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ली च्यांग नगर के प्राचीन सू ह कस्बे की सैर
2012-06-18 16:54:44

प्राचीन चाय-घोड़ा मार्ग के बारे में श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम के अन्तर्गत आज आप मेरे साथ युन्नान प्रांत में ली च्यांग नगर के प्राचीन सू ह कस्बे की सैर पर जाएंगे।

सू ह प्राचीन कस्बा ली च्यांग प्राचीन नगर के उत्तर में स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि ली च्यांग आने के बाद अगर आप सू ह प्राचीन कस्बा नहीं जाते हैं तो ली च्यांग का भ्रमण भी अधूरा ही माना जाता है। सू ह के चारों तरफ घने जंगल हैं और कस्बे के पास सड़कों के पास कलकल बहती हुई नहरों की आवाज भी सुनी जा सकते है। सुबह-सुबह इस प्राचीन कस्बे के शांत मार्ग पर घूमते हुए ऐसा लगता है जैसे आप इतिहास के किसी पन्ने पर दूर निकल गये हों। लकड़ी के बने हुए घर, पत्थरों वाली गलियां, घरों के सामने बैठे हुए बूढ़े लोग सभी इस कस्बे की प्राचीन स्थिति से अवगत कराते हैं। आन ह्वी प्रांत से आए वांग भी इस कस्बे की सुंदरता में खो गए हैं।

मैं पहली बार ली च्यांग आया हूँ। यहां आने से पहले अपने मित्रों से सुना था कि यहां के बार बहुत ही आकर्षक होते हैं। बार का माहौल बहुत ही उत्साहजनक होता है। मुझे भी इसने बहुत आकर्षित किया है। लेकिन यहां आने के बाद मुझे पता चला कि मुझे यहां के प्राचीन इमारतों से ज्यादा लगाव हो गया है। यहां के प्राचीन इमारतों का रख-रखाव बहुत अच्छे तरीके से किया गया है। यहां घूमने के दौरान बहुत शांति व अमन महसूस होता है, यहां मुझे बहुत आरामदेह महसूस होता है। यहां के लोग भी काफी मिलनसार और ईमानदार हैं।

वास्तव में, प्राचीन चाय-घोड़ा मार्ग के एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में सू ह प्राचीन कस्बा का इतिहास भी बहुत शौर्यपूर्ण रहा है। वह कभी एक समृद्ध जगह थी, अब चीन के प्रथम चाय-घोड़ा मार्ग से संबंधित संग्रहालय यहीं पर स्थित है। इस संग्रहालय के संबंधित कर्मचारी पाय ची युवान ने हमारे संवाददाता से कहा कि, सू ह प्राचीन कस्बा चाय-घोड़ा मार्ग पर स्थित एक महत्वपूर्ण व्यापारिक पड़ाव है।

सू ह कस्बा युन्नान प्रांत व तिब्बत के बीच एक सीमांत इलाका है। युन्नान प्रांत के दक्षिण भाग से उत्तर-पश्चिम की ओर जाने वाले हरेक यात्री को इसी कस्बे से होकर गुजरना पड़ता है। सन् 690 से लेकर 1949 तक, एक हजार से भी ज्यादा साल तक यहां पर लोग घोड़े की मदद से व्यापार करते आते थे। जबकि सू ह कस्बा यहां पर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक पड़ाव के रूप में बहुत अहम था।

कहा जाता है कि, पुराने जमाने में यहां पर व्यापारी बड़ी संख्या में आते जाते थे, यात्रियों के ठहरने के सरायों और तरह तरह की दुकानों की संख्या तीस के आसपास पहुंची थी। इसी स्थल पर पले-बढ़े श्रीमान शि को अभी भी इस प्राचीन कस्बे के वैभव की याद है। उन्होंने बतायाः

हमलोग बचपन में जब घंटी की आवाज सुनते थे तो पता चल जाता था कि जरूर किसी व्यापारी का काफिला आ पहुंचा है। खासकर दोपहर बाद अकसर घोड़ों के काफिलों की तांता लगती थी। जब यहां पर व्यापारियों का काफिला रूकता था तब दोपहर बाद यहां पर चहल-पहल बढ़ जाता था। जैसे-जैसे रात ढ़लती थी यहां रौनकता और ज्यादा बढ़ जाती थी। पहले के जमाने में न तो बिजली होती थी, ना ही केरोसिन की लालटेन थी, लोग मशाल की रोशनी में खरीद-बिक्री करते थे। सू ह कस्बे में अनेक मनोहर परिदृश्य देखने को मिलते थे, रात्रि बाजार उनमें से एक था, रात में मशाल की रोशनी में मेला लगने का दृश्य बहुत ही आकर्षक था और तत्काल की समृद्धि का साक्षी भी था। श्रीमान शि ने तत्काल घोड़ा हांकने वालों के जीवन की याद में कहाः

पहले के जमाने के लोग बहुत ही कठिन जीवन जीते थे। लोग जबतक घोड़े पर सवारी करते थे तबतक तो आराम महसूस होता था लेकिन जब घोड़ा आराम करता था, तब उन्हें पैदल ही यात्रा करना पड़ता था। वहीं किसी जगह रूककर खाना बनाना और घोड़ा चराना पड़ता था और पानी भी ले जाना पड़ता था। इसलिए उस समय घोड़ा हांकने वाले लोग बहुत ही कष्टदायक जीवन बिताते थे।

अब प्राचीन कस्बे का काया पलट हो गया है, प्राचीन काल का दुर्गम मार्ग अब आधुनिक काल के सुगम मार्ग में परिवर्तित हो गया है, लेकिन हम उस समय के व्यापारियों की कष्टदायक यात्रा की कल्पना कर सकते हैं। वे लोग डकैती व महामरी जैसे अनेकों खतरों से जूझते हुए चाय-घोड़ा मार्ग पर व्यापार करने के लिए आते थे। महीनों सघन जंगल से गुजरते चलते थे, तेज धार वाली नदी में चमड़े की नावों पर सवार तैरते थे, खुली हवा में खाते और सोते थे, जीवन इतना दूभर था कि उनमें से बहुत से लोग अपने प्राण भी गवां देते थे। उस समय लोग रस्सी की सहायता से नदी पार करते थे। उस समय यहां आने वाले व्यापारियों के बीच एक कहावत प्रसिद्ध था कि चाय-घोड़ा मार्ग पर सिर्फ चूहे और पक्षी ही घने जंगल को पार कर सकते हैं। लेकिन उन लोगों ने साहस पूर्वक सघन जंगलों में भी रास्ता बना दिया था। घोड़े के गले में बंधी हुई घंटियों की आवाज के सहारे उन्होंने इस दुर्गम जंगल को पार करते हुए लोगों के लिए एक नया द्वार खोल दिया, जिस से लीच्यांग बाह्य दुनिया से जुड़ गया था। आज भी यहां के स्थानीय लोग, उस समय के व्यापारियों के साहस की प्रशंसा करते हैं।

उस समय व्यापारियों का काफिला बाहर जाकर व्यापार करते थे और वहां से कुछ नयी चीजें लेकर आते थे, जिससे हमारा जनजीवन भी प्रभावित होता था। साथ ही वे लोग वहां के रीती-रिवाजों को भी सीख कर आते थे। चाय भी बाहर से आया है। चाय पीना गरम पानी पीने से ज्यादा बेहतर है। और यह हरा पत्थर, यह भी बाहर से यहां आया है। उस समय भी हमें इस रंग का पत्थर देखने के बाद बहुत आश्चर्य होता था क्योंकि ली च्यांग में इस रंग का पत्थर नहीं पाया जाता है।

फैशनेबल पोशाक पहने हुए नासी जाति का लड़का हमारे रिकार्डिंग मशीन पर बातचीत करने में मशगूल था। उसके पोशाक से हमलोगों को समय के परिवर्तन का पता चला है, लेकिन उसके हावभाव में अभी भी वही प्राचीन रीति-रिवाजों की झलक दिखाई जाती है। उसने कहा कि, प्राचीन चाय-घोड़ा मार्ग एक अविस्मरणीय इतिहास है जिससे कभी भी भूला नहीं जा सकता है।

हमलोग इस प्राचीन मार्ग को कभी भी नहीं भूल सकते हैं। यह बाहरी दुनिया से संपर्क का एक महत्वपूर्ण मार्ग है। अगर यह मार्ग नहीं होता तो हमें हान जाति की संस्कृति से संपर्क नहीं हो पाता। अगर यह मार्ग नहीं होता, घोड़ों का काफिला नहीं होता तो आज यह जीवन भी इस तरह का नहीं होता। यह प्राचीन सभ्यता भी नहीं होती।

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