16 अक्तूबर को 32वां विश्व खाद्य दिवस है। इस साल विश्व खाद्य दिवस का थीम हैः कृषि सहकारी समिति दुनिया को भर पेट खिलाने का कुंजी है। इस साल अन्तरराष्ट्रीय कृषि सहकारी वर्ष भी है, मौके पर संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन ने बताया कि यदि विभिन्न देशों की सरकारों व गैर सरकारी संगठनों एवं विद्य जगत का प्रबल समर्थन मिला, तो कृषि सहकारी समिति अवश्य और अधिक बड़ी भूमिका अदा कर सकेगी तथा विश्व में गरीबी व भूखों को मिटाने में और बड़ा योगदान कर सकेगी।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन ने वर्ष 1981 में हर साल की 16 अक्तूबर को विश्व फूड डे बनाया, जिसका मकसद सारी दुनिया को अनाज व कृषि के विकास पर महत्व देने के लिए जागृत करना और लोगों को अनाज उत्पादन पर ध्यान देते हुए अकाल को मिटाने के लिए प्रोत्साहित करना है। पिछले 30 सालों के विकास के परिणामस्वरूप अब सारी दुनिया में भूखमरी का मुकाबला करने के संघर्ष में उल्लेखनीय प्रगति मिली है, फिर भी वर्तमान स्थिति आशावान् नहीं रही। विश्व खाद्य व कृषि संगठन ने पिछले हफ्ते ताजा आंकड़े जारी करके कहा कि 2010 से 2012 तक दुनिया भर में कोई 87 करोड़ जनसंख्या लम्बे अरसे से कुपोषण से पीड़ित है यानी दुनिया में हर आठवां लोग भूखा रहता है।
खाद्य व कृषि संगठन के महा निदेशक डासिलवा ने 16 तारीख को रोम स्थित संगठन के मुख्यालय में विश्व खाद्य दिवस मनाने की रस्म में बलपूर्वक कहा कि विभिन्न देशों को चाहिए कि पूरी तरह भूखों को मिटाने के लिए भरपूर कोशिश करें। दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के बहुत से देशों के तथ्यों से साबित हुआ है कि यह लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। श्री डासिलवा ने कहा कि कृषि सहकारी समिति लघु खेती वाले किसानों को गरीबी व भूखमरी मिटाने के लिए एक प्रमुख उपाय है। वह रोजगार के अवसर तैयार करने, गरीबों की संख्या कम करने, अनाज की सुरक्षा बढ़ाने तथा सकल घरेलू उत्पाद मूल्यों में वृद्धि करने में मदद दे सकती है। बहुत से देशों में कृषि सहकारी समितियों ने अहम भूमिका अदा की है। श्री डासिलवा ने विभिन्न देशों की सरकारों से आग्रह किया कि वे कृषि सहकारी समिति की मदद करने के लिए यथासंभव प्रयास करें।
विश्व खाद्य व कृषि संगठन के अनुसंधान से जाहिर है कि हालांकि लघु खेती वाले किसानों को अकेले अनाजों के दामों में बढ़ोत्तरी से लाभ नहीं मिल सकता, लेकिन सशक्त कृषि सहकारी समिति और समिति में शामिल लघु खेती वाले किसान अच्छी तरह बाजार का मौका उपलब्ध कर सकते हैं और अनाज संकट के कुप्रभाव से निपट सकते हैं। विश्व खाद्य दिवस की रस्म में अन्तरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष के महानिदेशक एफ. न्वानजे ने कहा कि लुवांडा के चाय किसान से लेकर नेपाल के पशुपालन केन्द्र तक कृषि सहकारी समितियों द्वारा लघु खेती वाले किसानों को सहायता देने के बेशुमार उदाहरण मिल सकते हैं, वे न केवल छोटे उत्पादकों को संगठित करने में मदद देते हैं, साथ ही उन्हें और अधिक मौके व संसाधन पाने में मददगार भी है।
असल में विश्व के सब से बड़े अनाज उत्पादन देश --- अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस आदि विकसित यूरोपीय देशों में कृषि सहकारी समिति व्यापक तौर पर अहम भूमिका निभाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ भी आशा करता है कि विकसित देशों के अनुभवों को व्यापक विकासशील देशों को सिखाया जाएगा और विकासशील देशों में कृषि सहकारी समितियों के विकास को बढ़ावा दिया जाएगा। वास्तव में कुछ विकासशील देशों में कृषि सहकारी समिति जैसे उत्पादक संगठनों का लगातार विकास भी हो रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने कृषि सहकारी समिति के अच्छे संचालन को इस साल के विश्व खाद्य दिवस का थीम बनाया है, इस का उद्देशय सदस्य देशों से कृषि सहकारी समिति पर महत्व देने की अपील करना है। संयुक्त राष्ट्र आशा करता है कि सदस्य देश कृषि सहकारी समिति व अन्य प्रकार के उत्पादक संगठनों के अधिक विकास के लिए हितकारी नीति और कानून कायदे एवं प्रोत्साहन व्यवस्था निर्धारित करें।
सारी दुनिया में गरीबी व भूखों को मिटाने तथा अनाज की सुरक्षा का लक्ष्य पाने के समान लक्ष्य के लिए प्रबल कृषि सहकारी समिति का विकास करना बहुत जरूरी है। जैसाकि संयुक्त राष्ट्र महा सचिव बान कि मून ने विश्व खाद्य दिवस में भाषण देते हुए कहा कि उन के प्रवर्तित शून्य भूखा चुनौति वाली कार्यवाही इस लक्ष्य पर आधारित है कि सबी लोग भूखों से छुटकारा पाएं और तमाम अनाज व्यवस्थाएं निरंतर बनी रहेंगी और सभी लोगों को खाद्य पदार्थ मिलने का अधिकार होगा और कृषि सहकारी समिति के प्रचुर अनुभव और ज्ञान लघु खेती वाले किसानों की आय व उत्पादन शक्ति को गुनों बढ़ाने के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।