दलाई लामा गुट ने यह बेहूदा दलील पेश की है कि तिब्बत में तिब्बती जनसंख्या हान जातीय लोगों की संख्या में मग्न हो गयी है और तिब्बत में काम करने आए हान लोगों ने तिब्बतियों के रोटी-रोजी के अवसर छीन लिए है। तिब्बतविद् के विशेषज्ञों ने इस दलील का खंडन करते हुए कहा कि चीन के विभिन्न क्षेत्रों और विभिन्न जातियों के बीच जनसंख्या के परस्पर प्रवाह से ही एक बहुजीतीय एकीकृत चीनी राष्ट्र का गठन हुआ है, यह ऐतिहासिक तथ्य है। वर्तमान तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में 20 से अधिक जातियों के लोग रहते हैं, विभिन्न जातियों के बीच जनसंख्या के प्रवाह से आपसी आदान प्रदान व मेलमिलाप हो सकता है, जनसंख्या के प्रवाह पर रोक लगाना एक सामाजिक प्रतिक्रियावाद है।
62 साल पहले, जब तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति हुई थी, उस समय तिब्बत सामंती भूदास व्यवस्था के तहत था, वहां जनसंख्या के 95 प्रतिशत लोग भूदास थे, जो भूमि व पशु की भांति सरकारी अधिकारियों, जागीदारों और लामा मंदिर के उच्च स्तरीय भिक्षुओं के द्वारा मनमानी से बेचे जा सकते थे, इस प्रकार की सामंती सत्ता के कारण तिब्बत में उत्पादन शक्ति अत्यन्त पिछड़ी हुई थी। शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत में भूदास व्यवस्था का अंत कर दिया, तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना की और जनवादी सुधार तथा खुले द्वार की नीति लागू की, जिससे देश के भीतरी इलाकों की तरह तिब्बत में आर्थिक विकास में छलांग लगा और बड़ी राशि में पूंजी तिब्बत में आयी, तिब्बत में पर्यटन, बुनियादी सुविधा और सेवा उद्योग का तेजी से विकास हुआ, फलस्वरूप रोजगार व करियर के विकास के अनेकों अवसर तैयार हो गए, ऐसी हालत में हान, ह्वी, मान, सारा, वेवूर व कजाख समेत 20 से अधिक जातियों के लोग स्वतः तिब्बत में आए हैं। सछ्वान प्रांत के जातीय मामला अध्ययन प्रतिष्ठान के उपाध्यक्ष सुश्री ली चिन ने परिचय देते हुए कहा कि तिब्बत की विशेष भौगोलिक व मौसम स्थिति के कारण देश के विभिन्न स्थानों से तिब्बत में आने वाले लोग बहुधा प्रवासी श्रमिक के रूप में हैं, वे अनेक स्थानों में आते जाते हैं, इससे यह भ्रम पैदा होता है कि बाहर से अन्य जातियों की बड़ी जनसंख्या तिब्बत में आयी हो। सुश्री ली ने कहाः
विशेष मौसम स्थिति के कारण तिब्बत में पर्यटन उद्योग हर साल मई से नवम्बर तक जोरों पर है, इस अवधि में पर्यटकों की संख्या ज्यादा है और उन की सेवा करने वाले कर्मचारियों की संख्या भी अधिक है। लेकिन पर्यटन के मंद सीजन में वे लोग वापस लौटते हैं। इसतरह देखने में जान पड़ता है कि तिब्बत में हान लोग बहुत से हैं, लेकिन आवास रजिस्ट्रेशन की जांच से पता चलता है कि वहां स्थाई रूप से बसे हुए हान लोगों की संख्या बहुत कम है, उनमें से ज्यादातर लोग प्रवासी श्रमिक हैं।
सुश्री ली ने यह भी कहा कि जनसंख्या का प्रवाह केवल चीन में ही नहीं होता है, हकीकत यह है कि जहां आर्थिक विकास तेज है और बुनियादी सुविधाएं संपूर्ण हैं. वहां बाहर से अधिक लोग आते हैं, यह विश्व में आर्थिक विकास में एक आम रूझान है। सुश्री ली का कहना हैः
यह वैश्विक हालत बहुत से देशों में पायी जाती है। मिसाल के लिए अमेरिका के न्यूयार्क को लीजिए, वहां स्थानीय न्यूयार्क वासियों की संख्या बहुत कम है, अधिकांश निवासी यूरोप, एशिया और अफ्रीका से आए हुए हैं, इसलिए आप नहीं कह सकते कि न्यूयार्क वासी बाहर से आए लोगों की संख्या में मग्न हुए है। और तो और चीन के संविधान में यह प्रावधान भी है कि हरेक चीनी नागरि देश की किसी भी जगह पर बसने के हकदार हैं।
फिर भी तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने स्थानीय निवासियों को रोजगार दिलाने के अनेक उदार कदम उठाए हैं, जैसाकि किसी भी बुनियादी ढांचे के निर्माण में स्थाई निवासियों का अनुपात 30 फीसदी से अधिक होना चाहिए। हकीकत यह भी है कि बाहर से आए लोगों ने जो कारोबार चलाए है, उनसे स्थानीय निवासियों को बहुत से रोजगार के अवसर प्रदान किए गए है।
सुश्री ली ने कहा कि बाहर से आए लोगों ने तिब्बत में पूंजी का निवेश किया है और स्थाई निवासियों को नौकरी के लिए लगाए है और उन्हें करियर विकास के लिए प्राथमिकता भी दी गयी है।
दलाई गुट ने यह हांक लगायी कि तिब्बत में स्थानीय लोगों के रोटी रोजी के अवसर छीन लिए गए हैं। इस पर चीनी तिब्बतविद् अनुसंधान केन्द्र के अनुसंधानकर्ता तु योंग पीन ने कहा कि यह सरासर बेतुकी है।
यदि उन की मानें, तो अगर चीनी लोग विदेश में नौकरी के लिए गए हों, उन्होंने विदेशी लोगों के रोजगार के अवसर छीन लिए है, जबकि विदेशी लोग चीन में काम करने आए हों, तो उन्हों ने भी चीनियों के रोजगारी छीन ली है। यह क्या बेतुक बातें है। वास्तव में जनसंख्या के प्रवाह पर रोक लगाना एक सामाजिक प्रतिक्रियावाद है।
चीन में हकीकत यह है कि सुधार व खुलेपन की नीति लागू होने के बाद न केवल विभिन्न जातियों के लोग तिब्बत में गए हैं, बल्कि बहुत से तिब्बती लोग देश के अन्य स्थानों में करियर के लिए भी गए हैं, आंकड़ों के अनुसार सिर्फ सछ्वान प्रांत के छेंग तू शहर में ही तीन लाख तिब्बती बसे हुए है और हर साल आने जाने वाले तिब्बतियों की संख्या 20 लाख तक पहुंचती है। वे सरकार से नियंत्रित नहीं हैं, वे स्वेच्छे से एक दूसरे की जगह आते जाते हैं और चीन के तेज आर्थिक विकास की भलाइयों का साझा करते हैं। वैसे ही चीन के पेइचिंग, शांगहाई आदि बड़े शहरों में भी बहुत से तिब्बती, वेवूर और अन्य जातियों के लोग रहते हैं और काम करते हैं, वे सभी महानगर में सुविधाजनक जीवन बिताते हैं।