भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बलात्कार के खिलाफ अध्यादेश पर रविवार तीन फरवरी को हस्ताक्षर कर दिए। अब संसद को इस अध्यादेश को 6 महीने के भीतर पास करना होगा।
इससे पहले शुक्रवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों पर रोक लगाने के लिए अध्यादेश को मंजूरी दी थी। जो कि जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिशों के मुताबिक मौजूदा कानून को सख्त बनाने के लिए है।
कानून में किए गए संशोधनों के अनुसार बलात्कार पीड़िता की मौत होने या उसके कोमा में चले जाने की स्थिति में बलात्कारी को फांसी या उम्र कैद की सज़ा दी जाएगी।
नए अध्यादेश के अनुसार गैंगरेप, नाबालिकों के साथ बलात्कार, पुलिस या उच्च पदों पर तैनात व्यक्तियों द्वारा बलात्कार किए जाने की सज़ा 10 साल से बढ़ाकर 20 वर्ष कर दी गई है। मौजूदा कानून में सामान्य बलात्कारी को 7 से 10 साल तक कैद की सज़ा मिलेगी।
इसके साथ ही'दुष्कर्म'शब्द की जगह इसमें'यौन अत्याचार'शब्द का इस्तेमाल किया गया है, ताकि महिलाओं के खिलाफ सभी तरह की यौन हिंसा इसके दायरे में आ सके।
लेकिन महिला संगठनों ने इस अध्यादेश को मानने से इनकार करते हुए कहा कि इससे यौन हिंसक अपराधों पर अंकुश नहीं लगेगा। इसके साथ ही सरकार द्वारा अध्यादेश को मंजूरी दिए जाने से पहले कोई बहस या चर्चा न किए जाने की भी निंदा की है।
(नीलम)