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दक्षिण चीन सागर में वर्तमान टक्कर से चीन व पड़ोसी देशों के बीच के संबंधों पर मूलभूत असर नहीं पड़ेगा
2012-04-17 16:38:39

पिछले दिनों, चीनी समुद्री गश्ती बोट और दक्षिण चीन सागर में स्थित चीन के ह्वांग येन द्वीप के जल क्षेत्र में जबरन घुस गए फिलिपीन्स के जंगी जहाज के बीच एक दूसरे का सामना करने की घटना पर एशिया प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा पर लोगों की चिंता पुनः उठ गयी। लोगों में यह प्रश्न पैदा हुआ है कि अखिरकार दक्षिण चीन सागर में इस प्रकार की घटना का आगे विस्तार होगा या नहीं?इस का चीन और दक्षिण चीन सागर के चारों ओर स्थित देशों के बीच संबंध पूरी तरह भंग होगे या नहीं तथा इस क्षेत्र से बाहर रहने वाले बड़े देशों के इस टक्कर वाले मामले में दखल करने की संभावना है या नहीं?और इस से पूर्वी एशिया की सुरक्षा स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ेगा या नहीं?विश्लेषकों का जवाब है कि इस टक्कर से चीन और पड़ोसी देशों व बड़े देशों के बीच के संबंधों के सामान्य विकास पर असर नहीं पड़ेगा।

इन सालों में, वियतनाम और फिलिपीन्स ने दक्षिण चीन सागर के सवाल को लेकर बारंबार विवाद खड़ा किए और अन्तरराष्ट्रीय बहुपक्षीय सुरक्षा मंच में मामला उठाकर अन्तरराष्ट्रीय समाज का ध्यान खींचने की कोशिश की, इन का साथ देते हुए अमेरिका ने भी चीन के साथ दक्षिण चीन सागर के सवाल पर विवाद करने वाले देशों को समर्थन जताया, साथ ही इस क्षेत्र से बाहर रहने वाले कुछ देशों ने भी पांव अड़ाते हुए बेजा फायदा उठाने की कोशिश की। वर्ष 2012 में अमेरिका का विशेष समर्थन मिले फिलिपीन्स ने उद्दंडता के साथ दक्षिण चीन सागर पर चीन के रूख और अधिकार के खिलाफ चुनौती दी, यहां तक उस के जंगी जहाज चीन के ह्वांग येन द्वीप के नजदीकी जल क्षेत्र में बल का प्रदर्शन करते हुए चीनी मछुवारी जहाजों पर जांच करने के लिए सिपाही भेजे और चीनी मछुवाओं व उन के जहाजों को पकड़ने की कुचेष्टा की। फिलिपीन्स द्वारा विवादित जल क्षेत्र में नौ सेना के बोट भेजकर बल प्रयोग से की गयी तथातथित न्यायिक कार्यवाही संयुक्त राष्ट्र समुद्र संधि के बिलकुल विरुद्ध है। और अन्तरराष्ट्रीय समुद्र प्रबंध नियम का उल्लंघन भी है। चीनी नागरिकों व उन की संपत्ति की रक्षा करने के लिए चीनी समुद्री गश्ती बोट इस जल क्षेत्र भेजा गया और वहां उस के द्वारा फिलिपीन्स के जंगी जहाज का सामना करना न्यायपूर्ण और बैध है। दिनों तक आमने सामने खड़े होने के बाद बारीकी विचार विमर्श के परिणामस्वरूप अब इस संकट का विवेकतापूर्ण व शांतिपूर्ण रूप से समाधान हो गया है।

इस घटना के शांतिपूर्ण समाधान के नदीजे से यह जाहिर हुआ है कि चीन और दक्षिण चीन सागर के चारों ओर स्थित देशों के बीच हालांकि अन्तरविरोध मौजूद है, लेकिन दोनों पक्षों में सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखने के समान विचार के आधार पर विवादों को शांतिपूर्वक हल किया जा सकता है, यदि समाधान का इस प्रकार का तरीका बरकरार रहेगा, तो दक्षिण चीन सागर सवाल से इन देशों के बीच सामान्य संबंधों के विकास पर मूल असर नहीं पड़ेगा। मौजूदा टक्कर घटना से फिलिपीन्स को दो संदेश पहुंचाये गए है। एक, दक्षिण चीन सागर के सवाल पर फिलिपीन्स चाहता है कि वह चीन से सीधे मुकाबले का तरीका अपनाए, तो अमेरिका उस के पीठ ठोंक देगा। लेकिन अपने रणनीतिक हित के कारण अमेरिका फिलिपीन्स के युद्ध पोत पर बंध जाने को तैयार नहीं है, वह चीन का सीधा सैनिक मुकाबला करना नहीं चाहता। फिलिपीन्स अपनी सीमित शक्ति के साथ चीन के साथ जोर आजमाइश में खड़ा नहीं हो सकता। दो, अपने समुद्री हितों की रक्षा करने के लिए चीन का संकल्प पक्का और दृढ़ है और उस की शक्ति भी पर्याप्त है। एक जिम्मेदार बड़े क्षेत्रीय देश के नाते चीन दक्षिण चीन सागर में शांति व स्थिरता की हिफाजत करेगा। फिर भी चीन अपने बड़े होने के बूते पर छोटों को दबाना नहीं चाहता। अपने हित व अधिकार का सम्मान किये जाने पर चीन इस क्षेत्र के पड़ोसी देशों के साथ मेलमिलाप से रहने को तैयार है।

असल में चीन ने इस के लिए बहुत से काम किए है, 2011 में चीन और फिलिपीन्स व वियतनाम के नेताओं के बीच उच्च स्तरीय यात्राएं हुईं और संबंधों का विकास भी हुआ है। ऐसे में फिलिपीन्स को चाहिए कि वह अच्छी तरह सोच समझे कि किस तरह का काम करने से उसे सचा हित मिलेगा।

गौरतलब बात यह है कि कुछ बड़े देश दक्षिण चीन सागर के सवाल को लेकर गड़बड़ी मचाते हुए चीन की शक्ति पस्त करना चाहते हैं, किन्तु वहां चीन का समाना करने में उन्हें न कोई पर्याप्त शक्ति है, न ही पक्का संकल्प। अमेरिका चाहता है कि वह अपनी रणनीति का केन्द्र पूर्वी एशिया में ले आए, पर वह खुले तौर पर चीन का मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं हुआ, वह चाहता है कि वह पीठ पीछे कुछ देशों को चीन के खिलाफ गड़बड़ी करने के लिए भड़का दे। इसी दृष्टि से तो दक्षिण चीन सागर का सवाल चीन अमेरिका संबंध में खलल उत्पन्न होने का एक कारक जरूर है, परन्तु दोनों पक्ष इस से वैश्विक व क्षेत्रीय मामलों को बाधित करना नहीं चाहते। जापान, भारत, ओस्ट्रेलिया जैसे देश एक हद तक दक्षिण चीन सागर मामले में दखल करना तो चाहते हैं, पर उन के पास न तो पर्याप्त शक्ति है, न ही पक्का संकल्प है, क्योंकि वे सभी चीन के साथ सहयोग करना चाहते हैं। इसलिए यों कहा जा सकता है कि दक्षिण चीन सागर सवाल से चीन और उन देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध पर असर नहीं पड़ेगा।

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