नौ दिसम्बर को चीनी संवाद समिति शिन्ह्वा समाचार एजेंसी ने यर खबर दी थी कि सछ्वान प्रांत की पुलिस ने आत्मदहन को उकसाने के मामले का पता लगाने में सफलता प्राप्त की है, इसमें प्राप्त अकाट्य सबूत से आत्मदहन को उकसाने वाले अपराधियों की निर्ममता और बेशरमी के चेहरे का पर्दाफाश किया गया एवं दलाई गुट की कलई खोली गयी है कि वह आत्मदहन उकसाने वाला संयोजक और मूल षड़यंत्रकारी है ।
पिछले साल, 26 नवम्बर को दलाई लामा ने ब्रिटिश बीबीसी के साथ इंटरव्यू में कहा कि आत्मदहन करने वाले बहुत बहादूर थे, लेकिन उन के बलिदान का काम आएगा या नहीं, वह एक प्रश्नचिन्ह है। इन शब्दों से स्पष्टतः जाहिर हुआ है कि दलाई लामा की चिंता आत्मदहन की क्रूरता व अमानुषिकता पर नहीं है, वे इसपर चिंतित हैं कि इस प्रकार की घटना का काम आएगा या नहीं। गत सितम्बर में दलाई गुट की एक विशेष बैठक हुई जिसमें आत्मदहन की हरकत की खुलकर प्रशंसा की गयी और दावा किया गया कि आत्मदहन अहिंसा की चरम सीमा होता है। जाहिर है कि दलाई गुट का उद्देश्य है कि अधिक से अधिक लोगों को आत्मदहन के लिए उकसाया जाए। इस प्रस्ताव का दलाई लामा पूरी तरह समर्थन करते हैं। दलाई गुट के तिब्बती युवा संघ ने खुलेआम हांक लगाया है कि हमारी दृष्टि में आत्मदहन अहिंसा से प्रतिरोध करने की कारगर कार्रवाई है।
दलाई गुट की इस प्रकार की अमानुषिक कोशिश की तिब्बती आबादी क्षेत्र के व्यापक लोगों और धार्मिक लोगों ने कड़ी निन्दा की, साथ ही अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने भी दलाई लामा के असली मकसद पर सवाल उठाया। लोग पूछते हैं कि यदि आत्मदहन इतना अच्छा है, तो दलाई लामा और उन की निर्वासित सरकार और तिब्बती युवा संघ के नेतागण क्यों आत्मदहन नहीं करते ?
यह सर्वविदित है कि बौद्ध धर्म जीवन को बेहत कीमती मानता है। अतीत के सभी पीढ़ियों के दलाई लामाओं में से ऐसा कोई नहीं आया था जो आत्मदहन समेत हत्या करने वाली हरकत का समर्थन करता है। दलाई गुट धर्म के नाम पर लोगों पर मानसिक नियंत्रण कर दूसरों के जीवन की बलि पर अपना राजनीतिक लक्ष्य प्राप्त करने की कोशिश करता है, यह न केवल तिब्बती बौद्ध धर्म के सिद्धांत और परंपरा के विरूद्ध है, बल्कि उस के ऐसे विधर्मी पंथ की विशेषता भी प्रकट हुई है जिससे पश्चिमी समाज काफी वाकिफ है।
असल में आत्मदहन को उकसाने में दलाई गुट का मकसद तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए लोगों को भड़काना है। वर्ष 1959 में सशस्त्र विद्रोह छेड़ने में विफलता के बाद दलाई गुट विदेश में भागा, तब से पिछली आधी शताब्दी में उसने चीन की सीमा पर सशस्त्र हमला बोलने, ल्हासा में दंगा भड़काने तथा 14 मार्च को तोड़फ़ोड़, लूटमार और आगजनी रचने के अनेकों संगीन आपराधिक घटनाएं खड़ी कर दी थी, जिन सभी का मकसद तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए भड़काना है। इन सालों में दलाई गुट ने आत्मदहन का षड़यंत्रण चलाया, वह चाहता है कि अपने इन कुकर्मों के जरिए चीन सरकार से तौलभाव कर सकता है, ताकि तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए अपना ऊल्लू सिद्ध करे। जर्मन अखबार दे जर्मन डैली ने कहा, यह स्पष्ट है कि तिब्बतियों में आत्मदहन की घटना से धार्मिक विशेषता लुप्त हुई है, वह ऐसा साधन बन गया है जिस का इस्तेमाल करते हुए दलाई लामा और उन की निर्वासित सरकार चीन पर दबाव डाले और राजनीतिक लाभ हथियाए।
लेकिन सारी दुनिया के इतिहास से जाहिर है कि ऐसा कोई भी राजनीतिक गुट नहीं आया था जो चंद कुछ लोगों को आत्मदहन के लिए उकसाने से अपना राजनीतिक ध्येय साकार कर सकता है। चीन एक एकीकृत, शक्तिशाली देश है जिस का अन्तरराष्ट्रीय समाज में स्थान लगातार बढ़ता जा रहा है। भला दलाई गुट की ऐसी अमानुषिक कार्यवाही उसे क्या हिला सकता।
दलाई गुट ने अपने पापी मकसद केलिए मासूम बच्चों का इस्तेमाल भी नहीं छो़ड़ा। इस साल, 10 अप्रैल को वॉइस आफ अमेरिका ने यह खबर दी थी कि दलाई गुट द्वारा खोले स्कूल में आत्मदहन की तस्वीरें प्रदर्शित की गयीं और बच्चों को आत्मदहन वालों को सलाम देने को कहा गया, दलाई गुट की जबरदस्ती पर बच्चों ने पूछा, क्या आप चाहते हैं कि हम भी उन की तरह आत्मदहन करें ? जाहिर है कि दलाई गुट बच्चों को मित्रता, शांति, प्यार और सहिष्णुता की जगह घृणा, द्वेष और आत्मदहन की शिक्षा देता है। इससे दलाई लामा के शांति व अहिंसा के मिथ्या रूप की कलई पूरी तरह खोली गयी।
आत्मदहन का साजिश रचने वाले तथा उन के मकसद के बारे में पश्चिम समाज को साफ साफ मालूम है। अमेरिकी रणनीतिक अनुमान कंपनी ने अपनी अप्रैल की अध्ययन रिपोर्ट में बताया है कि विरोध प्रदर्शन का संगठन करने से आत्मदहन के लिए कुछ लोगों को उकसाना ज्यादा आसान है और कम खर्च भी है, लेकिन उस का प्रभाव कम नहीं है। कंपनी ने दलाई गुट को सुझाव दिया कि वह इस प्रकार का हथकंडा अपनाए।
किन्तु दलाई गुट की पृथक्कवादी कार्यवाहियां चाहे हिंसक हो, अथवा अहिंसक, सभी मानव विरोधी कार्यवाही है। उन की ये कार्यवाहियां मातृभूमि के गोद में रह रहे तिब्बत के युगांतर विकास व सामाजिक स्थिरता की आम स्थिति को नहीं बदल सकतीं, न ही दलाई गुट के शोचनीय अंत को बदलती।