आप जानते होंगे कि चीन का तिब्बत स्वायत्त प्रदेश विश्व के सब से ऊंचे पठार यानी छिंगहाई तिब्बत पठार पर स्थित है, जो औसतन समुद्र सतह से 4000 मीटर से अधिक ऊंचा है। दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया के अनेक क्षेत्र इस पठार की भौगोलिक स्थिति से प्रभावित होते हैं और चीन का जलवायु भी इस से बड़ा प्रभावित होता है। लेकिन भौगोलिक विशेषता व मौसम के कारण छिंगहाई तिब्बत पठार पर पारिस्थितिकी बहुत कमजोर होती है। इसे बेहतर बनाए रखने के लिए इन सालों में चीन सरकार ने तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में पारिस्थितिकी संरक्षण पर बड़ा महत्व दिया और इस काम को राष्ट्रीय रणनीति के अन्तर्गत रख दिया। अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप अब तिब्बत में पारिस्थितिकीगत पर्यावरण निरंतर सुधर जाता रहा है।
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के समाज विज्ञान अकादमी के उप शोधकर्ता दावाछीरन ने संवाददाता के साथ बातचीत में कहा कि इन सालों में चीन सरकार ने तिब्बत में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में जो पूंजी का निवेश किया है, उस की राशि साल ब साल बढ़ती गयी है, वहां जंगली जीवजंतु संरक्षण क्षेत्रों, प्रकृति संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना तथा प्रदूषण निवारण काम में उल्लेखनीय उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं। उन्होंने कहा कि तिब्बत में क्षीण प्राकृतिक स्थिति का संरक्षण करने के लिए चीन सरकार ने सिलसिलेवार कदम उठाए, विशेष तौर पर पर्यटन पैकेज के प्रबंधन तथा खनिज खनन् व सड़क निर्माण जैसी बड़ी परियोजनाओं के विकास में पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष इंतजाम किया है।
तिब्बत में यात्रियों की संख्या बढ़ने से वहां की प्रकृति पर असर पड़ता है। तिब्बत ने प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिए पर्यटन पैकेज व सेवा प्रबंध के बारे में अनेक नीतियां लागू कीं ताकि पर्यटन के विकास का पारिस्थितिकी पर कम असर पड़े। खनिज दोहन व परियोजनाओं के निर्माण के क्षेत्र में भी वनस्पति की रक्षा पर बल दिया गया।
इन क्षेत्रों में उपलब्धियां हासिल होने के बावजूद तिब्बत में पारिस्थितिकी संरक्षण के लिए अनेक चुनौतियां मौजूद हैं। दावाछीरन ने कहा कि वर्ल्ड वार्मिंग होने के कारण तिब्बत में अनेक समस्याएं पैदा हुई हैं, हिमनदी तेजी से पिघलने से तिब्बत में झीलों का पानी स्तर ऊंचा हो गया और घास मैदान जलमग्न हो गया, जिससे स्थानीय चरवाहों का जीवन प्रभावित हुआ है।
तिब्बत में पर्यावरण संरक्षण को मजबूत करने के लिए चीन सरकार ने सक्रिय रूप से अन्तरराष्ट्रीय सहयोग चलाए । जर्मनी के लेइप्जिग युनिवर्सिटी से आए प्रोफेसर ग्रुसचेक तिब्बत में पारिस्थितिकी अनुसंधान में काम करने वाले विदेशी विद्वानों में से एक है। वर्ष 1985 में वे तिब्बत आए, पिछले 30 सालों में वे सर्वे के लिए 50 बार तिब्बत आए और 2005 में तिब्बत में पर्यावरण सुधार के अनुसंधान में औपचारिक अकादमिक अध्ययन शुरू किया। उन की नजर में पिछले सालों में तिब्बत में बहुतसे भारी परिवर्तन आए हैं। उन्होंने कहाः
मैं 1984 में पहली बार तिब्बत आया था, उस समय की तुलना में अब वहां भारी परिवर्तन हुए है। घास मैदान पर बसे लोग अब शहरों में बसने आए। पहले उन्हें शिक्षा देने का काम बहुत कठिन था, अब शहरों में उन्हें पर्यावरण संरक्षण के बारे में भी आसानी से शिक्षा दी जा सकती है। आप उन के घर देखने जाएं, वहां टेलीविजन सेट, मोटर गाड़ी और कार जैसे आधुनिक उत्पाद उपलब्ध हैं, उन का जीवन सचमुच खुशहाल बन गया है।
इस जर्मन विद्वान ने बताया कि वास्तव में मानव और प्रकृति के बीच टक्कर बहुत बड़ा है जिससे तिब्बत में निरंतर विकास के लिए अनेकों चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं। उन्होंने कहा कि यदि मानव निरंतर विकास प्राप्त करना चाहता है, तो उन्हें प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना तथा उन का युक्तियुक्त प्रयोग करना चाहिए, वहां के लोगों व स्थानीय संस्कृति का सम्मान करना चाहिए, तभी निरंतर विकसित हो सकने वाला पर्यटन उद्योग स्थानीय लोगों को अधिक रोजगार के अवसर प्रदान कर सकेगा और उन का जीवन सुधार देगा।
तिब्बत में पर्यावरण संरक्षण से जुडे विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय सहयोग मुद्दे भी सुव्यवस्थित रूप से चल रहे हैं। अमेरिका के विंरोक इंटरनेशनल के अफसर ईथन गोल्डिंगस ने कहा कि उन का संगठन अब तिब्बत में किसानों को प्रभावकारी तकनीकों का प्रशिक्षण दे रहा है, जिससे वहां घास की खेती और वृक्ष रोपण करने में अच्छी सफलता मिली है। उन का कहना हैः
चीन सरकार अब बहुत से क्षेत्रों में जमीन के मरूभूमि में बदलने की समस्या का समाधान करने में लगी हुई है, इसके लिए खेतों को पुनः जंगल में बदलने तथा चरगाहों को घाल के मैदान में बदलने का काम किया जा रहा है। तिब्बत में इस प्रकार के प्रयासों से हमारे प्रोजेक्ट को भी बड़ी मदद मिली है और वहां के निवासी आवास के वातावरण सुधार पर बड़ा ध्यान देते हैं।