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अमरीका और अफगानिस्तान के बीच रणनीतिक साझेदारी समझौते का मसौदा
2012-04-24 16:41:02

डेढ़ साल की वार्ता के बाद अमरीका और अफगानिस्तान ने 22 अप्रैल में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में दोनों देशों के भावी रणनीतिक साझेदार संबंधों के बारे में समझौते का मसौदा संपन्न किया । विश्लेषकों का मानना है कि यह समझौता आगामी 2014 में अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की वापसी के बाद दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों के लिये नीव डाल देगा ।

इस से पहले अफगानिस्तान ने अमरीका के नियंत्रित बागलाम जेल को पूरी तरह अपने काबू में पाने की मांग की और अमरीका की विशेष टुकड़ियों से तालिबान की सशस्त्र शक्तियों पर विवादास्पद आकस्मिक रात्रि प्रहार को बंद करने की अपील भी की । साथ ही अफगानिस्तान ने अमरीका से यह मांग भी पेश की है कि वह अफगान प्रादेशिक भूमि पर पाकिस्तान समेत पड़ोसी देशों के खिलाफ चालक रहित विमान द्वारा हवाई प्रहार न किया जाये । अमरीका अफगानिस्तान की उक्त मांगों पर राजी हुआ , तभी रणनीतिक साझेदार संबंधों के बारे में इस द्विपक्षीय वार्ता में प्रगति हो पायी ।

इस समझौते के अनुसार अमरीका आगामी 2014 के अंत में नाटो की सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान में निश्चित संख्या में सैनिक बनाये रखेगा , इस समझौते की अवधि दस साल की है । अमरीका अफगानिस्तान से अपनी सेना की वापसी के दस साल में अफगानिस्तान को फौजी व वित्तीय समर्थन देता रहेगा , ताकि अफगानिस्तान को सुरक्षा और आर्थिक वातावरण को सुधारने में हाथ बटाया जा सके । इस समझौते का मसौदा तभी प्रभावी होगा , जबकि दोनों देशों की संसद और राष्ट्रपति इस की पुष्टि कर दें । अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्पांटा ने कहा कि इस समझौते के हस्ताक्षर से अफगानिस्तान के लिये विश्वसनीय सुरक्षा गारंटी प्रदान की गयी है । अमरीका ने अफगानिस्तान के भीतरी क्षेत्रों से दूसरे देशों के खिलाफ हमला न बोलने का आश्वासन भी दिया है । स्पांटा ने यह संकेत दिया है कि अमरीका ने समझौते के मसौदे में जोर देते हुए कहा है कि अमरीका अफगान मामलात में किसी दूसरे देश के दखल पर चिन्तित है , यदि इसी प्रकार वाला दखल होगा , तो अमरीका इस बात पर कुटनीतिक , राजनीतिक , आर्थिक , यहांतक कि फौजी माध्यमों समेत उचित प्रतिक्रिया कर देगा । बेशक , अमरीका के लिये कोई कार्यवाही करने से पहले अफगानिस्तान से सहमति प्राप्त करना आवश्यक है । स्पांटा को उम्मीद है कि अफगान सांसद शीघ्र ही इस समझौते की पुष्टि करेंगे । अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने यह आशा जतायी कि दोनों पक्ष आगामी मई में नाटो के शिकागो शिखर सम्मेलन के आयोजन से पहले इस समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे ।

हालांकि वर्तमान में अमरीका और अफगानिस्तान दोनों देशों ने इस समझौते के ठोस विषय का संकेत नहीं दिया है , लेकिन विश्लेषकों ने फिर भी यह कहा है कि इस समझौते का प्रारुप अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की वापसी के रणनीतिक विन्यास के लिये निहायत जरुरी है , जिस से सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान में तैनात अमरीकी सैनिकों की कार्यवाहियों और अफगानिस्तान को प्रदत्त अमरीकी आर्थिक सहायता के लिये दिशा निर्दिष्ट की गयी है । अमरीका ने इस समझौते के प्रारुप के माध्यम से नाटो संश्रयकारी देशों के प्रति अफगानिस्तान पर अपना भावी नीतिगत रुख प्रकट किया है , ताकि नाटो संश्रयकारी देशों से समर्थन प्राप्त किया जा सके । इस से पहले अफगानिस्तान पर अमरीका की अस्पष्ट नीति की वजह से कुछ देश अफगानिस्तान में नाटो की भावी कार्यवाही में भाग लेने के बारे में आरक्षित रुख अपनाये हुए हैं । इस समझौते के प्रारुप के हस्ताक्षर के बाद पश्चिमी राजनयिकों ने कहा कि अमरीका के संश्रयकारी देश अफगान मामलात को लेकर संबंधित वचन देने को तैयार होंगे ।

लेकिन विश्लेषकों ने यह भी कहा है कि अमरीका और अफगानिस्तान कुछ कुंजीभूत सवालों पर बिलकुल सहमत नहीं हो पाये हैं । अमरीका की दृष्टि से देखा जाये , तो उस का प्रत्याशित लक्ष्य अभी पूरी तरह साकार नहीं हो पाया है , अमरीका व अफगानिस्तान दोनों पक्षों के लिये आगामी 2014 के अंत से पहले दूसरा समझौता संपन्न करना भी जरूरी है । जबकि अफगानिस्तान के लिये सब से चिन्ताजनक बात यह है कि आर्थिक सहायता की रकम और तफसीलें अभी भी मालूम नहीं है । अफगान राष्ट्रपति कर्जाई ने कहा कि उन्होंने अमरीका से यह अपील की है कि वह अपनी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान को हर वर्ष 20 करोड़ अमरीकी डालर की फौजी सहायता देने का लिखित वचन दे। इस बात की चर्चा में अमरीकी अधिकारी ने कहा कि संसद की अनुमति मिलने के बाद अमरीका हर वर्ष अफगान सेना को ज्यादा से ज्यादा 40 करोड़ अमरीकी डालर सहायता प्रदान कर सकता है । पर अमरीका ने यह भी कहा कि रणनीतिक समझौता तफसील सवालों समेत कोई सहायता योजना नहीं है , वह दोनों पक्षों के भावी सहयोग का विस्तृत ढांचा ही है । विश्लेषकों का अनुमान है कि सहायता से संबंधित तफसील सवाल 20 मई में होने वाले नाटो शिकागो शिखर सम्मेलन में निश्चित किये जायेंगे ।

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