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तिब्बती सांस्कृतिक मंडल का फ्रांस दौरा
2012-11-30 15:36:04

तिब्बत के प्रशासन कॉलेज के उप प्रधान फूपू त्सेरिंग के नेतृत्व में चीनी तिब्बती सांस्कृतिक मंडल ने 29 नवम्बर को फ्रांस के एल्सेस क्षेत्र की राजधानी स्ट्रासबर्ग का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने वहां स्थित अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कॉलेज और स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय के अधीनस्थ यूरोपीय व अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र का दौरा किया। इसके साथ ही कॉलेज के प्रोफेसरों व एमए की पढ़ाई कर रहे छात्रों के साथ बैठक आयोजित कर विचार-विमर्श किया।

फूपू त्सेरिंग ने प्रोफेसरों व छात्रों को तिब्बत की ऐतिहासिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियों से अवगत कराया। स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय के कानून कॉलेज के प्रोफेसर सिमेओन कर्गिआनिस ने इसके बाद अपना अनुभव बताते हुए कहा:

"आज हमने तिब्बती लोगों के साथ सीधे बातचीत की, यह एक बड़ी बात है। वास्तव में तिब्बत हमसे बहुत दूर है और यूरोपीय लोगों के लिए रहस्य वाली जगह भी है। लेकिन तिब्बती संस्कृति बहुत विशेष है। इस बार के कार्यक्रम के जरिए हमने तिब्बतियों के जीवन और रोज़गार के बारे में जानकारी हासिल की। उम्मीद है कि भविष्य में हमारे शिक्षकों और छात्रों को इस प्रकार के मौके मिलेंगे।"

विश्वविद्यालय के तमाम छात्रों ने संगोष्ठी में सक्रिय रूप से हिस्सा लेते हुए अहम बातों को नोट भी किया। उन्होंने तिब्बत के बारे में कई रुचिकर सवाल पूछे। थॉमस ने फूपू त्सेरिंग द्वारा दी गई रिपोर्ट सुनने के बाद कहा कि इससे उन्हें तिब्बत से जुड़ी बहुत जानकारी हासिल हुई है। थॉमस ने कहा है:

"यह पहला मौका है, जब मैंने तिब्बत के बारे में रिपोर्ट सुनी। यह बहुत दिलचस्प है। विशेषकर स्वायत्त प्रदेश के रूप में तिब्बत में नीति कैसी है, यह पहले मुझे कोई मालूम नहीं था।"

तिब्बती प्रतिनिधिमंडल के अध्यक्ष फूपू त्सेरिंग के विचार में मौजूदा कार्यक्रम सफल रहे हैं। वे कहते हैं:

"यहां हमने दो संगोष्ठियां आयोजित की और वे सफल रही। पहली संगोष्ठी में हमने मानवाधिकार मुद्दे पर यहां के लोगों के साथ विचार-विमर्श किया। मुझे लगता है कि पश्चिमी दुनिया तिब्बत की स्थिति नहीं समझती। यहां तक कि वे तिब्बत को पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर देखते हैं। वास्तव में उनके पास तिब्बत की स्थिति की जानकारी नहीं है। इस प्रकार के सांस्कृतिक आदान प्रदान के जरिए हमने उन्हें सच्चे व वास्तविक तिब्बत से अवगत कराया। वे लोग विश्वास करते हैं हम तिब्बत से आए हैं और उन्हें एक सही तिब्बत से रूबरू करा रहे हैं।"

तिब्बत के प्रति फ्रांसीसी छात्रों व विद्वानों के रूचि वाले सवाल की चर्चा में फूपू त्सेरिंग ने कहा कि तिब्बत से बाहर जाकर ज्यादा से ज्यादा पश्चिमी लोगों के साथ सीधे बातचीत करना बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा:

"वे लोग मानवाधिकार, प्रवास, तिब्बत के प्रति नीतियां व तिब्बत के कानूनी मुद्दों आदि के बारे में रुचि रखते हैं। साथ ही राजनीतिक सवाल भी पूछते हैं। मुझे लगता है कि हमें तिब्बत से बाहर जाकर हमारी मातृभूमि में आए परिवर्तन और प्रसार करना चाहिए। इससे हम पश्चिमी देशों के साथ पारस्परिक समझ बढ़ेगी और द्विपक्षीय मैत्री मज़बूत होगी।"

स्ट्रासबर्ग स्थित चीनी कांसुलेट के जनरल कौंसल चांग क्वोपिन ने भी इन कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। इस क्षेत्र के छात्रों व विद्वानों ने तिब्बती लोगों का स्वागत किया। उन्हें लगता है कि इस प्रकार के आदान प्रदान का काफी महत्व होता है। उनका कहना है:

"मुझे लगता है कि तिब्बतविदों की मौजूदा स्ट्रासबर्ग यात्रा बहुत सार्थक रही है। क्योंकि एल्सेस क्षेत्र और स्ट्रासबर्ग में यूरोपीय संसद और यूरोपीय आयोग के कार्यालय स्थित हैं। हर वर्ष यूरोपीय संसद तिब्बत से जुड़े प्रस्ताव पारित कर हमारे मामलों में तर्कहीन हस्तक्षेप करती है। ऐसी पृष्ठभूमि में तिब्बती प्रतिनिधिमंडल यहां आया। मुझे लगता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं कांग्रेस के बाद यूरोपीय लोगों और पश्चिमी जगत को एक सूचना देने आए हैं। यानी पश्चिमी मीडिया और लोगों को तिब्बत के बारे में गलतफहमी हैं, उसे दूर करना हमारा मकसद है।"

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