हाल के दिनों में चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा यानी एनपीसी और चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन यानी सीपीपीसीसी के वार्षिक सम्मेलन पेइचिंग में आयोजित हो रहे हैं। सम्मेलनों के दौरान वर्ष 2013 राष्ट्रीय रक्षा बजट सार्वजनिक किया गया, इस पर पूरे देश का ध्यान केंद्रित हुआ है। चीनी सैन्य जगत के प्रतिनिधियों और सीपीपीसीसी के सदस्यों ने सीआरआई के संवाददाता के साथ हुए साक्षात्कार में कहा कि चीनी राष्ट्रीय रक्षा खर्च की वृद्धि राष्ट्रीय रक्षा की मांग और आर्थिक विकास के स्तर के अनुकूल है, उचित वृद्धि से आसपास के देशों पर कोई दवाब नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही चीनी प्रतिरक्षात्मक नीति और शांतिपूर्ण विकास की रणनीति सैन्य शक्ति के विकास के चलते नहीं बदलेंगी और आसपास की सुरक्षा के प्रति प्रत्यक्ष मुठभेड़ की स्थिति नहीं बनेगी।
इस वर्ष चीनी केंद्रीय वित्तीय रक्षा बजट अस्थाई तौर पर 7 खरब 20 अरब 16 करोड़ 80 लाख युआन निश्चित किया गया है, जो वर्ष 2012 से 10.7 प्रतिशत अधिक है। लेकिन वृद्धि का पैमाना पिछले वर्ष से 0.5 प्रतिशत कम रहा। वास्तव में चीनी रक्षा खर्च देश की जीडीपी में मात्र 1.6 प्रतिशत बनता है, यह संख्या अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस से कहीं कम है।
एनपीसी के प्रतिनिधि, चीनी सैन्य विज्ञान अकादमी के अनुसंधाकर्ता छङ चो के विचार में चीनी रक्षा खर्च की बढ़ोतरी समन्वयक विकास के दौरे में प्रवेश हो गई है। चीन के रक्षात्मक निर्माण देश की प्रतिरक्षा मांग और आर्थिक विकास के स्तर से अनुकूल हैं। उन्होंने कहा:"हाल के वर्षों में राष्ट्रीय रक्षा खर्च की वृद्धि ने वास्तविक तौर पर देश की रक्षा मांग को पूरा किया है, जो आर्थिक वृद्धि के अनुकूल है। इस तरह रक्षा खर्च की बढ़ोतरी सामान्य और उचित बात है। ऐसा कहा जा सकता है कि अब चीन में रक्षा खर्च की बढ़ोतरी समन्वयक विकास के ऐतिहासिक दौर में प्रवेश कर गया है। रक्षा खर्च को देश की सुरक्षा मांग और सामाजिक आर्थिक विकास के स्तर के अनुकूल होना चाहिए, ताकि रक्षात्मक निर्माण का निरंतर विकास हो सके।"
पिछले वर्ष से लेकर अब तक त्याओयु द्वीप मसले और दक्षिण चीन सागर स्थिति की गंभीरता के चलते चीनी सेना के मार्गदर्शन विचार में परिवर्तन आया है। विदेशी मीडिया ने मनमाने ढंग से इसे गलत समझा कि चीनी सेना युद्ध करने की तैयारी कर रही है । इसके प्रति एनपीसी के प्रतिनिधि और सीपीपीसीसी के सदस्यों ने अलग विचार पेश करते हुए कहा कि युद्ध करना और युद्ध में जीतना सैनिकों के प्रति आधारभूत मांग है। लेकिन चीन सैनिकों के बल प्रयोग से विवादों के समाधान का पक्षधर नहीं है। सीपीपीसीसी के सदस्य, चीनी रक्षा मंत्रालय के विदेशी कार्यालय के पूर्व निदेशक छ्यान लीह्वा ने कहा:"हमें आसपास के सुरक्षा वातावरण को खराब नहीं समझना चाहिए। हमें सही ढंग से अपनी सुरक्षा स्थिति को देखना चाहिए। एक सैनिक की दृष्टि से देखा जाए, तो मेरा विचार है कि वर्तमान में हमारे सामने मौजूद सुरक्षा सवाल से प्रत्यक्ष मुठभेड़ और युद्ध नहीं होंगे।"
वर्तमान में चीन के सामने प्रादेशिक भूमि विवाद मुख्य तौर पर समुद्री मुद्दा है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्य रिपोर्ट में"समुद्री शक्तिशाली देश का निर्माण"पेश किया गया। एनपीसी के वार्षिक सम्मेलन में प्रस्तुत सरकारी कार्य रिपोर्ट में भी एक बार फिर"देश के समुद्री अधिकारों और हितों की रक्षा करने"वाला विचार पेश किया गया।
नौ सेना के विकास को लेकर एनपीसी के प्रतिनिधि, पूर्वी सागर बेड़े के उप कमांडर सुन लाईशङ ने कहा कि चीनी नौ सेना समुद्र में पैदा होने वाले विभिन्न प्रकार के मसलों को हल करने में सक्षम है और संकल्पबद्ध भी हैं। उन्होंने कहा:"समुद्री अधिकारियों और हितों की रक्षा करना, देश की प्रादेशिक भूमि की अखंडता को बनाए रखना चीनी नौ सेना का पवित्र मिशन है। हम चीनी फौजी समिति के आदेशानुसार समुद्री शांति को बनाए रखेंगे और विभिन्न प्रकार वाली घटनाओं के निपटारे में सक्षम हैं।"
चीनी सैन्य जगत के प्रतिनिधियों के विचार में गंभीर परिस्थिति में मौका भी मिल सकता है। सीपीपीसीसी के सदस्य, चीनी रक्षा मंत्रालय के विदेशी कार्यालय के पूर्व निदेशक छ्यान लीह्वा ने आशा जताते हुए कहा कि वार्ता और आदान प्रदान के माध्यम से सवालों का समाधान किया जाएगा। उनका कहना है:"तथाकथित अवसर का अर्थ ये है कि हम सलाह मशविरे, वार्ता, सामान्य बातचीत और आदान प्रदान के माध्यम से मतभेदों को कम करके समान विचार प्राप्त करेंगे, ताकि सवाल को हल करने का उपाय शीघ्र ही हो सके।"
एनपीसी के प्रतिनिधि, चीनी सैन्य विशेषज्ञ छङ चो ने कहा कि चीन का उत्थान आसपास के देशों पर दबाव नहीं डालेगा। क्योंकि चीन की प्रतिरक्षात्मक रक्षा नीति राष्ट्रीय शक्ति की वृद्धि के चलते नहीं बदलेगी। उन्होंने कहा:"चीन की रक्षा नीति को पूरे विश्व में सार्वजनिक किया गया है। हम शांतिपूर्ण विकास के रास्ते पर चलते हैं। भविष्य में चीन प्रतिरक्षात्मक रक्षा नीति जारी रखेगा और आक्रमण वाले सैन्य विस्तार के पथ पर कभी नहीं चलेगा।"