नयी सदी में प्रविष्ट होने के बाद अमरीका , जापान और कोरिया गणराज के बीच संघर्ष तीव्र रुप ले रहा है । इधर दिनों में जब कोरिया गणराज्य व जापान के बीच फौजी सूचना संरक्षण समझौता संपन्न होने ही वाला है , तो कोरिया गणराज्य ने अचानक इस समझौते के हस्ताक्षर को अस्थायी तौर पर बंद करने का फैसला कर लिया । यह समझौता फिर कब संपन्न होगा , दोनों देशों ने अभी तक अंतिम तिथि निश्चित नहीं की । कोरिया गणराज्य ने कुटनीतिक दबाव पर परवाह न कर जापान के साथ इस प्रथम सामरिक समझौते के हस्ताक्षर को अस्थायी तौर पर बंद करने का जो फैसला किया है , उस से स्पष्टतः जाहिर है कि उत्तर पूर्वी एशियाई फौजी स्थिति की स्थापना के मामले पर अमरीका , जापान व कोरिया गणराज्य के बीच छीना झपटी जबरदस्त है । जब यह सामरिक समझौता संपन्न होगा , तो इस से उत्तर पूर्व एशियाई फौजी स्थिति की स्थापना और पूर्वी एशियाई क्षेत्र में अमरीका के प्रभुत्ववादी स्थान की रक्षा के लिये दूरगामी प्रभाव डाला जायेगा ।
सर्वप्रथम कोरिया गणराज्य व जापान को इस सामरिक समझौते के हस्ताक्षर को बढावा देना कोरिया व जापान की केंद्रत्यागी प्रवृति को कमजोर करने का अमरीका का महत्वपूर्ण पहल है । शीत युद्ध की समाप्ति के चलते राष्ट्रीय हित संघर्ष कदम ब कदम वैचारिक संघर्ष पर हावी हो गया है । अमरीका के अतीत के संश्रयकारी जापान व कोरिया गणराज्य और अमरीका के बीच अंतरविरोध लगातार तीव्र रुप ले चुके हैं , जापान व कोरिया गणराज्य के बीच अंतरविरोध व टक्करें भी दिन ब दिन प्रकाश में आयी हैं । यह उत्तर पूर्व एशियाई क्षेत्र में अमरीका के सर्वोच्च हितों के लिये लाभदायक नहीं है । इसलिये अमरीका ने चोनान घटना के सहारे अपने पर कोरिया गणराज्य व जापान दोनों देशों की निर्भरता बढाने की कोशिश की और इन दोनों देशों को अपने फौजी संबंध मजबूत बनाने के लिये प्रोत्साहन भी दिया । वर्तमान में अमरीका ने इसी मकसद को पूरा करने में प्रारम्भिक परिणाम प्राप्त कर लिया है ।
दूसरी तरफ कोरिया गणराज्य व जापान के बीच अंतरविरोध दूर करना कठिन है , यह एक निर्विदाद तथ्य ही है । शीत युद्ध के दौरान जापान व कोरिया गणराज्य उत्तर पूर्वी एशियाई क्षेत्र में अमरीका का अत्यंत महत्वपूर्ण संश्रयकारी देश ही हैं । लेकिन इन दोनों देशों के बीच तरह तरह अंतरविरोध फिर भी मौजूद हैं , जिस से उत्तर पूर्वी एशियाई क्षेत्र में इन तीनों देशों के सामरिक गठबंधन करने का अमरीका का मकसद बाधित हो गया है । शीत युद्ध के बाद कोरिया गणराज्य व जापान अपने अपने देश के हित को भारी महत्व देने लगे हैं , उन के बीच मौजूद अंतरविरोध लगातार तेज से तेजतर होने का आसार नजर आया है । कोरिया गणराज्य को उम्मीद है कि जापान उपनिवेशी आक्रमण व युद्ध आदि ऐतिहासिक मामलों और प्रादेशिक भूमि के विवाद जैसे सवालों पर अपना रुख बदलेगा । लेकिन जापान का सुधारने का कोई इरादा नहीं है । इस से जाहिर है कि दोनों देशों के बीच अंतरविरोध दूर करना कठिन है । पर कोरिया गणराज्य व जापान के बीच मौजूद अंतरविरोध उत्तर पूर्वी एशियाई क्षेत्र में अमरीका की नयी सामरिक स्थिति की स्थापना के लिये फायदेमंद नहीं है , यह अमरीका देखना भी नहीं चाहता ।
तीसरी तरफ अमरीका को उत्तर पूर्वी एशियाई क्षेत्र में नयी सामरिक स्थिति की स्थापना के लिये कोरिया गणराज्य व जापान को एकता के सूत्र में बांधना जरूरी है । सारी दुनिया में प्रभुत्व जमाने का अमरीका का सामरिक फोकस एशिया प्रशांत क्षेत्र की ओर स्थानांतरण के साथ साथ अमरीका की समूची एशिया प्रशांत सामरिक स्थिति में उत्तर पूर्वी एशियाई क्षेत्रीय सामरिक स्थिति का भारी महत्व है । ओबामा के सत्ता पर आने के बाद अमरीका ने कोरिया गणराज्य व जापान को एकता के सूत्र में बांधने पर पूरा ध्यान लगाया है । इसबार अमरीका ने तीसरे देश की हैसियत से जापान कोरिया गणराज्य सामरिक समझौते में भाग नहीं लिया है , उस का मुख्य उद्देश्य यह है कि कोरिया गणराज्य व जापान इन दोनों देशों को प्रमुख स्थान पर रखा जाये और दोनों देशों को पूरा विश्वास और स्वतंत्र अधिकार दिया जाये । असल में कोरिया गणराज्य व जापान के बीच सूचनाओं का आदान प्रदान व संरक्षण आदि सवाल अमरीका के समर्थन के बिना सुचारु रुप से नहीं हो पाता है , अमरीका पर निर्भर रहने की जरुरत है । क्योंकि अमरीका व जापान संश्रयकारी देश हैं , जबकि अमरीका व कोरिया गणराज्य संश्रयकारी देश भी हैं , कोरिया गणराज्य व जापान के बीच सामरिक समझौता संपन्न करने के बाद अमरीका , जापान व कोरिया गणराज्य ये तीनों देशों के बीच वास्तव में एक त्रिपक्षीय गठबंधन संबंध स्थापित हुए हैं । यह अमरीका का कोरिया गणराज्य व जापान को सामरिक समझौता संपन्न करने के लिये प्रोत्साहन देने का असली मकसद ही है ।
अंत में जब उत्तर पूर्वी एशिय़ाई क्षेत्र में नयी सामरिक स्थिति पैदा होगी , तो पूर्वी एशिया में अमरीका का प्रभुत्ववादी स्थान भी मजबूत हो जायेगा । वर्तमान में कोरिया गणराज्य व जापान के बीच तीव्र अंतरविरोध व टक्करे फिर भी मौजूद हैं , एक अल्प समय में दोनों देशों के बीच यह सामरिक समझौता संपन्न करना मुश्किल है । क्योंकि अमरीका एशिया प्रशांत क्षेत्र को सारी दुनिया पर अपना प्रभुत्व जमाने का मुख्य क्षेत्र समझता है , इसलिये अमरीका जापान व कोरिया गणराज्य़ के बीच अंतरविरोधों को दूर करने के लिये विविधतापूर्ण कदम उठाय़ेगा , ताकि कोरिया गणराज्य जापान संबंध अमरीका के सारी दुनिया पर प्रभुत्व जमाने के लक्ष्य की सेवा कर सके । जब उत्तर पूर्वी एशियाई क्षेत्र में अमरीका .जापान व कोरिया गणराज्य का त्रिपक्षीय गठबंधन प्रकाश में आयेगा , तो पूर्वी एशियाई क्षेत्र में अमरीका का प्रभुत्ववादी स्थान सुदृढ़ हो जायेगा , यह अपनी एशिया प्रशांत नयी रणनीति को मूर्त रुप देने का अमरीका का कुंजीभूत कदम ही है ।