भारत ने 19 अप्रैल को अग्नि पांच मिसाइल का सफल परीक्षण किया। इस पर चीनी सेना के कई मेजर जनरलों ने समीक्षा करते हुए कहा कि इस मिसाइल के सफल प्रक्षेपण से भारत की बड़े देश बनने की महाकांक्षा और पूर्व की ओर बढ़ने की नीति को बढ़ावा मिला है, लेकिन उन्होंने इस पर बल दिया है कि चीन और भारत को शांति व साझा विकास के लिए सहयोग मजबूत करना चाहिए।
भारतीय मिसाइल अग्नि पांच के रैंज में एशिया का अधिकांश भाग, आधा यूरोप तथा हिन्द महासागर का एक भाग आता है, इस का असर दक्षिण एशिया के बाहर पर भी पड़ेगा। अपनी इस सफलता के सहारे भारत अन्तर्महाद्वीपीय मिसाइल क्लब में शामिल हुआ है। सुप्रसिद्ध चीनी सैनिक विशेषक्ष मेजर जनरल श्री येन च्वो ने इस पर टीका-टिपण्णी करते हुए कहा कि निसंदेह, यह एक सामरिक बम के साथ एक राजनीतिक बम भी है। उन का कहना हैः
अग्नि पांच की सफलता से भारतीय सेना की शक्ति, राष्ट्रीय रक्षा निर्माण और सैनिक साजोसामान के विकास को बड़ी प्रेरणा मिलेगी। हालांकि इस प्रकार के मिसाइल के अनुसंधान व निर्माण में रूस, इजराइल और अन्य देशों की मदद मिली है, फिर भी इस से जाहिर है कि अग्नि पांच का स्वदेशीकरण, खासकर रणनीतिक शस्त्रों का स्वदेशीकरण बहुत उच्च स्तर पर पहुंचा है, इससे भारत में राष्ट्रीय रक्षा में वैज्ञानिक तकनीकी विकास के लिए विश्वास बहुत बढ़ा है और मनमोहन सिंह सरकार का स्थान भी मजबूत हुई है।
भारत के बैलिस्टिक मिसाइल गोदाम में पृथ्वी और अग्नि दोनों प्रकार के मिसाइल प्रमुख हैं, 5000 किलोमीटर के रैंज वाले अग्नि पांच के विकास से बड़ा देश बनने के लिए भारत की महाकांक्षा को बल मिला है, क्योंकि अब भारत के न्यूक्लियर डिटेरंस में चीन, रूस और कुछ यूरोपीय देश भी शामिल हो गए। इस की चर्चा में श्री येन च्वो ने कहाः
अग्नि पांच की सफलता से निश्चय ही भारत की रणनीतिक न्यूक्लियर डिटेरंस शक्ति बढ़ गयी। क्योंकि अग्नि पांच जैसा बड़ा मिसाइल जरूर न्यूक्लियर बम ले जाने के लिए बनाया गया है, उस के 5000 किलोमीटर के रैंज के भीतर चीन, रूस, कुछ यूरोपीय देश और अन्य न्यूक्लियर शस्त्र रखने वाले देशों के प्रति भारत की रणनीतिक डिटेरंस की विश्वसनीयता खासा बढ़ गयी।
यह सर्वविदित है कि भारत ने भारत का हिन्द महासागर वाला नारा पेश किया है, इसकेलिए उस ने किराये पर रूसी आक्रामक न्यूक्लियर पनडुब्बी ले लिया। इस कथनी व करनी में यह अर्थ निहित है कि शीत युद्ध के बाद अपनी भौगोलिक श्रेष्ठता के सहारे भारत को अमेरिका से कुछ लाभ मिला है।
लेकिन चीनी राष्ट्रीय रक्षा प्रतिष्ठान के प्रोफेसर, मेजर जनरल जी मिंग क्वी के ख्याल में हिन्द महासागर में भारत की शक्ति बढ़ने पर अमेरिका मौन नहीं रखेगा। उन्हों ने कहाः
पहले जब भारत ने नाभिकीय परीक्षण किया था, अमेरिका और पश्चिम ने भारत पर प्रतिबंध लगाया था। सिर्फ 11 सितम्बर घटना के बाद आतंकवाद विरोध के लिए अमेरिका ने भारत को बड़े न्यूक्लियर देश के रूप में माना और प्रतिबंध की जगह मौन सहमति का रूख ले लिया। अमेरिका भारत के विकास को कितनी हद तक सह सकता है, वह हिन्द महासागर पर नियंत्रण के लिए उस के कितने बड़े संकल्प पर निर्भर करता है।
मेजर जनरल के विचार में हालांकि अग्नि पांच अमेरिका की प्रादेशिक भूमि के लिए कोई खतर नहीं बनता है, लेकिन इस प्रकार के मिसाइल का प्रक्षेपण अमेरिका की अप्रसार नीति के विरुद्ध है।
नयी शताब्दी में भारत ने पूर्व की ओर बढ़ने की नीति अपनायी और अपनी महाकांक्षा दिखाई, अखिरकार उस के इस सफल प्रक्षेपण का उस की पूर्व की ओर बढ़ने की नीति पर क्या प्रभाव पडे़गा। मेजर जनरल जी मिंग क्वी ने कहाः
अब भारत की बुनियादी शक्ति काफी बढ़ी है और वह पूर्व की ओर बढ़ने का सपना लम्बे समय से देखता आया है। पहले तो वह आर्थिक तौर पर है और आज उसके पास रणनीतिक शस्त्र प्राप्त है, उस की नियंत्रण शक्ति जरूर बढ़ गयी है। हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री ने यह भी कहा था कि दक्षिण चीन सागर सारी दुनिया की संपत्ति है।
भारत का पड़ोसी देश होने के नाते चीन नहीं चाहता है कि चीन और भारत के बीच टक्कर हो। यद्यपि अग्नि पांच को लेकर भारत के कुछ लोगों व मीडिया ने अग्नि पांच को चीन के प्रति घातक की संज्ञा भी दी, तथापि अग्नि पांच के प्रक्षेपण के ही दिन चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि चीन और भारत अहम विकासशील देश व नवोदित अर्थव्यवस्था के रूप में प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं, सहयोगी हैं।
चीनी मेजर जनरल ने कहा कि इस से चीन भारत संबंध को अच्छा बनाए रखने के लिए चीन की सदिच्छा व्यक्त हुई है। मेरे ख्याल में भारत भी इसे मानता है। यदि चीन का सीधा मुकावला करने का रूख अपनाए, तो वह एक अविवेक रवैया सिद्ध होगा।