चीन ने हाल ही में दक्षिण सागर में अपनी प्रभुसत्ता लागू करने , दक्षिण सागर का आर्थिक विकास करने और अपनी प्रादेशिक अखंडता को बनाये रखने के लिये विधिवत रुप से सान शा शहर स्थापित कर दिया । लेकिन इस सामान्य राजकीय सार्वभौमिक कार्यवाही को लेकर अमरीका ने चीन से जो भला बुरा कह दिया है , उस से दक्षिण सागर मामले में दखल देने की अमरीकी कोशिश दुराश्यपूर्ण जाहिर हो गयी है ।
अमरीकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने हाल ही में हुई एक न्यूज ब्रीफिंग में संकेत देते हुए कहा कि चीन ने एकाकी तौर पर कार्रवाई की है और यह दावा भी किया है कि यदि ऐसा करना जारी रखा जाए , तो अत्यंत चिन्ताजनक होगा , साथ ही चीन की ओर इशारा करते हुए कहा कि चीन धमकी व शक्ति के माध्यम से दक्षिण सागर विवाद का समाधान करने के लिये प्रयासरत है । अमरीकी सीनेटर जोन मक्केन ने अपने वक्तव्य में चीन पर यह आरोप लगाते हुए कहा कि चीन द्वारा सान शा चौकसी क्षेत्र की स्थापना अनावश्यक चुनौती है और यह बड़े देश की अपहार्य जिम्मेदारी से मेल नहीं खाता है । अमरीकी सीनेटर जेम्स वेब्ब ने अपने भाषण में दावा किया है कि चीन ने दक्षिण सागर मामले को लेकर आक्रामक रुख अपनाया है और बिना किसी कारण से दक्षिण सागर में एक प्रशासनिक सरकारी संस्था की स्थापना की है ।
लेकिन चीन पर अमरीका का यह आरोप बिलकुल विराधार है ।
सर्वप्रथम सान शा शहर की स्थापना चीन सरकार द्वारा मौजूदा प्रशासनिक क्षेत्राधिकार संस्थाओं में हेर फेर करने वाला एक कदम मात्र ही है , यह चीन की राजकीय प्रभुसत्ता का भीतरी मामला है , अमरीका को इसी मामले पर चीन से भला बुरा कहने का कोई अधिकार नहीं है । चीन को दक्षिण सागरीय द्वीपों और उन के निकट समुद्री क्षेत्रों पर अपनी सार्वभौमिकता और क्षेत्राधिकार है , यह पिछले दो हजार वर्ष पुरानी ऐतिहासिक प्रक्रिया में बने बनाये वास्तविक तथ्य ही है । चीन ने अलग ऐतिहासिक काल में दक्षिण सागर के द्वीपों का अधिकार करने के लिये जो भिन्न प्रशासनिक संस्था की स्थापना की है , यह बिलकुल चीन का अंदरुनी मामला है , किसी दूसरे देश से सलाह और सहमति लेने की कोई जरुरत नहीं है , इस में एक तरफा कार्रवाई करने का कोई सवाल ही नहीं उठता ।
दूसरी तरफ चीन ने दक्षिण सागरीय द्वीपों व उन के निकट समुद्रीय क्षेत्रों का जो अधिकार कर लिया है , वह सरासर तर्कसंगत है , किसी को धमकी व चुनौती नहीं दी है , आक्रामक रुख अपनाने का सवाल भी नहीं है । दक्षिण सागर सवाल की जटिलता के मद्देनजर चीन विवादों को अलग रखकर समान विकास करने का पक्ष लेता रहा है , साथ ही चीन ने दस साल पहले आशियान के साथ दक्षिण सागर के विभिन्न पक्षों का कार्यवाही घोषणा पत्र संपन्न किया और प्रत्यक्ष संबंधित प्रभुसत्ता संपन्न देशों के बीच मैत्रीपूर्ण सलाह मशविरे व वार्ता के जरिये शांतिपूर्ण ढंग से प्रादेशिक भूमि व क्षेत्राधिकार विवादों का समाधान करने का फैसला कर लिया । चीन हमेशा आत्मसंयम के साथ उक्त घोषणा पत्र का कड़ाई से पालन करता आया है । लेकिन फिलिपीन आदि देशों ने लगातार दक्षिण सागरीय द्वीपों पर चीन की सार्वभौमिकता व समुद्री अधिकार को हड़पने के लिये सिलसिलेवार अवांछित हरकतें कर डाली हैं । इसी बात को लेकर चीन हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रह सकता । बेशक चीन के लिये सान शा शहर की स्थापना जैसे माध्यमों से दक्षिण सागर में अपने अधिकार व हित को बनाये रखना और कुछेक देशों की उत्तेजनापूर्ण हरकतों पर जवाबी प्रहार करना अत्यावश्यक है ।
अमरीका ने अनेक बार कह दिया है कि वह दक्षिण सागरीय प्रमुसत्ता से जुड़े विवादास्पद सवालों पर कोई पक्षपातपूर्ण रुख नहीं अपनाता । पर सान शा शहर की स्थापना पर अमरीका ने क्यों चीन से भला बुरा कहा और दखल भी दिया । इस के पीछे अमरीका का स्वार्थ छिपा हुआ है ।
पिछले बीस सालों में विशेषकर नयी सदी में प्रविष्ट होने के बाद आशियान समेत पास प़ड़ोस देशों के साथ चीन के संबंधों का तेज विकास हुआ है । पर अमरीका आतंक विरोधी लड़ाई और इराक व अफगान युद्धों में फंस पड़ा है और प्रशांत एशिया क्षेत्र में प्रमुख स्थान खोने पर काफी चिन्तित है , इसलिये उस ने प्रशांत एशिया रणनीति को व्यवस्थित करने में तेजी लायी है , अतः दक्षिण पूर्वी एशिया अमरीका का तथाकथित प्रशांत एशिया पुनः वापसी रणनीति का सब से महत्वपूर्ण भाग बन गया है । दक्षिण सागर सवाल अमरीकी क्षेत्रीय मौजूदगी को मजबूत बनाने और चीन के प्रभाव को सीमित कर अपने रणनीतिक हित को विस्तृत करने के लिये एक अहम शुरुआती बिंदु ही है ।
अमरीका ने दक्षिण सागर मामले में दखल देने के लिये मुक्त जहाजरानी मुद्दा मनगढंत बनाया और चीनी खतरा दलील का खूब ढिंढोरा पीटा , ताकि दक्षिण सागर सवाल को अंतर्राष्ट्रीकरण बनाकर चीन व आशियान देशों के बीच कलह पैदा की जा सके ।
चीन पहले ही की तरह आशियान देशों के साथ संबंधों के विकास को महत्व देता रहेगा , साथ ही दक्षिण सागरी द्वीपों पर अपनी प्रभुसत्ता व समुदी अधिकारों व हितों को दृढ़ता से बनाये रखेगा । साथ ही चीन अमरीका के साथ नये आकार वाले बडे देशों के संबंध की स्थापना करने को कृतसंकल्प है , पर प्रादेशिक भूमि व प्रभुसत्ता से जुड़ने वाले अहम केंद्रीय हित सवाल पर दबाव का सामना करने में समर्थ भी होगा ।
दक्षिण सागर सवाल को बिगाड़ने से क्षेत्रीय शांति , स्थिरता और सहयोग को तोड़फोड़ किया जायेगा , अंत में अमरीका के अपने रणनीतिक हित को भी नुकसान ही होगा ।