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चीन व यूरोप को आपसी समझदारी बढाने और गलतफहमी से बचने देने के लिये कारगर कदम उठाना चाहिये
2012-04-27 17:02:15

2009 के बाद चीन व यूरोप दोनों पक्षों के सर्वोच्च नेताओं ने एक दूसरे के यहां की जो ताबड़तोड़ यात्राएं की हैं , उस से पूर्ण रुप से साबित हो गया है कि चीन यूरोप संबंध स्थिर व स्वस्थ पथ पर चल निकला है । ऐसी पृष्ठभूमि में 20 से 27 अप्रैल तक चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ आइसलैंड , स्वीडन और पोलैंड की यात्रा पर गये और जर्मनी की हनोवर औद्योगिक मेले में शरीक हुए , निस्संदेह इस से चीन व यूरोप के सर्वांगीर्ण रणनीतिक साझेदार संबंध को बढावा देने में नयी जीवंत शक्तियों का संचार किया गया है ।

सर्वप्रथम , इस यात्रा ने अनेक प्रथम बना दिये हैं । मसलन प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने आइसलैंड की जो यात्रा की , वह चीन व आइसलैंड के बीच राजनयिक संबंध की स्थापना के पिछले 41 सालों में किसी चीनी प्रधान मंत्री की पहली यात्रा ही है । प्रधान मंत्री वन चा पाओ की स्वीडन की यात्रा पिछले 28 सालों में किसी चीनी प्रधान मंत्री की पहली यात्रा और पोडैंल की यात्रा पिछले 25 सालों में किसी चीनी प्रधान मंत्री की पहली यात्रा भी मानी जाती है । प्रधान मंत्री वन चा पाओ हनोवर औद्योगिक मेले में उपस्थित हुए हैं , जबकि जर्मन प्रधान मंत्री मर्कल ने चालू वर्ष के फरवरी में चीन की यात्रा की , यह दोनों देशों के संबंध में पहली बार भी है कि दोनों प्रधान मंत्रियों ने तीन माहों से कम समय में एक दूसरे के यहां का दौरा कर लिया है ।

दूसरी तरफ , मौजूदा यात्रा कर्ज संकट को काबू में पाने के यूरोप के विश्वास को मजबूत बनाने के लिये लाभदायक है । ग्रीस में शुरु यूरोपीय कर्ज संकट दो साल से अधिक समय बरकरार रहा है , जिस से यूरोपीय व वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर भारी नकारात्मक असर ही नहीं , बहुत ज्यादा यूरोपियों के जीवन पर भी कुप्रभाव पड़ गया है । संकट घटित होने के बाद चीन ने स्पष्टतः यह कह दिया है कि वह यूरोप को संकट पर नियंत्रण करने में यथासंभव मदद देने को तैयार है और यह पक्का विश्ववास करता है कि यूरोप कठिनाइयों को दूर करने में बिलकुल सक्षम भी है । विश्व आर्थिक मंच पर चीन का महत्वपूर्ण स्थान स्थापित हुआ है , इसलिये चीन का रवैया यूरोप के लिये फायदेमंद है । ऐसा कहा जा सकता है कि चीन की मदद के बिना यूरोपीय कर्ज संकट और भीषण रुप लेगा । वन चा पाओ की मौजूदा यूरोपीय यात्रा ने चीन व आइसलैंड, स्वीडन , पोलैंड और जर्मनी के द्विपक्षीय आर्थिक व व्यापारिक संबंधों को बढावा दिया है , साथ ही यह यात्रा यूरोपीय कर्ज संकट स्थिति में शैथिलय लाने के लिये मददगार भी है ।

तीसरी तरफ यह मौजूदा यात्रा चीन व यूरोप के सर्वांगीर्ण साझेदार संबंध के विकास के लिये हितकर है । आइसलैंड चीन के बाजार आर्थिक स्थान को मान्यता देने वाला प्रथम यूरोपीय देश है और चीन के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र पर वार्ता करने वाला प्रथम यूरोपीय देश भी है . वन चा पाओ के आइसलैंड के दौरे पर दोनों देशों ने उत्तरी ध्रुवीय सहयोग के ढांचागत समझौता आदि दस्तावेज संपन्न किये । स्वीडन सब से पहले चीन के साथ राजनयिक संबंध की स्थापना करने वाला पश्चिमी देश है , चीन एशिया में स्वीडन का सब से बड़ा व्यापार साझेदार और महत्वपूर्ण आर्थिक सहयोगी संश्रयकारी बन गया है । स्वीडन की यात्रा के दौरान दोनों देशों के नेताओं ने अनेक क्षेत्रों में ठोस सहयोग जैसे मामलों पर व्यापक रुप से विचार विमर्श किया और विविध अहम सुझाव व कदम भी पेश किये हैं । पोलैंड सब से पहले चीन के साथ राजनयिक संबंध की स्थापना करने वाले यूरोपीय देशों में से है और वह प्रथम पूर्वी यूरोपीय देश भी है , दोनों देशों की व्यापार रकम दस अरब अमरीकी डालर से अधिक हो गयी है । यात्रा के दौरान इन दोनों देशों के नेताओं ने अपने रणनीतिक साझेदार संबंध को गहराई में ले जाने पर महत्वपूर्ण मतैक्य प्राप्त किया । जर्मनी में ठहरने के दौरान प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने हनोवर औद्योगिक मेले के उद्घाटन समारोह में भाग लिया और बाजार के विस्तार व व्यापार संरक्षणवाद के विरोध समेत अनेक प्रस्ताव पेश किये , ताकि दोनों देशों का ठोस सहयोग बेहतर ढंग से आगे बढ़ सके ।

यह बताना भी जरूरी है कि हालांकि चीन व पूरोप संबंध स्थिर रुप से बढ़ता गया है , पर कुछ बाधाएं फिर भी मौजूद हैं । उदाहरण के लिये अभी तक यूरोपीय संघ ने चीन के बाजार आर्थिक स्थान को मान्यता नहीं दी है । यूरोप में चीन की पूंजी निवेश का विस्तार एक पारस्परिक लाभ वाली हरकत है , यह यूरोप को कर्ज संकट से बाहर उबारने के लिये लाभदायक ही नहीं , मेजबान देशों में ज्यादा रोजगार मौके भी पैदा होते हैं ।

आपसी समझदारी की कमी से चीन यूरोप संबंध के विकास पर बड़ा कुप्रभाव पड़ा है । एक दूसरे की गलत पहचान से दोनों पक्षों के बीच अकसर अनावश्यक गलतफहमियां उत्पन्न हो गयी हैं ।

बेशक , आपसी समझदारी की मजबूती कहने में आसान है , पर उसे मूर्त रुप देना काफी मुश्किल है , लेकिन चीन व यूरोप दोनों पक्षों के लिये इसी लक्ष्य को साकार बनाने में तमाम कारगर कदम उठाना और विभिन्न पहलुओं व क्षेत्रों में सम्पर्क बनाना और आवाजाही करना जरूरी है ।

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