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फुंगह्वांग नगर की सैर
2012-11-06 10:22:31
दोस्तो, मध्य-दक्षिण चीन के हूनान प्रांत के पश्चिमी भाग में एक बहुत बड़ा तो नहीं, पर बहुत पुराना ऐतिहासिक शहर स्थित है। फूंगह्वांग नामक यह छोटा सा शहर चारों तरफ पर्वतों से घिरा हुआ है। इसका प्राकृतिक दृश्य अपने ही ढंग का है और स्थानीय रीतियों के चलते इसने अपनी विशेष पहचान कायम की है। चीन में करीब 60 वर्ष बिताने वाले न्यूजीलैंड के लेखक रेवी ऐली ने इस शहर को चीन का सब से सुंदर लघु शहर कहा है। आज के चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम आप को इस प्राचीन ऐतिहासिक शहर के दौरे पर ले चलते हैं।

फंगह्वांग चीन के सुप्रसिद्ध आधुनिक साहित्यकार व इतिहासकार श्री शन त्सों वन का जन्मस्थान है। पिछले कई हजार वर्षों से यह नगर पर्वतों के बीच छिपा रहा है। चीन के इस प्रसिद्ध साहित्यकार श्री शन त्सों वन ने 60 साल पहले पहली बार सुदूर नगर नामक अपने उपन्यास में इस का चित्रण किया और इस तरह बाहरी लोगों ने इस के जरिये इस प्राचीन नगर का परिचय पाया तो इस का रहस्यमय व शांतिमय वातावरण अनेक लोगों के आकर्षण का केंद्ग बना।

यह छोटा सा सुंदर शहर कोई चार सौ वर्ष पुरानी चारदीवारी के बीच खड़ा है। हम इस चारदीवारी के उत्तरी द्वार पर पहुंचे, तो म्याओ जाति की सजीधजी युवतियों ने पहाड़ी गीत गाकर हमारी अगवानी की। फंग ह्वांग शहर की आबादी तीन लाख से कुछ अधिक है, जिस का अधिकांश म्याओ और थुचा अल्पसंख्यक जातियों का है । इस शहर के हर कोने में जातीय पोशाक पहने म्याओ और थूचा जाति के लोग तो देखे ही जा सकते हैं, इन दोनों जातियों की वास्तुशैलियों में निर्मित झूलती इमारतें भी पायी जाती हैं।

फूंगह्वांग शहर का दौरा आधे घंटे में पूरा किया जा सकता है। इस शहर का पश्चिमी भाग में स्थित पुराना शहरी क्षेत्र सब से ध्यानाकर्षक है। 13वीं शताब्दी में निर्मित शहर की परम्परागत छवि व ऐतिहासिक पर्यावरण हवा व वर्षा के थपेड़ों की परवाह न करते हुए आज तक बरकरार है। शहर की कई संकरी गलियां, पुरानी दीवारें, प्राचीन भवन, घाट व मंदिर बड़े दर्शनीय हैं। हरेक गली-सड़क यहां पाये जाने वाले भूरे रंग के पत्थरों से बनी है। सड़क के किनारे लगभग सौ साल पुराने मकान सुव्यवस्थित रूप से खड़े हैं। रोचक बात यह है कि इन मकानों की वास्तुशैली एक सी नहीं है यों उन की छतों पर लगी काली खपरैलें और भूरी लकड़ियों की दीवारें एक ढंग की हैं। एक-दूसरे से सटे अपने ही ढंग के ये मकान एक असाधारण दृश्य बनाते हैं। शरद में यहां ढेरों पर्यटक आते हैं और चारों ओर बड़ी हलचल रहती है और बेशुमार मकानों वाली इन गलियों का वातावरण शांत रहता है।

शहरी क्षेत्र में एक-दूसरे से सटे मकानों से जहां एक असाधारण दृश्य बनता है, वहीं सड़कों के किनारे खड़े मकान दुकानों का काम देते हैं। नदी के तट पर अनेक झूलती इमारतें नजर आती हैं और पर्वत की तलहटी में मंदिर देखने को मिलते हैं।

थो च्यांग नदी फूंगह्वांग शहर से कलकल करती आगे बहती है। इस नदी का पानी इतना स्वच्छ है कि उस के तल में उगी घास व जंतु तक साफ दिखाई पड़ते हैं। नदी के ऊपरी भाग में निर्मित झूलती इमारतें एक लम्बी कतार में खड़ी नजर आती हैं। प्राचीन फुंगह्वांग नगर की यह भी एक खास पहचान है।

शहर की झूलती इमारतें स्थानीय म्याओ व थू चा जातियों की विशेष जातीय वास्तुशैली में निर्मित हैं। ऐसी एक इमारत का एक छोर नदी तट से सटा होता है, जब कि दूसरा नदी के बीच खड़े दो खंभों पर टिका होता है। एक-दूसरी से जुड़ी ये इमारतें एक ही वास्तुशैली की हैं। ऐसी इमारत में रहने पर आपको शायद यह महसूस हो कि आप एक सुंदर चीनी स्याही चित्र के भीतर रह रहे हों, क्योंकि नीचे एक स्वच्छ नदी बह रही होती है, पीछे हरे-भरे पर्वत होते हैं और ऊपर नीले आकाश में सफेद बादल मंडरा रहे होते हैं। यह एक मर्मस्पर्शी दृश्य की रचना करता है। नदी के किनारे मैंने पर्यटकों व स्थानीय पर्वतवासियों के अलावा तीन-चार छात्रों को यह चित्र उकेरने में मगन देखा। उन में से एक लड़की चाइ श्याओ य्वे ने बताया कि वह अपने मित्रों के साथ चित्र उकेरने के लिए दक्षिणी चीन के चान च्यांग शहर से यहां आयी है। उसने कहा मैं क्वांगशी च्वोंग जातीय स्वायत्त प्रदेश के चान च्यांग शहर के नम्बर तीन मिडिल स्कूल की छात्रा हूं। हर वर्ष हमारे स्कूल के छात्र 12-13 घंटे की रेलयात्रा कर यहां पहुंचते हैं। यहां का प्राकृतिक दृश्य अनुपम है।कतारों में खड़ी झूलती इमारतों की अपनी अलग पहचान है, हमें यह देखकर बड़ा अच्छा लगता है।

इस छात्रा की बात बिल्कुल सही है। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य ने अपनी विशेष पहचान बना ली है। थो च्यांग नदी के तट पर पुरानी वास्तुशैलियों में निर्मित झूलती इमारतें सुंदर लम्बे पैर वाले बगुलों की तरह सुव्यवस्थित दिखती हैं, कलकल बहती थो च्चांग नदी में कुछ ग्रामीण महिलाएं सब्जियां व कपड़े धोती नजर आती हैं, जबकि कुछ लोग बड़े आराम से गपशप मारते दिखते हैं। थो च्यांग नदी के घाट पर हम एक बुजुर्ग फंग की नाव पर चढ़े और नाव से थो च्यांग के दोनों किनारों के मनोहर दृश्यों का आनन्द लेते हुए उन से बातचीत की। उन्होंने बताया

मुझे यह काम करते तीन साल हो गय़े हैं। नदी के दोनों तटों पर बसे अधिकतर घरों के पास नावें हैं। पर्यटन के व्यस्त समय में बहुत से पर्यटक बाहर से यहां आते हैं और स्थानीय लोग पैसे कमाने में लग जाते हैं। इस तरह सुधार व खुला द्वार नीति के चलते यहां के निवासी पहले से अधिक संपन्न हो गये हैं।

बुजुर्ग फंग फुंगह्वांग रहने वाले हैं। पहले वे खेती करते थे। पर अब कृषक होने के अलावा एक स्थानीय पर्यटन कम्पनी के नाविक भी हैं। वे नाव चलाते हुए किसी गाइड की तरह पर्यटकों को सुंदर मर्मस्पर्शी पौराणिक कहानियां भी सुनाते हैं जिन्हें सुनते-सुनते पर्यटक पुराने समय में विलीन से हो जाते हैं।

थो च्यांग नदी के किनारों के अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के बाद हम पत्थर से बनी एक सड़क पर पहुंचे। इस रौनकदार सड़क के दोनो ओर विभिन्न प्रकार की दुकानें खड़ी हैं। हम वहां चांग कुल की अदरक की मिठाई नामक दुकान पहुंचे। यह दुकान सौ वर्ष पुरानी है। इस की मालकिन सुश्री चांग लान छिंग ने बताया कि उस के यहां की अदरक की मिठाई गुड़, ताजा अदरक, तिल और झरने के पानी से बनती है।

उस ने कहा

अदरक की मिठाई बनाने का यह तरीका हमारी नानी ने ईजाद किया। वे सन 1896 के आसपास छिंग राज्यकाल में ही यह मिठाई बनाकर बेचने लगी थीं। पहले वे खाने की आम चीजें बेचती थीं पर बाद में उन्हों ने अदरक की यह मिठाई बनाने की तरीका खोजा। यह मिठाई बड़ी मुलायम ही नहीं होती, खांसी व जुकाम जैसी बीमारी के इलाज के काम भी आती है। उस की यह बात सुनकर हम ने भी कुछ मिठाई खरीद ली। फूंगहवांग में अदरक की इस मिठाई के अलावा चांदी के आभूषण, दस्तकारी की चीजें, कसीदे और कागज- कटाई की स्थानीय कलाकृतियां भी पर्यटकों को लुभाती हैं।

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