चीन और अमेरिका के बीच मानवाधिकार के बारे में 17वीं बातचीत दो दिन के बाद 24 जुलाई को वाशिंगटन में समाप्त हुई। दोनों देशों ने कानून के मुताबिक प्रशासन, धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा श्रमिकों के अधिकारों समेत व्यापक विषयों पर खुल कर बातचीत की और अपनी अपनी चिन्ताएं भी स्पष्ट कर दीं। दोनों में सिद्धांत तौर पर सहमति भी प्राप्त हुई। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इस प्रकार की बातचीत से जाहिर है कि अमेरिका चीन संबंध परिपक्व हो गया है।
बातचीत के परिणाम से जाहिर है कि 17वें दौर की बातचीत में कुछ उपलब्धियां प्राप्त हुईं जिन की ऐसी स्पष्ट विशेषताएं पायी गयी हैं।
एक, कार्यविधि की दृष्टि से मौजूदा बातचीत और अधिक संतुलित और संपूर्ण हुई है। बातचीत किसी विशेष मसले में उलझे न होकर कानून के मुताबिक प्रशासन, व्यक्तिगत न्याय और सामाजिक समानता जैसे गहन अर्थ वाले अहम सवालों पर केन्द्रित है । सामाजिक सवाल को दोनों देशों के बीच मानवाधिकार बातचीत में शामिल किये जाने से मानवाधिकार के मायने और अधिक व्यापक हो गए है, साथ ही वह चीन समर्थित मानवाधिकार धारणा और मानवाधिकार विकास सिद्धांत से मेल खाता है। अमेरिका द्वारा विकास के अधिकार को मानवाधिकार सवाल में शामिल किए जाने से जाहिर है कि मानवाधिकार के बारे में अमेरिका की अवधारणा में भी प्रगति हुई है, फिर भी अमेरिका को अपनी इस अवधारणा को और स्पष्ट कर देना चाहिए।
दो. चीन और अमेरिका के बीच मानवाधिकार पर बातचीत मोल-तौल की अवस्था से निकल कर आदान प्रदान व एक दूसरे से सीखने के दौर में दाखिल हुई है। अमेरिका हमेशा अपने को मानव स्वतंत्रता व लोकतंत्र का प्रकाश स्तंभ मानता आया है और मानवाधिकार सवाल का राजनीतिकीकरण करने और दूसरे देशों की मानवाधिकार स्थिति पर अनुचित समीक्षा करने के आदी है। यह सर्वविदित है कि लम्बे अरसे से अमेरिका मानवाधिकार सवाल को लेकर चीन पर दबाव डालने की कोशिश करता रहता है और उसे अपने राजनीतिक हित पाने का एक साधन बनाता है। लेकिन मौजूदा बातचीत में सामाजिक विषय शामिल करने से बातचीत में समानता का स्वरूप प्रकट हुआ। जैसाकि अमेरिका में जनसंख्या में 1 प्रतिशत धनी तथा 99 प्रतिशत निर्धन होने की संपत्ति की असमान विवरण समस्या मौजूद है, वहां चीन में भी अमीरी व गरीबी में अन्तर बढ़ने की समस्या सामने आयी। इससे पूरी तरह साबित हुआ है कि मानवाधिकार की समस्या हर जगह होती है, इस में सब से अच्छा मानवाधिकार मॉडल नहीं है। अमेरिका को भी अपने मानवाधिकार मामले पर गहन रूप से सोच विचार करना चाहिए, जैसाकि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति कार्टर ने न्यूयार्क टाइम्स में छपे अपने लेख में कहा कि मानवाधिकार सवाल पर गंदी कार्यवाहियों के कारण अमेरिका विश्व मानवाधिकार रक्षक की भूमिका से वंचित हो रहा है और उसमें ड्रोन विमान के दुरूपयोग तथा कैदियों को यातनाएं देने की सिलसिलेवार नीतियां व हरकतें शामिल हैं।
तीन, मानवाधिकार बातचीत को चीन व अमेरिका के बीच रचनात्मक सहयोग व साझेदारी संबंध के ढांचे में शामलि किया गया है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बातचीत के पूर्व आयोजित न्यूज ब्रिफींग में कहा कि चीन अमेरिका मानवाधिकार बातचीत चीन अमेरिका के व्यापक सहयोग व मजबूत साझेदारी संबंध का एक अंग बन गयी है। इस का मतलब है कि मानवाधिकार सवाल पर चीन और अमेरिका के बीच मतभेद होने के साथ परस्पर सहयोग की गुंजाइश भी उपस्थित है। जबकि चीन अब चीन और अमेरिका के बीच नये ढंग के बड़े देश संबंध की स्थापना करने में जु़टा है और मानवाधिकार सवाल को दोनों देशों की रचनात्मक साझेदारी संबंध के ढांचे में सम्मिलित किया है। वास्तव में यह दोनों देशों द्वारा मतभेदों का समाधान करने की एक नयी कोशिश है और व्यवस्थागत तरीके से मानवाधिकार को चीन अमेरिका संबंध को नुकसान पहुंचाने से रोकने की एक कोशिश है।
बेशक, चीन और अमेरिका के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्रों में काफी भिन्नता मौजूद है, इसलिए दोनों में मानवाधिकार के संदर्भ में भी बड़ा मतभेद है। ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि अल्प समय में इन मतभेदों और भिन्नताओं को मिटाया जाए। फिर भी दोनों में मानवाधिकार का लक्ष्य ज्यादा फर्क नहीं है, सिर्फ मानवाधिकार का लक्ष्य पाने के विकल्प और तरीके अलग है, यदि दोनों देश परस्पर समझ बढ़ाने, मतभेदों को कम करने तथा सहमति बढ़ाने की भावना में समानता व आपसी सम्मान के आधार पर बातचीत जारी रखेंगे, तो मानवाधिकार सवाल का समाधान करने में दोनों तरफ सफलता मिलने की स्थिति पैदा हो सकेगी।