशास्त्री दावी रूदट ने कहा कि ब्रिक्स देशों और अफ्रीका के बीच सहयोग की बड़ी निहित शक्ति है। ब्रिक्स देशों के साथ घनिष्ठ वित्तीय सहयोग करने के कदम से ब्रिक्स देशों के विकास बैंक की स्थापना का समय दूर नहीं है।

इधर के वर्षों में चीन, भारत, ब्राजि़ल जैसे ब्रिक्स देशों के सदस्यों का अफ्रीका के साथ बेहतर आर्थिक और व्यापारिक संबंधों का विकास हो रहा है। वर्ष 2010 में अफ्रीका का सबसे बड़ा आर्थिक समुदाय के रूप में दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स देशों का नया सदस्य बना। दक्षिण अफ्रीका के इफिशन्ट ग्रुप के प्रमुख अर्थशास्त्री दावी रूदट का विचार है कि इससे संकेत है कि ब्रिक्स देश अफ्रीका पर ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने कहा,

"दक्षिण अफ्रीका एक बहुत बड़ा आर्थिक समुदाय नहीं है। क्या कारण है कि वह ब्रिक्स देशों में शामिल हुआ। यह न केवल दक्षिण अफ्रीका बल्कि अफ्रीका को दिया गया निमंत्रण है। इस दृष्टि से देखा जाए, तो दक्षिण अफ्रीका पूरे अफ्रीका का प्रतिनिधित्व करता है।"

 दक्षिण अफ्रीका का ब्रिक्स देशों में भाग लिए जाने से ब्रिक्स देशों और अफ्रीका के मध्य एक और मिलन बिन्दु बना है। दक्षिण अफ्रीका में बाजार का वातावरण परिपक्व है और श्रेष्ठ स्थान है। वह अन्य ब्रिक्स देशों के द्वारा अफ्रीकी बाजार में प्रवेश करने और अफ्रीका के विकास में भाग लिए जाने की एक महत्वपूर्ण खिड़की है। वर्तमान ब्रिक्स देशों की शिखर वार्ता का प्रमुख मुद्दा है "ब्रिक्स देशों और अफ्रीका के बीच विकास, विलय और औद्योगिकीकरण का साझेदार संबंध"।

आर्थिक और व्यापारिक मंच पर अफ्रीका के बुनियादी संस्थापना के निर्माण को आगे बढाना शीर्षक मुद्दा होगा और ब्रिक्स देशों के नेताओं और अफ्रीका के बीच मंच का आयोजन किया जाएगा।

श्री दावी रूदट ने कहा कि अफ्रीका और ब्रिक्स देश एक-दूसरे के बहुत बड़े आर्थिक पूरक है, और दोनों पक्षों के बीच सहयोग की बड़ी निहित शक्ति है। उन्होंने कहा,

"अफ्रीका का प्राकृतिक संसाधन और उत्पादन समृद्ध है। हालांकि अफ्रीका के अर्थतंत्र अपेक्षाकृत कम विकसित है, लेकिन वहां की जनसंख्या अधिक है और निहित बड़ा बाजार और ग्राहक समूह भी हैं। अफ्रीका का विकास कमजोर है। रास्तों, बंदरगाहों और पुलों के निर्माण के लिए पूंजी लगाने की आवश्यक्ता है। ब्रिक्स देश अफ्रीका को पूंजी, व्यापार और तकनीक के आदान-प्रदान का अवसर देंगे।"

ब्रिक्स देशों का सहयोग व्यवस्था विश्व के वित्तीय संकट के बाद स्थापित हुआ है। पहले हुए ब्रिक्स देशों की शिखर वार्ताओं की उपलब्धियों को देखा जाए, तो ब्रिक्स देशों ने वैश्विक और क्षेत्रीय मुख्य सवालों पर समान चिंता व्यक्त की, रूख के ताल-मेल को मिलाया, वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था को सुधारने और नवोदित बाजार वाले देशों के अभिव्यक्ति अधिकार को बढाने की अपील की। सूचना है कि ब्रिक्स देशों ने समान रूप से पूंजी लगाकर विकास बैंक की स्थापना करने की प्रारंभिक सहमति दी। वर्तमान वार्ता के दौरान संबंधित सूचना सार्वजनिक की जाने की संभावना है। श्री दावी रूदट ने कहा कि ब्रिक्स देशों के बैंक की स्थापना का समय दूर नहीं है। उन्होंने कहा,

"अगर पश्चिमी देशों को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अंतर्राष्ट्रीय बैंक में उनके अधिकार नवोदित बाजार वाले देशों को नहीं देना चाहता, तो नवोदित बाजार वाले देश इस तरह की वित्तीय संस्था की स्थापना करने की कोशिश करेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि निकट भविष्य में ब्रिक्स देशों के विकास बैंक की स्थापना की जाएगी। वह अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और अन्य नवोदित बाजार वाले देशों और विश्व पर बड़ा प्रभाव डालेगा।"

श्री दावी रूदट ने यह सूझाव दिया कि पश्चिमी देशों के साथ और अच्छी तरह प्रतिस्पर्द्घा करने के लिए ब्रिक्स देशों को वित्तीय व्यवस्था के निर्माण को आगे बढाना चाहिए। उन्होंने कहा,

"ब्रिक्स देशों के सामने मौजूद एक चुनौती है कि अपनी वित्तीय व्यवस्था अपेक्षाकृत आसान है। अब तक आपस में पूंजी का मुक्त रूप से प्रवाह नहीं किया गया है। इसलिए ब्रिक्स देशों को वित्तीय सहयोग करना चाहिए, न केवल ब्रिक्स देशों के विकास बैंक की स्थापना करना चाहिए, बल्कि अपने वित्तीय ढांचे को भी सुधारना चाहिए। वरना पश्चिमी देशों के साथ प्रतिस्पर्द्घा नहीं हो सकता है।"

भविष्य में ब्रिक्स देशों की व्यवस्था के विकास पर चर्चा करते हुए श्री दावी रूदट ने कहा कि ब्रिक्स देशों को इस सहयोग व्यवस्था का समायोजन करने की आवश्यकता है। दूरगामी दृष्टी से देखा जाए, तो और अधिक नए सदस्यों का ब्रिक्स ग्रुप में भाग लेने की संभावना है। उन्होंने कहा,

"वास्तव में वर्तमान में ब्रिक्स देशों की व्यवस्था एक व्यवस्था नहीं है। वह एक ढीला ग्रुप है। मेरे विचार में सबसे पहले इस व्यवस्था का समायोजन करने और सचिवालय जैसी संस्थाओं की स्थापना करने की जरूरत है। दूसरा, सवालों के समाधान के लिए और स्पष्ट कार्यसूची स्थापित करने की जरूरत है। मेरे विचार में ब्रिक्स देशों की सहयोग व्यवस्था केवल पांच देशों से संगठित होने की जरूरत नहीं है। भविष्य में नए सदस्यों का इसमें भाग लेने की संभावना है। जैसा कि मलेशिया और इंडोनेशिया, इसके नए सदस्य देश बनने की संभावना है।"

(वनिता)

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