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ओबामा की आकस्मिक अफगान यात्रा
2012-05-02 16:29:42

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पहली मई की रात को अफगानिस्तान की आकस्मिक यात्रा की और अफगान राष्ट्रपति करजई के साथ अमेरिका अफगान रणनीतिक साझेदारी संबंध के बारे में समझौते पर हस्ताक्षर किए।

पहली मई की रात को, ओबामा और करजई ने काबुल में स्थित राष्ट्रपति भवन में समझौते पर हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर रस्म के बाद ओबामा ने बोलते हुए कहा कि अमेरिका अफगान रणनीतिक साझेदारी संबंध समझौता भावी दस सालों में आतंक विरोधी कार्य और लोकतांत्रिक निर्माण के क्षेत्र में अमेरिका और अफगानिस्तान के सहयोग पर आधारित है जो एक ऐतिहासिक महत्व रखने वाला दस्तावेज है और जिस ने अमेरिका अफगान संबंध में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। श्री ओबामा ने अपने भाषण में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के हटने की नीति दोहरायी और कहा कि अभी अफगानिस्तान में शेष 23 हजार अमेरिकी सैनिक इस साल की गर्मियों से धीरे धीरे हट जाएंगे और 2014 के अंत तक अफगानिस्तान में सुरक्षा का जिम्मा पूरी तरह अफगान लोग निभाएंगे। श्री करजई ने कहा कि इस समझौते से दोनों देशों के बीच समानता का संबंध निश्चित होगा।

इससे पहले, अफगान सरकार और अमेरिका सरकार के बीच लम्बे समय तक वार्ता चली और क्रमशः 9 मार्च व 8 अप्रैल को इस समझौते का प्रारूप बनाया गया और 2014 में नाटो सेना की वापसी के बाद दोनों पक्षों के सहयोग मामलों का बंदोबस्त किया गया। पहली मई को ह्वाइट हाउस ने अपने वक्तव्य में कहा कि अमेरिका अफगान रणनीतिक साझेदारी संबंध समझौते के मुताबिक अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में ठहर सकेगी और अफगान सेना को अल कायदा की शेष शक्तियों का दमन करने में ट्रेनिंग देगी। इस केलिए दोनों पक्ष द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर वार्ता पुनः शुरू करेंगे और अमेरिका अफगान को अहम गैर नाटो मित्र देश का दर्जा देगा। ह्वाइट हाउस ने कहा कि अमेरिका अफगानिस्तान में स्थाई सैनिक अड्डा कायम करने की कोशिश नहीं करेगा, लेकिन रणनीतिक साझेदारी संबंध समझौते के अनुसार अमेरिका 2014 के बाद भी अफगानिस्तान में संबंधित सरअंजामों का इस्तेमाल कर सकेगा।

ओबामा बिन लादन को मारे जाने की वर्षगांठ के मौके पर अफगान पहुंचे, इससे व्यापक ध्यान आकर्षित हुआ। पिछले साल के 2 मई को अमेरिकी सेना के द्वारा बिन लादन को गोली से मारने और इस के बाद पैदा हुई विभिन्न नकारात्मक घटनाओं के कारण अमेरिका अफगान संबंध में काफी तनाव आया। 2001 के अक्तूबर में अमेरिका द्वारा अफगान युद्ध छेड़े जाने के बाद अमेरिका सरकार पर भारी वित्तीय बोझ पड़ा, युद्ध के बाद पिछले दस सालों में अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक मंदी और खराब सुरक्षा स्थिति बनी रहती है, जन जीवन और अधिक दुभर हो गया है। इस युद्ध से करीब 2000 अमेरिकी सैनिक मारे गए और वहां अमेरिका व नाटो की सेना पर सुरक्षा की स्थिति अधिकाधिक खराब हुई और सैनिकों में मनोबल गिरता चला गया, इसतरह अमेरिका में इस युद्ध की समर्थन दर लगातार घटती चली गयी ।

विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे मौके पर ओबामा ने इसलिए दूर दूर से आकर अफगानिस्तान की यात्रा की है, इस के तीन कारण हैं, एक, दस सालों तक चले युद्ध में अमेरिका के योगदान पर बल दिया जाए और अमेरिकी सैनिकों के मनोबल को प्रोत्साहित किया जाए। दो, ओबामा ने समझौते पर हस्ताक्षर रस्म के बाद टीवी भाषण देते हुए अफगानिस्तान व आतंक विरोधी काम में उन की अपनी उपलब्धियों का प्रचार प्रसार किया, वे चाहते हैं कि इस से अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में उन की समर्थन दर बढ़ जाए। इसके अलावा वे चाहते हैं कि रणनीतिक साझेदारी संबंध समझौते के जरिए अफगान व पाकिस्तान आदि देशों को यह बताएंगे कि अमेरिका 2014 में अफगानिस्तान से नाटो सेना के हट जाने के बाद भी इस क्षेत्र की सुरक्षा व स्थिरता की जिम्मेदारी निभालेगा।

लेकिन अमेरिका अफगान रणनीतिक साझेदारी संबंध समझौते में अनसुलझे अनेक सवाल हैः 2014 में नाटो सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान को सुरक्षा में मदद देने के लिए अमेरिका की कितनी सैनिक शक्ति बरकरार की जानी चाहिए, इस काम के लिए जो खर्च होगा, वह किस किस में बंटेगा और किस तरह बंटेगा। इस के अलावा अफगानिस्तान अभी तक अमेरिकी ड्रोन यानी संचालक रहित विमान के सीमा पार ऑपरेशन के लिए अमेरिका की मांग और अमेरिकी सैनिकों को विमुक्तता अधिकार देने से इनकार करता आया है। सूत्रों के अनुसार इन सवालों पर अगले महीने शिकागो में होने वाले नाटो शिखर सम्मेलन में चर्चा होगा।

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